लाइव न्यूज़ :

पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: पूर्वोत्तर में गहरा रहा है म्यांमार शरणार्थियों का संकट

By पंकज चतुर्वेदी | Updated: February 12, 2022 15:56 IST

पिछले सप्ताह ही मिजोरम सरकार ने फैसला किया है कि शरणार्थियों को पहचान पत्न मुहैया करवाएगा। इसके लिए कोई सोलह हजार लोगों को चिन्हित किया गया है।

Open in App

म्यांमार में सैनिक शासन को एक साल हो गए हैं और इसके साथ ही वहां से आए हजारों शरणार्थियों को लेकर दिक्कतें बढ़ती जा रही हैं। याद करें पिछले साल जब म्यांमार में सेना ने सत्ता पर कब्जा किया था और हजारों शरणार्थी देश के पूर्वोत्तर राज्यों, खासकर मिजोरम और मणिपुर की तरफ आए थे तब जनता के दबाव में मणिपुर सरकार को वह आदेश तीन दिन में ही वापस लेना पड़ा था जिसके अनुसार पड़ोसी देश म्यांमार से भाग कर आ रहे शरणार्थियों को भोजन एवं आश्रय मुहैया कराने के लिए शिविर न लगाने का आदेश दिया गया था। पिछले सप्ताह ही मिजोरम सरकार ने फैसला किया है कि शरणार्थियों को पहचान पत्न मुहैया करवाएगा। इसके लिए कोई सोलह हजार लोगों को चिन्हित किया गया है।

पड़ोसी देश म्यांमार में उपजे राजनीतिक संकट के चलते हमारे देश में हजारों लोग अभी आम लोगों के रहम पर अस्थायी शिविरों में रह रहे हैं, यह तो सभी जानते हैं कि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के पास किसी भी विदेशी को ‘शरणार्थी’ का दर्जा देने की कोई शक्ति नहीं है। यही नहीं भारत ने 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन और इसके 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।

हमारे यहां शरणार्थी बन कर रह रहे इन लोगों में कई तो वहां की पुलिस और अन्य सरकारी सेवाओं के लोग हैं जिन्होंने सैनिक तख्तापलट का सरेआम विरोध किया था और अब जब म्यांमार की सेना हर विरोधी को गोली मारने पर उतारू है तो उन्हें अपनी जान बचाने की सबसे मुफीद जगह भारत ही दिखाई दी। लेकिन यह कड़वा सच है कि पूर्वोत्तर भारत में म्यांमार से आए शरणार्थियों का संकट बढ़ रहा है।

उधर असम में म्यांमार की अवैध सुपारी की तस्करी बढ़ गई है और इलाके में सक्रिय अलगाववादी समूह म्यांमार के रास्ते चीन से इमदाद पाने में इन शरणार्थियों की आड़ ले रहे हैं। भारत के लिए यह विकट दुविधा की स्थिति है कि उसी म्यांमार से आए रोहिंग्या के खिलाफ देश भर में अभियान और माहौल बनाया जा रहा है लेकिन अब जो शरणार्थी आ रहे हैं वे गैर मुस्लिम ही हैं।

म्यांमार से आ रहे शरणार्थियों का यह जत्था केंद्र सरकार के लिए दुविधा बना हुआ है। असल में केंद्र नहीं चाहता कि म्यांमार से कोई भी शरणार्थी यहां आ कर बसे क्योंकि रोहिंग्या के मामले में केंद्र का स्पष्ट नजरिया है लेकिन यदि इन नए आगंतुकों का स्वागत किया जाता है तो धार्मिक आधार पर शरणार्थियों से भेदभाव करने के आरोप से दुनिया में भारत की किरकिरी हो सकती है।

उधर मिजोरम और मणिपुर में बड़े-बड़े प्रदर्शन हुए जिनमें शरणार्थियों को सुरक्षित स्थान और पनाह देने का समर्थन किया गया। यहां जानना जरूरी है कि मिजोरम की कई जनजातियों और सीमाई इलाके के बड़े समुदाय में रोटी-बेटी के ताल्लुकात हैं। भारत और म्यांमार के बीच कोई 1643 किलोमीटर की सीमा है जिनमें मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड का बड़ा हिस्सा है. अकेले मिजोरम की सीमा 510 किलोमीटर लम्बी है।

