पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: जोशीमठ ही नहीं, खतरा तो समूचे हिमालय क्षेत्र को है

By पंकज चतुर्वेदी | Published: January 17, 2023 10:29 AM2023-01-17T10:29:52+5:302023-01-17T10:31:13+5:30

जून 2022 में गोविंदबल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान (जीबीएनआईएचई) द्वारा जारी रिपोर्ट 'एनवायरनमेंटल एसेसमेंट ऑफ टूरिज्म इन द इंडियन हिमालयन रीजन' में कड़े शब्दों में कहा गया था कि हिमालयी क्षेत्र में बढ़ते पर्यटन के चलते हिल स्टेशनों पर दबाव बढ़ रहा है.

Not only Joshimath the entire Himalayan region is in danger | पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: जोशीमठ ही नहीं, खतरा तो समूचे हिमालय क्षेत्र को है

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

Highlightsकुछ साल पहले नीति आयोग ने पहाड़ों में पर्यावरण के अनुकूल और प्रभावी लागत पर्यटन के विकास के अध्ययन की योजना बनाई थी. यह काम इंडियन हिमालयन सेंट्रल यूनिवर्सिटी कंसोर्टियम (IHCUC) द्वारा किया जाना था.इस अध्ययन के पांच प्रमुख बिंदुओं में पहाड़ से पलायन को रोकने के लिए आजीविका के अवसर, जल संरक्षण और संचयन रणनीतियों को भी शामिल किया गया था.

जब जोशीमठ पूरा उजड़ गया तब एक साथ कई सरकारी और निजी संस्थाएं सक्रिय हैं. आज केवल विस्थापन ही एकमात्र हल दिख रहा है. यह कोई एक दिन में तो हुआ नहीं, बहुत सी सरकारी रिपोर्ट्स बेनाम पड़ी रहीं जो बीते एक दशक से इस खतरे की तरफ आगाह कर रही थीं. आज यह समझना जरूरी है कि आज नहीं तो कल समूची हिमालय पर्वतमाला में इस तरह की त्रासदी आना अवश्यंभावी है. 

भारत में हिमालयी क्षेत्र का फैलाव 13 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, असम और पश्चिम बंगाल) में है, जो लगभग 2500 किलोमीटर है. भारत का मुकुट कही जाने वाली हिमाच्छादित पर्वतमाला की गोद में कोई पांच करोड़ लोग सदियों से रह रहे हैं. 

चूंकि यह क्षेत्र अधिकांश भारत के लिए पानी उपलब्ध करवाने वाली नदियों का उद्गम है, साथ ही यहां के ग्लेशियर धरती के गरम होने को नियंत्रित करते हैं, सो जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से यह सबसे अधिक संवेदनशील है. कुछ साल पहले नीति आयोग ने पहाड़ों में पर्यावरण के अनुकूल और प्रभावी लागत पर्यटन के विकास के अध्ययन की योजना बनाई थी. 

यह काम इंडियन हिमालयन सेंट्रल यूनिवर्सिटी कंसोर्टियम (IHCUC) द्वारा किया जाना था. इस अध्ययन के पांच प्रमुख बिंदुओं में पहाड़ से पलायन को रोकने के लिए आजीविका के अवसर, जल संरक्षण और संचयन रणनीतियों को भी शामिल किया गया था. जून 2022 में गोविंदबल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान (जीबीएनआईएचई) द्वारा जारी रिपोर्ट 'एनवायरनमेंटल एसेसमेंट ऑफ टूरिज्म इन द इंडियन हिमालयन रीजन' में कड़े शब्दों में कहा गया था कि हिमालयी क्षेत्र में बढ़ते पर्यटन के चलते हिल स्टेशनों पर दबाव बढ़ रहा है. 

इसके साथ ही पर्यटन के लिए जिस तरह से इस क्षेत्र में भूमि उपयोग में बदलाव आ रहा है वह अपने आप में एक बड़ी समस्या है. जंगलों का बढ़ता विनाश भी इस क्षेत्र के इकोसिस्टम पर व्यापक असर डाल रहा है. यह रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश पर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ और सीसी) को भेजी गई थी. 

इस रिपोर्ट में हिमाचल प्रदेश के लद्दाख में संरक्षित क्षेत्रों जैसे हेमिस नेशनल पार्क, चांगथांग कोल्ड डेजर्ट सैंक्चुअरी और काराकोरम सैंक्चुअरी पर संकट जताया गया था. साथ ही पर्यटकों के वाहनों और इसके लिए बन रही सड़कों के कारण वन्यजीवों के आवास नष्ट होने और जैवविविधता पर विपरीत असर की बात भी कही गई थी.

Web Title: Not only Joshimath the entire Himalayan region is in danger

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