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Earth Day 2023: प्रजातियां हो रही लुप्त, जैव विविधता घट रही है...सामने हैं कई और समस्याएं! पृथ्वी और इस पर मौजूद जीवन को बचा लीजिए

By गिरीश्वर मिश्र | Published: April 22, 2023 10:41 AM

प्रकृति और मनुष्य के बीच संघर्ष का परिणाम पर्यावरण संकट के रूप में आ रहा है. हवा, पानी और भोजन जैसे जीवन जीने के लिए अनिवार्य तत्व घोर प्रदूषण की गिरफ्त में आ रहे हैं.

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अपने दौड़-भाग भरे व्यस्त दैनिक जीवन में हम सब कुछ अपने को ही ध्यान में रख कर सोचते-विचारते हैं और करते हैं. हम यह भूल जाते हैं कि यह पृथ्वी जिस पर हमारा आशियाना है, वह मंगल, बुध की ही तरह का एक ग्रह है जो विशाल सौर मंडल का एक सदस्य है. पृथ्वी के भौतिक घटक जैसे स्थल, वायु, जल, मृदा आदि जीव मंडल में जीवों को आश्रय देते हैं और उनके विकास और संवर्धन के लिए जरूरी स्रोत उपलब्ध कराते हैं. यह भी गौरतलब है कि अब तक की जानकारी के हिसाब से धरती ही एक ऐसा ग्रह है जहां जीवन है. 

इस धरती पर हमारा पर्यावरण एक परिवृत्त की तरह है जिसमें वायु मंडल, जल मंडल, तथा स्थल मंडल के अनेक भौतिक और रासायनिक तत्व मौजूद रहते हैं. जैविक और अजैविक दोनों तरह के तत्वों से मिल कर धरती पर संचालित होने वाला पूरा जीवन-चक्र निर्मित होता है. इस जीवन-चक्र का आधार सिद्धांत विभिन्न तत्वों का सहअस्तित्व है क्योंकि अकेले कोई भी पर्याप्त नहीं होता है. सत्य यही है कि दूसरों से जुड़ कर ही जीवन संभव हो पाता है. इसलिए जो नैसर्गिक रूप से उपलब्ध प्रकृति है वह जीवन के लिए आधार प्रदान करती है. हमारा अपना अस्तित्व उस समग्र का एक बड़ा छोटा हिस्सा होता है. जीवन को चिरायु और गतिशील बनाए रखने के लिए प्रकृति के विभिन्न अवयवों के बीच सतत सामंजस्य बनाए रखना जरूरी होता है.

मनुष्य को केंद्र में रख कर नियंता के भाव के साथ प्रकृति को उपभोग्य मान लिया गया. इसके चलते खुद को निरपेक्ष उपभोक्ता की हैसियत से उसका अंधाधुंध दोहन करना मनुष्य का मुख्य कार्य हो गया. प्रकृतिभक्षी दृष्टि के चलते पारिस्थितिक असंतुलन के फलस्वरूप अब आए दिन अतिवृष्टि, अनावृष्टि, बाढ़, अकाल और तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं के संकट छाए रहते हैं. 

प्रजातियां लुप्त हो रही हैं और जैव विविधता घट रही है. आधी सदी से कम समय में पक्षियों, स्तनधारियों, मछलियों, उभयचरों और सरीसृपों में औसतन 68 प्रतिशत कमी आई है. जैव विविधता घटने के कई प्रत्यक्ष और परोक्ष परिणाम हैं. वह एक संसाधन है जो जीवन की गुणवत्ता के लिए आवश्यक है. एक सदी में भू उपयोग में बड़ा बदलाव आया है. जैव विविधता नष्ट होने से पारिस्थितिकी तंत्र ध्वस्त हो जाएगा. जैव विविधता और पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा और पुनर्स्थापना आवश्यक है. इस दृष्टि से संयुक्त राष्ट्र द्वारा जीडीपी में प्रकृति के सच्चे मूल्य को भी शामिल करने की बात की जा रही है.