एक फरवरी 2021 को म्यांमार की फौज ने 8 नवंबर 2000 को संपन्न हुए चुनावों में सू की की पार्टी की जीत को धोखाधड़ी करार देते हुए तख्तापलट कर दिया था। वहां के चुनाव आयोग ने सेना के आदेश को स्वीकार नहीं किया तो फौज ने वहां आपातकाल लगा दिया, हालांकि भारत ने इसे म्यांमार का अंदरूनी मामला बताकर लगभग चुप्पी साधी हुई है लेकिन भारत इसी बीच कई रोहिंग्याओं को वापस म्यांमार भेजने की कार्रवाई कर रहा है और उस पार के सुरक्षा बलों से जुड़े शरणार्थियों को सौंपने का भी दबाव है, जबकि स्थानीय लोग इसके विरोध में हैं।

मिजोरम के मुख्यमंत्री इस बारे में एक खत लिख कर बता चुके हैं कि यह महज म्यांमार का अंदरूनी मामला नहीं रह गया है। यह लगभग पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लादेश के रूप में उदय की तरह शरणार्थी समस्या बन चुका है। मिजोरम में शरण लिए हुए हजारों शरणार्थियों के बीच राज्य सरकार उन्हें पहचान पत्र मुहैया कराने पर विचार कर रही है।

अभी पहचान पत्र जारी करने की प्रक्रि या चल रही है और करीब 16000 कार्ड मुहैया कराए जाएंगे। एक अधिकारी के कहा कि ‘यह उन लोगों के लिए एक चुनौतीपूर्ण काम है, जिन्हें सीमाओं के पार और कई जगहों पर अपने रिश्तेदारों के साथ रहना पड़ता है।’

इससे पहले, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने चार उत्तर पूर्वी राज्यों मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश को एक सलाह भेजकर कहा था कि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के पास किसी भी विदेशी को ‘शरणार्थी’ का दर्जा देने की कोई शक्ति नहीं है और भारत 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन और इसके 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है।

टॅग्स :म्यांमारमिज़ोरम चुनाव
Open in App

संबंधित खबरें

भारतMDC 2025 results: कुल 25 सीट, एमएनएफ के खाते में 8, कांग्रेस 7, भाजपा-निर्दलीय 2-2 और सत्तारूढ़ जेडपीएम के पास 6 सीट, लाई स्वायत्त जिला परिषद चुनाव त्रिशंकु

भारतMDC 2025 results: 25 सीट पर चुनाव, सतारूढ़ जेडपीएम को झटका, एमएनएफ ने 4 सीट पर जीत दर्ज की, देखिए कांग्रेस और भाजपा का हाल

भारतथाईलैंड से भारत लाए गए 125 भारतीय, म्यांमा के ठगी केंद्रों में थे बंद

भारतDampa bypoll results: 562 मतों से जीत, मिजो नेशनल फ्रंट के आर लालथंगलियाना ने मारी बाजी, सत्तारूढ़ जोरम पीपुल्स मूवमेंट को झटका

भारतडम्पा विधानसभा उपचुनावः वनलालसैलोवा, लालथंगलियाना, रोटलुआंगालियाना और लालहमंगइहा में टक्कर, देखिए आंकड़े

भारत अधिक खबरें

भारतवोटर लिस्ट से नाम गायब, केरल हाईकोर्ट का रुख करने वाली कांग्रेस उम्मीदवार वैश्ना एसएल ने मारी बाजी, 300 से अधिक मत से जीत

भारततिरुवनंतपुरम नगर निगमः 45 साल से कब्जा, वामपंथी दल पस्त?, पीएम मोदी ने लिखा-भाजपा-राजग को मिला जनादेश केरल की राजनीति में ऐतिहासिक क्षण, पढ़िए पोस्ट

भारतकर्नाटक कांग्रेस सरकारः 6 जनवरी को सीएम बनेंगे शिवकुमार, मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की जगह लेंगे?, विधायक इकबाल हुसैन ने संभावना व्यक्त की

भारतराजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की जब्त अवैध संपत्तियों को सीज कर सरकारी स्कूल खोलेगे?, सम्राट चौधरी ने किया ऐलान, सूबे की सियासत तेज

भारतकौन हैं पंकज चौधरी?, भूपेंद्र सिंह चौधरी की जगह होंगे यूपी बीजेपी अध्यक्ष?, 2027 विधानसभा प्रमुख लक्ष्य रहेगा