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अशफाक अहमद: कोविड-19 के खिलाफ जंग में रोजाना 200 से अधिक जांच करने वाले लैब तकनीशियन

By भाषा | Updated: December 30, 2020 18:30 IST

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(डीपी मिश्रा/मानवेन्द्र वशिष्ठ)

(12वें पैरा में सुधार के साथ)

नयी दिल्ली, 30 दिसंबर लैब तकनीशियन अशफाक अहमद कोरोना वायरस महमारी के दौरान अपने कारनामे के लिये चर्चा में हैं। वह 30-40 सेकेंड में नमूने ले लेते हैं, रोजाना 200 से अधिक जांच करते हैं और पांच महीने में कम से कम 30,000 नमूनों की जांच कर चुके हैं।

अहमद (42) उन हजारों गुमनाम स्वास्थ्यकर्मियों में शुमार रहे जो, बारिश, धूप और यहां तक कि कुछ स्थानों पर बर्फबारी के बीच नमूने एकत्रित करते फिर रहे हैं। वह, भी ऐसे समय में जब अधिकतर भारतीय कोविड-19 के चलते घरों में रहने को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं। वह मध्य दिल्ली के मुख्य जिला चिकित्सा अधिकारी के साथ लैब तकनीशियन के तौर पर काम कर रहे हैं।

अहमद कहते हैं कि महामारी के खिलाफ जंग में जांच पहला और महत्वपूर्ण कदम है और हफ्तों तक बिना बिना छुट्टी लिये और अधिकतर छुट्टियां त्याग कर ज्यादा से ज्यादा नमूने एकत्रित करना इस जंग में मदद करने का उनका समर्पित प्रयास और जूनून है।

वह गर्वपूर्वक 'पीटीआई-भाषा' को बताते हैं कि एक दिन तो उन्होंने रैपिड-एंटीजेन जांच के लिये 1,000 से अधिक लोगों के स्वाब के नमूने लिये थे।

अहमद ने कहा, ''12 अक्टूबर 2020 को मैंने पूसा (प्रौद्योगिकी संस्थान) परिसर में 1,101 लोगों की रैपिड-एंटीजेन जांच में मदद की। मैंने सुबह नौ बजे से काम शुरू किया और रात सात बजे तक लगातार काम करता रहा। मैं पहले से ही उसके लिये तैयार था और उसी के अनुसार प्रबंध भी कर रखे थे। ''

अहमद अकेले ही पांच महीने में 30,000 से अधिक नमूने ले चुके हैं। टीम का हिस्सा रहते हुए उनके द्वारा लिये गए नमूनों को भी जोड़ा जाए तो यह संख्या 50 हजार से अधिक हो जाती है।

अहमद को गर्मी के महीनों में भी घंटों पीपीई किट पहनकर काम करना पड़ा जब हालात और अधिक असहज हो गए थे। इसके बावजूद उन्होंने अपनी सुरक्षा की परवाह किये बिना और थके बगैर काम किया।

महामारी फैलने के बाद महीनों तक वह त्योहार नहीं मना सके और न ही पारिवारिक कार्यक्रमों में शरीक हो पाए। इसके अलावा वह अपने करीबी रिश्तेदारों के अंतिम संस्कार में भी नहीं जा सके।

बुजुर्ग माता-पिता, पत्नी निशा अंजुम और चार साल की बेटी शरिया के साथ दिल्ली की जामिया नगर कालोनी में रहने वाले अहमद ने कहा, ''मैं अपने परिवार के साथ शायद ही समय गुजार पाया हूं।''

उन्होंने कहा ‘‘लेकिन मुझे इसका अफसोस नहीं है। मेरा परिवार काफी सहयोग करने वाला है, लेकिन मां को तब भी और अब भी समझाना पड़ता है।’’

15 साल से लैब तकनीशियन के तौर पर काम कर रहे अहमद ने कहा, ''मेरी पत्नी टीबी परामर्शदाता के तौर पर काम करती हैं, लिहाजा वह काम की जरूरतों को समझती हैं। लेकिन मां हमेशा वायरस से मेरी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहती हैं।''

उन्होंने बताया ‘‘एक दिन मां ने मुझसे पूछा कि अगर मैं काम पर न जाऊं तो कितने लोग परेशान होंगे। मैंने जवाब दिया कि 200 से अधिक लोग परेशान होंगे। उन्होंने मुझसे तत्काल काम पर जाने को कहा।’’

इस साल 28 जून को अहमद के 80 वर्षीय पिता और 70 वर्षीय मां को कोविड-19 का संक्रमण होने का पता चला और अहमद को अनिवार्य पृथक-वास में जाना पड़ा। ‘‘घर पर ठहरना मुश्किल था। बार बार अहसास होता था कि बीमारी तेजी से शहर में फैल रही है और मुझे काम पर होना चाहिए।’’

उन्होंने कहा कि वह 13 अप्रैल से ''कोविड-19 योद्धा'' के तौर पर काम कर रहे हैं जब वह कार्यक्रम अधिकारी डॉक्टर पुनीत जेटली के नेतृत्व में जिले के विभिन्न भागों में कोविड-19 जांचे करने वाली टीम का हिस्सा बने थे।

अहमद के काम की तारीफ करते हुए उनके वरिष्ठ डॉक्टर सुनील मिंज कहते हैं, ''वह बहुत अच्छे व्यक्ति हैं। उनकी छवि बहुत अच्छी है और वह 30-40 सेकेंड में जांच कर लेते हैं। इसके अलावा वह काफी मेहनती और काम के प्रति जुनूनी व्यक्ति हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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