नई दिल्लीः यह लड़ाई अब केवल किसानों की नहीं रही ,यह अब अमीर और गरीब के बीच की लड़ाई है, यह कहना है मुरादाबाद के आंदोलनकारी किसान धर्म पाल का जो पिछले 28 दिनों से गाजीपुर बॉर्डर पर आंदोलनकारी किसानों के साथ बैठे हैं।
किसान सरकार से पूछ रहे हैं कि सरकार बार बार कह रही है कि किसानों के फ़ायदे के लिये तीनों क़ानून लाये गये हैं ,लेकिन किसान जानना चाहते हैं कि क़ानून वापस लेने से नुक़सान किसे होगा ,सरकार यह बता दे। किसानों को फ़ायदा नहीं चाहिये फिर ज़ोर ज़बरदस्ती क्यों की जा रही है।
गाजीपुर बॉर्डर पर केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं राजस्थान, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों के किसान भी मिले जो कहते हैं कि यहाँ से तभी हटेंगे जब तीनों क़ानून वापस होंगे। रामपुर उत्तर प्रदेश के किसान नेता गुरु दयाल सिंह ज़ज़्बा तो देखने वाला था।
आवाज़ कड़क और जोश भी पूरा वहां बने भंडार की ओर इशारा करते हैं और कहते हैं "भंडार भरे हैं ,सरकार कब तक बैठायेगी ,हम सालों साल बैठने को तैयार हैं। यहाँ कोई कमी नहीं है। गुरुद्वारे से बिन मांगे भर भर कर सामन आ रहा है ,खाने ,कपड़े ,रोज़मर्रा के सामान की कोई कमी नहीं है।
गाजीपुर बॉर्डर पर हाइवे और सर्विस लेन में किसानों के लिये टेंट लगाये गये हैं ,इन टेंटों की संख्या लगभग 500 है और प्रत्येक टेंट में 25 से 30 आंदोलनकारी के रहने की व्यवस्था है। महिलाओं के लिये चारों तरफ़ से बंद पीला बड़ा टेंट लगाया गया है जिसमें 500 महिलाओं के रहने का इंतज़ाम किया गया है। कपड़े धोने के लिये वाशिंग मशीनें लगी हैं। कई स्टोर हैं जहाँ कम्बल ,कपड़े ,मफ़लर ,टोपी ,दस्ताने ,पेस्ट ,साबुन ,तेल सहित मुफ़्त में दिया जा रहा है।
बागपत के किसान राम सिंह को तो पता ही नहीं है कि हर रोज़ ट्रकों में भर कर सामान कौन भेज रहा है। ब्लड डोनेशन कैम्प लगा है जहाँ लंबी कतार लगा कर आंदोलनकारी रक्त दान कर रहे है जो ब्लड बैंक को भेजा जा रहा है ,दवाओं के काऊंटर है ,एम्बुलेंस है ,डॉक्टरों की तैनाती भी की गयी है ताकि आंदोलनकारी किसानों को ज़रूरत पड़ने पर चिकित्सा सुविधा मिल सके।
सेवा देने के लिये सिख परिवारों की महिलायें आस -पास से हर रोज़ आ रहीं हैं जो भोजन पकाने में मदद कर रहीं हैं। यहाँ जात -पांत और मज़हब का कोई भेद नहीं है और न ही कोई आंदोलनकारी उसे महसूस कर रहा है। सभी का एक स्वर है " लौटेंगे तो जीत कर ,वर्ना यहीं रहेंगे ,न बंटेंगे और न टूटेंगे।