2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में जन्मे मोहनदास करमचन्द गांधी को दुनिया महात्मा गांधी के नाम से जानती है। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सबसे अहम भूमिका निभाई थी। वे सत्य और अहिंसावादी थे। उन्होंने 200 सालों की अंग्रेजी हुकुमत को अहिंसावादी अंदोलनों से उखाड़ फेंका। इसमें स्वदेशी अंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, नमक सत्याग्रह जैसे प्रमुख आंदोलन हैं। आजादी के वक्त वह भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के खिलाफ थे। आजादी के बाद 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। Read More
‘ट्रेड रूस मॉल’ में स्थापित गांधी की प्रतिमा विश्व में एकमात्र ऐसी प्रतिमा है जो किसी शॉपिंग मॉल के अंदर बनी है। इसके अलावा गांधी हॉल में गांधी की आदम कद प्रतिमा और टॉलस्टाय फार्म में भी उनकी आवक्ष प्रतिमा का अनावरण किया गया है। ...
‘‘कन्याकुमारी के दर्शन’’ शीर्षक इस आलेख में उन्होंने कहा, ‘‘वहां भी मेरी प्रसन्नता पर दुख को कोई प्रभाव नहीं पड़ा। मुझे पूरे मंदिर की परिक्रमा करने की अनुमति दे दी गयी किंतु मुझे मंदिर के भीतरी हिस्से में नहीं जाने दिया गया क्योंकि मैं इंग्लैंड गया थ ...
प्रकाशक पेंगुइन क्लासिक्स ने यह बताया। लेखक त्रिदीप सुह्रद द्वारा संकलित किताब ‘‘पावर ऑफ नॉनवायलेंट रिजिस्टेंस : सेलेक्टेड राइटिंग्स’’ में राष्ट्रपिता के विचारों को उनकी 150वीं जयंती से पहले एक साथ प्रस्तुत किया गया है। ...
150th Mahatma Gandhi Birth Anniversary: गुजराती में किताब का प्रकाशन 1927 में हुआ था। दूसरी ओर मलयालम संस्करण 1997 में प्रकाशित हुआ, इसके बावजूद उसकी बिक्री इतनी अधिक है। नवजीवन ट्रस्ट के न्यास प्रबंधक विवेक देसाई ने बताया कि मलयालम अनुवाद की तेज बिक ...
गौरतलब है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कुछ दिन पहले देश की साझी भाषा के तौर पर हिन्दी को अपनाये जाने की वकालत की थी। हालांकि, विपक्षी दलों ने उनके इस विचार का काफी विरोध किया था। ...
फुटेज में महात्मा गांधी का दक्षिण भारत दौरा और जनवरी-फरवरी 1946 में हरिजन यात्रा दिख रहा है। एक रील में महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी महाराष्ट्र के वर्धा में सेवाग्राम आश्रम में विभिन्न गतिविधियों में दिख रहे हैं। ...
तीस जनवरी मार्ग पर कुछ दूर चलें तो विशाल बिड़ला हाउस आता है जहां ‘बापू’ ने अपने अंतिम 144 दिन गुजारे थे। यहीं वह शहीद हुए थे। उनके शहादत के दिन पर ही इस सड़क को नाम ‘तीस जनवरी मार्ग’ रखा गया है। ...
प्रमुख ब्रिटिश-भारतीय शिक्षाविद् लॉर्ड मेघनाद देसाई ने कहा, ‘‘ मोहनदास गांधी को लंदन बहुत पसंद आया था। वह अपने 19वें जन्मदिन से ठीक पहले यहां पहुंचे थे। वह पोरबंदर के सकुचाए से युवक थे और लंदन की जीवनशैली को अपना लेने को बेकरार थे।’’ ...