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राज्यों को एसईबीसी निर्धारण के अधिकार से वंचित करने संबंधी फैसले पर पुनर्विचार हो: केंद्र का न्यायालय से आग्रह

By भाषा | Updated: May 14, 2021 15:58 IST

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नयी दिल्ली, 14 मई केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से आग्रह किया है कि वह पांच मई के बहुमत से लिए गए अपने फैसले का पुनर्विचार किया जाये। इस फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि 102वें संविधान संशोधन के बाद राज्यों के पास नौकरियों तथा दाखिलों में आरक्षण प्रदान करने के लिए सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) की घोषणा करने का अधिकार नहीं है।

मामले में केंद्र ने उल्लेख किया है कि संशोधन ने एसईबीसी की पहचान और घोषणा करने संबंधी राज्यों की शक्तियां नहीं छीनी हैं और शामिल किए गए दो प्रावधानों ने संघीय ढांचे का उल्लंघन नहीं किया है।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा मराठाओं को दिए गए आरक्षण को खारिज कर दिया था और आरक्षण को 50 प्रतिशत तक सीमित रखने के 1992 के मंडल संबंधी निर्णय को वृहद पीठ को भेजने से इनकार कर दिया था।

पीठ ने 3:2 के बहुमत से किए गए अपने निर्णय में व्यवस्था दी थी कि 102वां संविधान संशोधन, जिसके चलते राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) की स्थापना हुई, केंद्र को एसईबीसी की पहचान और घोषणा करने की विशेष शक्ति देता है क्योंकि केवल राष्ट्रपति ही सूची को अधिसूचित कर सकते हैं।

वर्ष 2018 में किए गए 102वें संविधान संशोधन में दो अनुच्छेद लाए गए थे जिनमें 338 बी एनसीबीसी के ढांचे, दायित्व और शक्तियों से संबंधित है तथा अनुच्छेद 342ए किसी खास जाति को एसईबीसी के रूप में अधिसूचित करने की राष्ट्रपति की शक्ति और सूची में बदलाव की संसद की शक्ति से संबंधित है।

केंद्र ने निर्णय पर पुनर्विचार के लिए बृहस्पतिवार को याचिका दायर की जिसमें मामले में खुली अदालत में सुनवाई करने और संशोधन के सीमित पहलू पर बहुमत से लिए गए निर्णय को याचिका पर फैसला होने तक स्थगित रखने का आग्रह किया गया है।

पुनर्विचार याचिका में केंद्र ने कहा है कि बहुमत से किए गए निर्णय ने अनुच्छेद 342ए की वैधता को बरकरार रखा है, लेकिन ऐसा करने में पीठ ने व्याख्या दी है कि प्रावधान राज्यों को उस शक्ति से वंचित करता है जो संबंधित राज्यों में एसईबीसी की पहचान और घोषणा करने के लिए नि:संदेह उनके पास है।

संविधान पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट ने 102वें संशोधन की संवैधानिक वैधता बरकरार रखने को लेकर न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर के साथ सहमति जताई थी, लेकिन बहुमत के फैसले में कहा था कि राज्य सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) की सूची पर फैसला नहीं कर सकते और केवल राष्ट्रपति के पास ही इसे अधिसूचित करने का अधिकार है।

न्यायमूर्ति भूषण और न्यायमूर्ति नजीर ने अल्पमत के फैसले में कहा था कि केंद्र एवं राज्य के पास एसईबीसी की सूची पर फैसला करने का अधिकार है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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