पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: अमृत तालाब बना सकते हैं भारत को फिर से 'पानीदार'
By पंकज चतुर्वेदी | Published: December 17, 2022 01:37 PM2022-12-17T13:37:22+5:302022-12-17T13:38:54+5:30
आजादी के 75 साल के अवसर पर देश के हर जिले में 75 सरोवरों की योजना पर काम हो रहा है।
भारत के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में भले ही खेती-किसानी का योगदान महज 17 फीसदी हो लेकिन आज भी यह रोजगार मुहैया करवाने का सबसे बड़ा माध्यम है। ग्रामीण भारत की 70 प्रतिशत आबादी का जीवकोपार्जन खेती-किसानी पर निर्भर है। लेकिन दुखद पहलू यह भी है कि हमारी लगभग 52 फीसदी खेती इंद्र देवता की मेहरबानी पर निर्भर है।
महज 48 फीसदी खेतों को ही सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है और इसमें भी भूजल पर निर्भरता बढ़ने से बिजली, पंप, खाद, कीटनाशक के मद पर खेती की लागत बढ़ती जा रही है। एक तरफ देश की बढ़ती आबादी के लिए अन्न जुटाना हमारे लिए चुनौती है तो दूसरी तरफ लगातार घाटे का सौदा बनती जा रही खेती-किसानी को हर साल छोड़ने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है।
अब यह किसी से छुपा नहीं है कि सिंचाई की बड़ी परियोजनाएं लागत व निर्माण में लगने वाले समय की तुलना में कम ही कारगर रही हैं। ऐसे में समाज को सरकार ने अपने सबसे सशक्त पारंपरिक जल-निधि तालाब की ओर आने का आह्वान किया है। आजादी के 75 साल के अवसर पर देश के हर जिले में 75 सरोवरों की योजना पर काम हो रहा है।
22 अप्रैल 2022 को प्रारंभ की गई इस योजना में देश के प्रत्येक जिले में 75 जलाशय निर्माण का लक्ष्य रखा गया है। 3 दिसंबर 2022 तक देश में कुल 91226 स्थानों का चयन किया गया, जबकि 52894 स्थानों पर काम भी शुरू हो गया। सरकारी आंकड़े कहते हैं कि ऐसे 25659 तालाब बन कर भी तैयार हो गए।
तालाब केवल इसलिए जरूरी नहीं हैं कि वे पारंपरिक जलस्रोत हैं, तालाब पानी सहेजते हैं, भूजल का स्तर बनाए रखते हैं, धरती के बढ़ रहे तापमान को नियंत्रित करने में मदद करते हैं और उससे बहुत से लोगों को रोजगार मिलता है। सन् 1944 में गठित 'फेमिन इनक्वायरी कमीशन' ने साफ निर्देश दिए थे कि आने वाले सालों में संभावित पेयजल संकट से जूझने के लिए तालाब ही कारगर होंगे। कमीशन की रिपोर्ट लाल बस्ते में कहीं दब गई।
आजादी के बाद इन पुश्तैनी तालाबों की देखरेख करना तो दूर, उनकी दुर्दशा करना शुरू कर दिया गया। चाहे कालाहांडी हो या बुंदेलखंड या फिर तेलंगाना, देश के जलसंकट वाले सभी इलाकों की कहानी एक ही है। इन सभी इलाकों में एक सदी पहले तक कई-कई सौ बेहतरीन तालाब होते थे। यहां के तालाब केवल लोगों की प्यास ही नहीं बुझाते थे, यहां की अर्थव्यवस्था का मूल आधार भी होते थे। मछली, कमलगट्टा , सिंघाड़ा, कुम्हार के लिए चिकनी मिट्टी; यहां के हजारों-हजार घरों के लिए खाना उगाहते रहे हैं। तालाबों का पानी वहां के कुओं का जल स्तर बनाए रखने में सहायक होता था।