कृषियोग्य भूमि बना कर 50 प्रतिशत वृक्ष खत्म कर दिए गए हैं. समुद्र के उपयोग में भारी बदलाव से समुद्री पारिस्थितिकी भी बदली है. ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो औद्योगिकीकरण के चलते सबसे कम समय में, लगभग 350 वर्षों में सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है. उर्वरक और कीटनाशकों के प्रयोग के चलते रसायन भारी मात्रा में पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे हैं. भूमि का क्षरण हो रहा है, वन का आवरण कम हो रहा है, नदियों के जलस्तर में गिरावट आ रही है, भू जल स्तर घट रहा है और ग्लेशियर खिसक रहे हैं. 

जीवनशैली में आए बदलाव से तरह-तरह की गैसों का उत्सर्जन हो रहा है. ग्रीन हाउस प्रभाव की चर्चाओं के बीच पर्यावरण का ह्रास एक विकट चुनौती बन रही है. प्रकृति और मनुष्य के बीच संघर्ष का परिणाम पर्यावरण संकट के रूप में आ रहा है. हवा, पानी और भोजन जैसे जीवन जीने के लिए अनिवार्य तत्व घोर प्रदूषण की गिरफ्त में आ रहे हैं. मौसम में बदलाव को लेकर पृथ्वी पर आपातकाल लगाने जैसी स्थिति उभर रही है. पृथ्वी पर हावी हो रहे मनुष्य ने प्राकृतिक संसाधनों की पूरी श्रृंखला को तनावग्रस्त बना दिया है.

अपनी आत्मकेंद्रित दृष्टि के भ्रम में हम यह अक्सर भूल जाते हैं कि संपूर्ण जैविक विश्व एक इकाई है और मनुष्य को इससे जुदा नहीं रखा जा सकता. अन्य तत्वों की ही तरह वह भी पर्यावरण की व्यवस्था का ही एक हिस्सा है. इसलिए समग्र प्रकृति के साथ जुड़ते हुए और तालमेल के साथ ही आगे कदम बढ़ाया जा सकता है. चूंकि हमारा जीवन प्राकृतिक संसाधनों पर ही निर्भर करता है अत: उन मूल्यों को प्रभावी करना होगा जो संपूर्ण जीवन को पहचान सकें और सबके विकास का अवसर दे सकें. धरती की सीमा में ही उपभोग और उत्पादन करना ही एकमात्र विकल्प है. असीम उपभोग से सुख की तलाश बेमानी है. 

आज मनुष्य का पर्यावरण के प्रति उदासीन व्यवहार सार्थक और सुखमय जीवन में बड़ा बाधक हो रहा है. प्रकृति के बाह्य पक्ष हमें आकर्षित करते हैं और जंगल सफारी, पर्वत, नदी, घाटी, झील आदि घूमने जाते हैं परंतु पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से हम सतर्क नहीं रहते. वर्तमान परिस्थितियों के मद्देनजर आज धरती के साथ जुड़ाव हो, यह आवश्यक है. जनसाधारण के मन में प्रकृति प्रेम का भाव पैदा करना होगा. 

जल की बर्बादी, भू जल स्तर में गिरावट, अस्वच्छ जल के उपयोग से बीमारी आदि को ध्यान में रख कर जल-प्रबंधन को वरीयता देनी होगी. वृक्षारोपण का अभियान, वनों की कटाई रोकना, जैविक खाद और बीज के साथ जैविक खेती की ओर ध्यान देना होगा. जीव जगत की पारस्परिकता को स्वीकार करते हुए दायित्व बोध जगाना होगा और आत्मीय रिश्ता बनाना होगा. प्रकृति को देखने का नजरिया बदलना होगा और उसे महत्व देना होगा.

टॅग्स :अर्थ डेEnvironment Departmentवायु प्रदूषण
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