जरा सोचें, एक ऐसा समाज जिसमें संकीर्ण पहचान-समूह जैसे जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा या भय, अतार्किक भावनाएं और लालच व्यक्ति की सोच को प्रभावित न करते हों बल्कि उसके लिए, उसके परिवार के लिए और व्यापक समाज के लिए नैतिक रूप से सही, स्थायी और दूरगामी कल्याण ...
राजनीतिक वर्ग को और खासकर जो सत्ता में बैठे हैं, कम से कम आरोप तर्कसम्मत लगाने चाहिए. किसी मुख्यमंत्नी को चुनाव मंच से या प्रेस कॉन्फ्रेंस में ‘आतंकवादी’ कहने के पहले सोचना होगा कि जनता यह भी पूछेगी कि अगर केंद्र की सरकार भीमा कोरेगांव की जांच राज्य ...
पूरे बजट में किसानों, उद्यमियों व कर-दाताओं को सम्मान देने आदि की बातें तो जरूर हुईं लेकिन कोई क्रांतिकारी तड़प देश को आर्थिक मंदी से निकालने की नहीं पाई गई. ...
क्या हमारी संस्थाएं और उन पर बैठे लोगों- विधायिका (जो जनता द्वारा चुनी जाती है), कार्यपालिका (जिसके शीर्ष स्तर का चुनाव एक स्वतंत्न संस्था करती है) और न्यायपालिका (जिसका चुनाव शीर्ष स्तर पर स्वयं इसी संस्था का कॉलेजियम करता है) के प्रति जन-विश्वास बढ ...
पार्टी का शीर्ष नेतृत्व यह भी जानता है कि नीतीश की सरकार में भाजपा के मंत्रियों की कोई हैसियत नहीं रह गई है और कार्यकर्ताओं को जिला स्तर पर रोजाना सरकारी अफसरों से अपमान का सामना करना पड़ रहा है. ...
77 साल बाद आजाद भारत के सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि विवाह के बावजूद कोई पुरुष अगर किसी 18 साल से कम उम्र की पत्नी से शारीरिक संबंध बनाता है तो वह बलात्कार माना जाएगा. सरकार ने सन 2006 में इसे कानून का रूप दे दिया. लेकिन आज पता चला कि न केवल बाल विव ...
अगर केंद्र सरकार यह रुख अपनाती है तो विपक्ष को यह आरोप लगाने का मौका मिलता है कि केंद्र की भाजपा सरकार उन करोड़ों लोगों को बताना चाहती है कि तुमने मुझे वोट नहीं दिया लिहाजा हम बदला लेंगे. शायद इसी की प्रतिक्रिया है कि 13 राज्यों ने नागरिकता संशोधन का ...