प्रभु चावला
सत्ता का अंतर्विरोध यह है कि यह उनके हाथ जला डालता है, जो जनमत को कठोर तलवार समझने की गलतफहमी पाल लेते हैं. जब डोनाल्ड ट्रम्प जैसे नेता अपने जनमत को भरोसे के बजाय डंडे की तरह इस्तेमाल करते हैं, ‘अमेरिका फर्स्ट’ के भ्रामक नारे को गति देने के लिए दूसरे देशों पर भारी टैरिफ थोप देते हैं, तब वे प्रतिद्वंद्वियों से ज्यादा अपना नुकसान करते हैं.
ट्रम्प के टैरिफ भारत के आर्थिक हृदय पर वज्रपात की तरह हैं. इससे फार्मास्युटिकल्स (12.2 अरब डॉलर), परिधान (8 अरब डॉलर), इलेक्ट्रॉनिक्स तथा ऑटोमोबाइल्स क्षेत्र को 50 फीसदी टैरिफ का सामना करना पड़ेगा, जिससे जीडीपी में 0.50 फीसदी से ज्यादा की कमी आने की आशंका है.
इस तूफान में मांग बढ़ाकर, निवेश आकर्षित कर और प्रतिद्वंद्वी चीन की मैन्युफैक्चरिंग शक्ति को चुनौती देकर भारत के लिए अपनी नियति बदलने का अवसर भी है. इसके लिए हमारे आर्थिक मॉडल में बदलाव जरूरी है, जिसमें आपूर्ति पर जोर है, पर जो मांग बढ़ाने में सफल नहीं हो पाई.
मांग बढ़ाने के लिए 15 लाख से अधिक सालाना कमाने वाले मध्यवर्ग को 30 से 40 फीसदी के आयकर के बोझ से अविलंब राहत देनी होगी. नीति आयोग के 2024 के आकलन के मुताबिक, सालाना 15 लाख से अधिक कमाने वालों पर आयकर घटाकर 15 फीसदी करने से इन लोगों को कुछ बचत होगी, जिससे अर्थव्यवस्था को करीब 50 अरब डॉलर उपभोग के लिए उपलब्ध होंगे.
ग्रामीण भारत में, जहां 2024 में उपभोग की वृद्धि दर शहरों की 6.2 प्रतिशत की तुलना में 4.5 फीसदी रही, सीधे नगद हस्तांतरण आवश्यक हैं. दो लाख करोड़ रुपए की पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना को विस्तार देते हुए 10 करोड़ ग्रामीण परिवारों को मासिक पांच हजार रु. मुहैया कराने से ग्रामीण मांग में 10 फीसदी वृद्धि हो सकती है, जिससे जीडीपी में 0.5 प्रतिशत की वृद्धि संभव है.
रोजगार वृद्धि पर ध्यान देना जरूरी है. रक्षा, ग्रामीण बुनियादी ढांचे, साफ-सफाई, जल संरक्षण और सड़क परिवहन में 100 फीसदी सीधे विदेशी निवेश की इजाजत देने और इनमें तकनीक हस्तांतरण को अनिवार्य बनाने से रोजगार का परिदृश्य बदल सकता है. सालाना आठ फीसदी की दर से बढ़ने वाला देश का 81 अरब डॉलर का रक्षा बाजार ही 2030 तक 12 लाख रोजगार दे सकता है.
कोई कानून सिर्फ ट्रम्प द्वारा और ट्रम्प के लिए नहीं हो सकता. भारत पर 50 फीसदी का टैरिफ और डॉलर की जगह वैकल्पिक मुद्रा अपनाने पर ब्रिक्स देशों पर 100 फीसदी टैरिफ लागू करने की धमकी बताती है कि अमेरिका को बहुध्रुवीय विश्व के उभार का डर है. भारत को चाहिए कि वह विश्व व्यापार को पुनर्परिभाषित करने के लिए ब्रिक्स का नेतृत्व करे, डॉलर को परे हटाए और अमेरिका के आर्थिक राष्ट्रवाद को पटरी से उतारे. ब्रिक्स देशों के साथ भारत के 250 अरब डॉलर का व्यापार 2024 में 15 फीसदी की दर से बढ़ा. पर उच्च टैरिफ इस क्षेत्र की संभावनाओं में बड़ी बाधा है.
सीआईआई के मुताबिक, ब्रिक्स देशों के बीच पांच फीसदी के औसत टैरिफ के साथ मुक्त व्यापार समझौता लागू हो तो 2030 तक निर्यात और 60 अरब डॉलर बढ़ सकता है. वर्ष 2026 में ब्रिक्स ट्रेड समिट की मेजबानी भारत को इस क्षेत्र में वैश्विक शक्ति बना सकती है.
यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और आसियान (2024 में 50 अरब डॉलर का निर्यात) के साथ व्यापार समझौतों से भारत के विश्वगुरु बनने का सपना साकार हो सकता है. ट्रम्प की टैरिफ तानाशाही ने भारत को विजयी होने का अवसर दिया है. टैक्स घटाकर, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में बंदिशें हटाकर और तकनीक के क्षेत्र में प्रगति कर भारत एक प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था बन सकता है.