पटना, 16 सितंबरः चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने राजनीति में एंट्री मार रविवार को जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) का दामन थाम लिया। हालांकि कुछ समय से बताया जा रहा था कि उनके और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच दूरियां बढ़ गई हैं और प्रशांत भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की फिर से लोकचुनाव चुनाव-2019 के प्रचार-प्रसार की कमान संभालने वाले हैं। वहीं, जेडीयू में शामिल होने के उनके इस फैसले से बीजेपी और कांग्रेस को तगड़ा झटका लगना बताया जा रहा है। आइए आपको बताते हैं कौन हैं प्रशांत किशोर...
बीजेपी को जीत दिलान में रहा बड़ा योगदान
लोकसभा चुनाव 2014 में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत में प्रशांत किशोर का बड़ा योगदान रहा था और उन्होंने 'अबकी बार मोदी सरकार' को सोशल मीडिया के जरिए जमकर भुनाया था। उन्होंने सोशल प्लेटफॉर्म का जमकर इस्तेमाल किया था। साथ ही साथ चुनाव के लिए किस तरह की होर्डिंग्स और प्रचास-प्रसार सामग्री होनी चाहिए इस पर भी उनका फोकस था। जिसका नतीजा रहा कि केंद्र में बीजेपी ने बड़ी जीत हासिल की।
ऐसे आए थे सुर्खियों में
गुजरात 2012 के विधानसभा चुनाव से लेकर 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत का श्रेय प्रशांत किशोर को ही दिया जाता है। वह उस समय सुर्खियों में आए थे जब उन्होंने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए काम करना शुरू किया था। वह हेल्थ स्पेशलिस्ट के तौर पर यूनाइटेड नेशन के लिए भी आठ साल काम कर चुके हैं। उनका जन्म 1977 में बिहार के सासाराम में हुआ थाहुआ था। उनकी मां उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की रहने वाली हैं और पिता बिहार सरकार में डॉक्टर हैं। उनकी पत्नी का नाम जाह्नवी दास है।
महागठबंधन को दिलाई जीत
बीजेपी से अलग होने के बाद 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर ने राजद-जेडीयू-कांग्रेस महागठबंधन के लिए चुनाव प्रचार करने की रणनीति बनाई और नीतीश कुमार को जीत दिलाई। इसके बाद 2017 में प्रशांत कांग्रेस से जुड़े, जिसके बाद उन्होंने पंजाब और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में रणनीति बनाई। जिसके परिणाम स्वरूप पंजाब में कांग्रेस ने 77 सीटें हासिल कीं, हालांकि उत्तर प्रदेश में उनकी रणनीति का खासा असर नहीं देखा गया।
इस एनजीओ का किया गठन
प्रशांत किशोर ने साल 2014 में सिटिजन फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस (कैग) का गठन किया था, जोकि एक एक एनजीओ है। माना जाता है कि यह भारत की पहली राजनीतिक एक्शन कमिटी है, जिसमें आईआईटी और आईआईएम में पढ़ने वाले युवा प्रोफेशनल्स भर्ती किए गए। वहीं, कुछ दिनों पहले किशोर की संस्था आईपैक का लोकसभा चुनाव को लेकर एक सर्वे आया था, जिसमें 48 प्रतिशत लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को को अपना नेता माना था। वहीं, राहुल गांधी 11 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे।