वरिष्ठ पत्रकार। प्रिंट मीडिया से पत्रकारिता करियर शुरू करने वाले पुण्य प्रसून बाजपेयी 1996 में 'आज तक' से जुड़े। पिछले दो दशकों में पुण्य प्रसून एनडीटीवी, ज़ी न्यूज़, एबीपी न्यूज़ इत्यादि चैनलों में काम कर चुके हैं। पुण्य प्रसून विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित स्तम्भ भी लिखते हैं।Read More
चालीस बरस बाद फिर वही सवाल है कि क्या बांग्लादेश के अवैध शरणार्थियों को नागरिकता देकर असमिया संस्कृति ही अल्पसंख्यक तो नहीं हो जाएगी. चालीस साल पहले जो चुनाव के लिए सड़क पर निकले थे. ...
अब तो लोगों के अस्तित्व से खुला खिलावाड़ शुरू हो चुका है और जन आक्रोश न पनपे व संकट राजनीति पर न आए इसके लिए गाहे-बगाहे सभी नेता पार्टीलाइन छोड़ कर एक भी हो जाते हैं और जनता की परेशानियों के बीच जायके का मजा भी लेते हैं. तो आपको इसके लिए हाल ही की एक ...
जीएसटी और टैक्स में भी सरकारी रिसिप्ट कम हो चुकी है. फिर कॉर्पोरेट को टैक्स में रियायत देने से भी बाजार में रौनक लौटी नहीं है. तो आखरी सवाल यही है कि क्या सरकार रईसों पर वेल्थ टैक्स बढ़ा दे और उस पैसे को किसान-मजदूर और मध्यम तबके की खरीद ताकत को बढ़ाने ...
इस प्रकिया में दो सवाल भी उठे. पहला, इसमें उन आम लोगों का क्या दोष जिन्होंने को-ऑपरेटिव बैंक में भरोसे के तहत अपना पैसा जमा किया कि रिटर्न अच्छा मिलेगा. दूसरा - क्या आने वाले वक्त में को-ऑपरेटिव बैंकों की तर्ज पर सरकारी बैंकों पर भी रोक लगेगी ...
अब दुनिया के टॉप 300 यूनिवर्सिटी में भी भारत का कोई शिक्षण संस्थान नहीं है. फिर भारत अपनी जीडीपी और तीन ट्रिलियन की इकोनॉमी समेटे ऐसा देश है जहां शिक्षा पर सबसे कम बजट (जीडीपी का 1.8 फीसदी) है. दुनिया में सबसे कम रिसर्च भारत में ही होते हैं और.. ...
चंद्रशेखर फरवरी 1991 में देश का बजट तक नहीं रख पाए थे. विश्व बैंक और आईएमएफ ने हर सुविधा-मदद खींच ली थी. तब महंगाई दर 8.4 फीसदी पर आ गई थी. उसी के बाद 1991 में पी.वी. नरसिंह राव के प्रधानमंत्नी बनते ही देश में आर्थिक सुधार के कदम उठाए गए. ...
डायरेक्ट टैक्स पिछले बार की तुलना में 63,000 करोड़ कम हो गए. फिर विदेशी निवेशकों ने भारत से पैसा निकालना शुरू कर दिया. शेयर बाजार डगमग हुआ. लोगों के सामने भविष्य में सिकुड़ती अर्थव्यवस्था का खाका उभरा. मार्केट से कैश गायब हो गया. ...