आज नदी के नाम पर नाला रह गया है। इसकी धारा पूरी तरह सूख गई है। जहां कभी पानी था, अब वहां बालू-रेत उत्खनन वालों ने बहाव मार्ग को ऊबड़-खाबड़ और दलदली बना दिया है। ...
न कोई मंच, न अतिथि, न माला या स्वागत- गांव के किसी मंदिर में, कस्बे के किसी चबूतरे पर या किसी के घर के आंगन में या फिर खुले मैदान में- कभी बीस तो कभी 200, कभी उससे भी ज्यादा लोग एकत्र होते हैं. रघुपति राघव राजाराम- के गान से सभा शुरू होती है और फिर व ...
किसान मेहनत कर सकता है, अच्छी फसल दे सकता है, लेकिन सरकार में बैठे लोगों को भी उसके परिश्रम के माकूल दाम, अधिक माल के सुरक्षित भंडारण के बारे में सोचना चाहिए। ...
जून 2022 में गोविंदबल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान (जीबीएनआईएचई) द्वारा जारी रिपोर्ट 'एनवायरनमेंटल एसेसमेंट ऑफ टूरिज्म इन द इंडियन हिमालयन रीजन' में कड़े शब्दों में कहा गया था कि हिमालयी क्षेत्र में बढ़ते पर्यटन के चलते हिल स्टेशनों पर द ...
जिन पहाड़ों, पेड़ों, नदियों ने पांच हजार साल से अधिक तक मानवीय सभ्यता, अध्यात्म, धर्म, पर्यावरण को विकसित होते देखा था, वह बिखर चुके थे। न सड़क बच रही है न मकान, न ही नदी के किनारे। सरकार ने भी कह दिया कि जोशीमठ को खाली करना होगा। ...
कभी कानपुर के चमड़ा कारखाने वहां की शान हुआ करते थे, आज यही यहां के जीवन के लिए चुनौती बने हुए हैं. रानिया, कानपुर देहात और राखी मंडी, कानपुर नगर आदि में गंगा में अपशिष्ट के तौर पर मिलने वाले क्रोमियम की दहशत है. वह तो भला हो एनजीटी का जो क्रोमियम कच ...
तीस्ता नदी का 83 फीसदी हिस्सा भारत में और 17 फीसदी हिस्सा बांग्लादेश में है. सिक्किम और उत्तरी बंगाल के छह जिलों के करीब एक करोड़ बाशिंदे खेती, सिंचाई और पेयजल के लिए इस पर निर्भर हैं. ...