Delhi News: भूल जाना आदमी की फितरत है. आदमी अच्छी बातें भी भूल जाता है और बुरी बातें भी. बुरी बातों को भूल जाना तो अच्छी बात है, पर कुछ अच्छी बातों को भूल जाना अच्छा नहीं है. ऐसी ही अच्छी बात वर्ष 1965 की भारत-पाक लड़ाई है जिसमें भारत ने पाकिस्तान को मात दी थी. पता नहीं कितनों को याद होगा कि उस लड़ाई में अब्दुल हमीद नाम का एक भारतीय सैनिक भी था, जिसने पाकिस्तानी टैंकों को नष्ट करके हमारी जीत को संभव बना दिया था. तब कंपनी क्वार्टरमास्टर अब्दुल हमीद ने हमें जिता तो दिया, पर अपनी जान की कीमत देकर. कृतज्ञ राष्ट्र ने उस जांबाज शहीद को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया था. इस शहीद का जन्म उत्तर प्रदेश के दुल्लहपुर नामक गांव में हुआ था.
गांव वालों ने अपने इस सपूत के सम्मान में गांव के स्कूल का नाम वीर अब्दुल हमीद उच्च प्राथमिक विद्यालय रखा था. बरसों से यह नाम गांव की एक पहचान बना हुआ था. कुछ ही अर्सा पहले स्कूल का नाम बदल दिया गया - नया नाम पीएमश्री कंपोजिट विद्यालय धामपुर कर दिया गया. क्यों बदला गया, किसी ने नहीं बताया. बस बदल दिया!
नाम बदलने की यह अकेली घटना नहीं है. कुछ दिन पहले ही उत्तर प्रदेश के गाजीपुर से मऊ को जोड़ने वाली सड़क पर बने एक द्वार का नाम ऐसे ही बदल दिया गया था. ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान के नाम का यह द्वार बुलडोजर चला कर गिरा दिया गया. मुख्तार अहमद अंसारी के नाम पर बने एक कॉलेज की दीवारें गिरा देने वाला समाचार भी हाल ही का है.
यह बात भुला दी गई कि मुख्तार अहमद अंसारी कभी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. आजादी की लड़ाई के दौरान यह पद संभालने वाले अंसारी जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी की नींव रखने वालों में थे. नाम बदलने का यह सिलसिला अब नया नहीं लगता. चौंकाता भी नहीं. पिछले दो दशकों में न जाने कितनी जगह के नाम बदले गए हैं.
ज्यादातर नाम मुसलमानों के हैं. सवाल उठता है कि ऐसा क्यों? नाम बदलने से इतिहास नहीं बदलता. बहरहाल, जगहों के नाम बदलना कोई नई बात नहीं है. पर इस प्रक्रिया के पीछे की मानसिकता को भी समझा जाना चाहिए. ऐसा नहीं है कि शहरों आदि के नाम बदलने का काम सिर्फ भाजपा शासित राज्यों में ही हो रहा है.
कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, द्रमुक आदि पार्टियों ने भी अपने-अपने शासन काल में इस तरह नाम बदले हैं. सचाई यह है कि अक्सर यह बदलाव राजनीतिक स्वार्थ का परिणाम होते हैं. अपने-अपने हितों के लिए हमारे राजनीतिक दल अक्सर जगहों का नाम बदलना एक आसान मार्ग समझ लेते हैं. लेकिन, यह आसान मार्ग अक्सर राष्ट्रीय हितों से भटका देता है, इस बात को भुलाना अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है.