हैदराबाद: वाईएसआर तेलंगाना पार्टी (वाईएसआरटीपी) प्रमुख वाईएस शर्मिला आज तेलंगाना में कांग्रेस पार्टी में विलय करने जा रही हैं। वाईएस शर्मिला के इस कदम को सीधे तौर पर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी के लिए भारी झटके के तौर पर देखा जा रहा है।
समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार वाईएस शर्मिला ने कल इडुपुलापाया की अपनी यात्रा पर ऐलान किया था कि उनकी पार्टी गुरुवार को कांग्रेस में विलय कर लेंगी और जल्द ही दिल्ली जाकर कांग्रेस के शीर्ष नेताओं से मुलाकात करेंगी।
वाईएसआरटीपी प्रमुख शर्मिला का यह महत्वपूर्ण कदम कांग्रेस पार्टी द्वारा तेलंगाना विधानसभा चुनाव जीतने के कुछ दिनों बाद आया है। हाल ही में तेलंगाना में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान वाईएस शर्मिला ने लगातार कांग्रेस पार्टी को अपना समर्थन दिया था। उन्होंने उस वक्त स्पष्ट किया था कि वो तेलंगाना का विधानसभा चुनाव इस कारण से नहीं लड़ रही हैं क्योंकि इससे वोट बिखर सकते हैं।
उन्होंने कहा था, "मैं कांग्रेस पार्टी को समर्थन दे रहा हूं क्योंकि कांग्रेस पार्टी के पास तेलंगाना विधानसभा चुनाव में जीतने की संभावना है। केसीआर ने अपने 9 साल के कार्यकाल में लोगों से किए गए किसी भी वादे को पूरा नहीं किया है और यही एकमात्र कारण है मैं नहीं चाहती कि केसीआर सत्ता में आएं।"
शर्मिला ने आगे कहा था, "वाईएसआर की बेटी होने के नाते मैं कांग्रेस के लिए यह जोखिम उठाती हूं क्योंकि मैं कांग्रेस का वोट बैंक खींचने की कोशिश नहीं करती हूं।''
कांग्रेस को दिये अपने समर्थन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि तेलंगाना में 31 सीटों पर कांग्रेस पार्टी की जीत काफी हद तक उनके चुनाव न लड़ने के कारण से मिली है।
उन्होंने कहा, "55 से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में मैं कांग्रेस के वोट बैंक को बढ़ाने जा रही हूं और 20 से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में अगर मैं चुनाव लड़ती हूं तो उससे कांग्रेस पार्टी हार सकती है।"
वाईएस शर्मिला के कांग्रेस में शामिल होने से इस बात के कयास लग रहे हैं कि उन्हें लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी में अहम पद दिया जा सकता है। शर्मिला के अगले साल होने वाले आंध्र प्रदेश के चुनाव में भी कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने तेलंगाना में 119 में से 64 सीटें जीतकर पहली बार पूर्ण बहुमत हासिल किया। वहीं भारत राष्ट्र समिति ने 10 वर्षों तक तेलंगाना पर शासन करने के बाद महज 38 सीटें अपने नाम कर पाई थी।