गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: पृथ्वी और प्रकृति का नहीं है कोई दूसरा विकल्प

By गिरीश्वर मिश्र | Published: April 22, 2024 08:56 AM2024-04-22T08:56:06+5:302024-04-22T08:58:49+5:30

माता का स्वभाव है कि वह स्वयं कष्ट सहकर भी अपना सारा प्रेम शिशुओं के ऊपर उड़ेलती रहती है क्योंकि वह अपनी संततियों को अपने अस्तित्व से अलग नहीं रखती. 

There is no alternative to earth and nature | गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: पृथ्वी और प्रकृति का नहीं है कोई दूसरा विकल्प

प्रतीकात्मक तस्वीर

Highlightsधरती के नीचे प्रवाहित जल हमारे जीवन का स्रोत है. हमारा पृथ्वी से सम्बन्ध एक समग्र रचना या अंगी के अंग के रूप में समझना चाहिए. जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की प्रजातियों के विनाश और जैव विविधता के ह्रास का खतरा बढ़ रहा है.

पृथ्वी, धरती, वसुंधरा, भूमि आदि विभिन्न नामों से जानी जाने वाली सत्ता को हजारों साल से माता कहा जाता रहा है. अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में माता भूमि: पुत्रोहं पृथिव्या: का उद्घोष मिलता है. माता के रूप में पृथ्वी जाने कब से मनुष्य, पशु-पक्षी, कीट-पतंग आदि सभी जीवित प्राणियों यानी अपने आश्रितों का निर्व्याज भरण-पोषण करती आ रही है.

माता का स्वभाव है कि वह स्वयं कष्ट सहकर भी अपना सारा प्रेम शिशुओं के ऊपर उड़ेलती रहती है क्योंकि वह अपनी संततियों को अपने अस्तित्व से अलग नहीं रखती. 

वे उसी के अभिन्न अवयव या अंश होते हैं. हम सब पृथ्वी के तत्वों से निर्मित होते हैं. मिट्टी की सबसे विलक्षण शक्ति उसकी उर्वरा क्षमता में निहित है. इस जीवनी शक्ति के चलते रूखे-सूखे बीज का रूपांतरण होता है, अंकुरित होकर वह बीज हरी-भरी घास, अन्न की लहलहाती फसल, नाना प्रकार के चित्ताकर्षक सुगंधित पुष्प, भांति-भांति के सुस्वादु रसीले फल वाले, औषधीय और अन्य किस्म के वृक्ष-वनस्पतियां आदि जाने क्या-क्या बन जाता है.

धरती के नीचे प्रवाहित जल हमारे जीवन का स्रोत है. उसके क्रोड़ में विभिन्न धातुएं- कोयला, सोना, चांदी, लोहा, हीरा, मोती हैं, ऊर्जा का स्रोत पेट्रोल है. क्या कुछ नहीं है उसमें. बहुत से पदार्थ ऐसे भी हैं जो रत्नगर्भा पृथ्वी ने अपने भीतर छिपा रखे हैं और हमें उनका ज्ञान नहीं है. ऐसी पृथ्वी जड़ नहीं है और हमें अपने अस्तित्व को उसके हिस्से के रूप में देखना चाहिए. हमारा पृथ्वी से सम्बन्ध एक समग्र रचना या अंगी के अंग के रूप में समझना चाहिए. 

पृथ्वी को देवता माना गया. पृथ्वी रक्षणीय और वंदनीय हो गई, भूमि को माता का दर्जा मिला. परंतु आज की स्थिति भिन्न है. अब वैश्विक स्तर पर सभी देशों को प्रभावित करने वाली चुनौतियों में जलवायु - परिवर्तन को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है. विकास को लेकर चिंतन में ‘टिकाऊ विकास’ के लक्ष्यों को पहचानना सराहनीय कदम था. पर उद्घोषणाओं को कार्य स्तर पर लागू करने तक की अब तक की यात्रा आगे नहीं बढ़ पा रही है. 

जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की प्रजातियों के विनाश और जैव विविधता के ह्रास का खतरा बढ़ रहा है. सभी देश पर्यावरण की रक्षा के लिए जरूरी मानकों, मानदंडों और पाबंदियों को स्वीकार न करके छूट लेने की फिराक में हैं. ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को लेकर आज जो हालात हैं उसमें यह स्थिति खास तौर पर दिख रही है. अब पृथ्वी पर तापमान में वृद्धि अनियंत्रित हो रही है.

विडम्बना यह भी है कि इस वैश्विक विपत्ति का नुकसान अक्सर कम विकसित देशों को ही भुगतना पड़ता है. मौसम में होने वाले इस बदलाव के भयानक परिणाम हो सकते हैं.

Web Title: There is no alternative to earth and nature

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