पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: छोटी नदियों के लुप्त होने से नष्ट होता है जल-तंत्र

By पंकज चतुर्वेदी | Published: February 4, 2023 04:38 PM2023-02-04T16:38:12+5:302023-02-04T16:38:12+5:30

आज नदी के नाम पर नाला रह गया है। इसकी धारा पूरी तरह सूख गई है। जहां कभी पानी था, अब वहां बालू-रेत उत्खनन वालों ने बहाव मार्ग को ऊबड़-खाबड़ और दलदली बना दिया है।

Water conservation The disappearance of small rivers destroys the water system | पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: छोटी नदियों के लुप्त होने से नष्ट होता है जल-तंत्र

पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: छोटी नदियों के लुप्त होने से नष्ट होता है जल-तंत्र

प्यास और पलायन से गहरा नाता रखने वाले बुंदेलखंड के प्रमुख शहर छतरपुर की आबादी तीन लाख को पार कर रही है लेकिन यहां का जल संकट भी उतना ही गहरा रहा है। यहां कुछ-कुछ दूरी पर शानदार बुंदेला शासन के तालाब हैं लेकिन यहां के पुरखों ने हर घर पानी का जो तंत्र विकसित किया था वह आधुनिकता की आंधी में ऐसा गुम हुआ कि प्यास ने स्थायी डेरा डाल लिया। महाराजा छत्रसाल ने जब छतरपुर शहर को बसाया था तो उन्होंने आने वाले सौ साल के अफरात पानी के लिए जल–तंत्र विकसित किया था।

इस तंत्र में बरसात के पानी के नाले, तालाब, नदी और कुएं थे। ये सभी एक-दूसरे से जुड़े थे। यहां का ढीमर समाज इन जल निधियों की देखभाल करता और बदले में यहां से मछली, सिंघाड़े पर उसका हक होता। यह तो पहाड़ी इलाका है–नदी के उतार-चढ़ाव की गुंजाइश कम ही थी, फिर भी महाराज छत्रसाल ने तीन बरसाती नाले देखे- गठेवरा नाला, सटई रोड का नाला और चंदरपुरा गांव का बरसाती नाला।

इन तीनों का पानी अलग–अलग रास्तों से डेरा पहाड़ी पर आता और यह जल–धारा एक नदी बन जाती। चूंकि इसमें खूब सिंघाड़े होते तो लोगों ने इसका नाम सिंघाड़ी नदी रख दिया। अभी दो दशक पहले तक संकट मोचन पहाड़ियों के पास सिंघाड़ी नदी चौड़े पाट के साथ सालभर बहती थी। उसके किनारे घने जंगल थे। लेकिन बीते दो दशक में ही नदी पर घाट, पुलिया और सौंदर्यीकरण के नाम पर जम कर सीमेंट तो लगाया गया लेकिन उसमें पानी की आवक के रास्ते बंद कर दिए गए।

आज नदी के नाम पर नाला रह गया है। इसकी धारा पूरी तरह सूख गई है। जहां कभी पानी था, अब वहां बालू-रेत उत्खनन वालों ने बहाव मार्ग को ऊबड़-खाबड़ और दलदली बना दिया है। आज यहां बन गए हजारों मकानों का गंदा पानी सीधे सिंघाड़ी नदी में गिर कर उसे नाला बना रहा है।

कहानी केवल सिंघाड़ी नदी या बुंदेलखंड की नहीं है, समूचे भारत में छोटी नदियों को निर्ममता से मार दिया गया। कहा जाता है कि देश में ऐसी हजारों छोटी नदियां हैं जिनका रिकॉर्ड सरकार के पास है नहीं लेकिन उनकी जमीन पर कब्जे, बालू उत्खनन और निस्तार के बहाव के लिए वे नाला जरूर हैं। यह हाल प्रयागराज में संगम में मिलने वाली मनासईता और ससुर खदेरी नदी का भी है और बनारस की असी नदी का भी।

अरावली से गुरुग्राम होते हुए नजफगढ़ आने वाली साहबी नदी हो या फिर उरई शहर में नूर नाला बन गई नून नदी। बिहार-झारखंड में तो हर साल एकदम छोटी नदियां गायब ही हो जाती हैं। हमें यह समझना होगा कि जहां छोटी नदी लुप्त हुई, वहीं जल-तंत्र नष्ट हुआ और जल संकट ने लंगर डाल लिया।

Web Title: Water conservation The disappearance of small rivers destroys the water system

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