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ब्लॉग: भारत में कैंसर का प्रकोप और महंगा इलाज, गरीबी भी बढ़ा रही है ये भयावह बीमारी

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: August 5, 2022 14:58 IST

समय पर इलाज नहीं हो पाने के कारण बड़ी संख्या में लोग असमय ही मर जाते हैं. इसका इलाज भी महंगा है. अगर किसी घर में कोई कैंसर का मरीज होता है, तो मेडिकल बीमा के अभाव में पूरा परिवार कर्ज में डूब जाता है.

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देश में तेजी से अपना प्रकोप बढ़ा रहा कैंसर मरीज को भयानक कष्ट देता ही है, साथ ही इसका महंगा इलाज मरीज के पूरे परिवार को आर्थिक संकट में धकेल देता है. राज्यसभा में बीते दिन इस मुद्दे को उठाया गया. 

इलाज किफायती होना बेहद जरूरी है. हमारे यहां पहले चरण में स्तन कैंसर का पता लगने के बाद भी इसके उपचार पर जो राशि खर्च होती है, वह भारतीयों के 10 साल की औसत कमाई के बराबर है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से कैंसर के आर्थिक असर पर जारी अध्ययन रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है. 

मेडिकल बीमा के अभाव में कैंसर के उपचार का खर्च उठाना संभव नहीं होता. विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि हर साल दुनिया में 10 करोड़ लोग परिवार के किसी सदस्य की बीमारी का इलाज कराने के चलते गरीबी में धकेल दिए जाते हैं. इनमें से आधे लोग भारतीय होते हैं. यह स्थिति भयावह है. 

अनुमान लगाया जा रहा है कि 2025 तक भारत में कैंसर के मरीजों की संख्या 15.69 लाख के पार निकल जाएगी. सर्वविदित है कि कैंसर के इलाज में काफी खर्च होता है, क्योंकि इसका इलाज काफी महंगा है. आम आदमी कैंसर का इलाज नहीं करा पाता, क्योंकि उसके पास इतना पैसा नहीं होता. अगर किसी घर में कोई कैंसर का मरीज होता है, तो पूरा परिवार कर्ज में डूब जाता है और कई-कई साल तक डूबा रहता है. कैंसर एक ऐसा रोग है जो किसी भी उम्र में हो सकता है. 

आमतौर पर शरीर का वजन बढ़ने व शारीरिक सक्रियता में कमी आने तथा दोषपूर्ण और असंतुलित खान-पान, व्यायाम नहीं करने, नशीले पदार्थों के रूप में अल्कोहल की अधिक मात्रा का सेवन करने से इस रोग का शिकार होने की आशंका अधिक रहती है. हर साल कैंसर के 10 लाख नए मामलों का निदान किया जा रहा है और 2035 तक हर वर्ष कैंसर के कारण मरने वाले लोगों की संख्या बारह लाख तक बढ़ने की उम्मीद है. 

समय पर इलाज नहीं हो पाने के कारण बड़ी संख्या में लोग असमय ही मर जाते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले भारत में कैंसर रोग से प्रभावितों की दर कम होने के बावजूद यहां 15 प्रतिशत लोग कैंसर के शिकार होकर अपनी जान गंवा देते हैं. 

डब्ल्यूएचओ की सूची के मुताबिक 172 देशों की सूची में भारत का स्थान 155वां है. 90 प्रतिशत की मृत्यु का कारण रोग के प्रति बरती जाने वाली लापरवाही है. लोग डॉक्टर के पास तभी जाते हैं जब बीमारी अनियंत्रण की स्थिति में पहुंच जाती है. निःसंदेह, यदि किसी व्यक्ति को कैंसर से बचाव करना है या कोई देश अपने को कैंसरमुक्त राष्ट्र बनाने का सपना देखता है तो उसे अपने देश में धड़ल्ले से बिक रहे मादक व नशीले पदार्थों और शराब की फैक्ट्रियों पर राजस्व की चिंता किए बगैर रोक लगाने के लिए कदम उठाने होंगे. 

यहां तक कि मोटापे को बढ़ाने का कारण बन रहे जंक फूड पर फैट टैक्स लागू कर इनके सेवन से आमजन को बचाने के लिए प्रयत्न करने होंगे. हालांकि कैंसर के सही कारण का पता नहीं चला है, लेकिन शोध बताते हैं कि कुछ जोखिम भरे कारक किसी व्यक्ति में कैंसर के विकास की आशंका को बढ़ा सकते हैं, जैसे उम्र और परिवार का इतिहास. इन्हें नियंत्रित नहीं किया जा सकता है. 

जीवनशैली के विकल्प जो कैंसर की आशंका को बढ़ाते हैं, उनमें धूम्रपान, मोटापा, व्यायाम की कमी और खराब आहार शामिल हैं. इनकी रोकथाम बड़ी हद तक अपने हाथ में है. सरकार को इस रोग के मरीजों के लिए अवसंरचना के क्षेत्र में और अधिक निवेश करना चाहिए. साथ ही इस रोग का इलाज किफायती होना चाहिए. 

टॅग्स :कैंसर
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