पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: बंपर पैदावार के बाद भी क्यों घाटे में रहते हैं किसान?

By पंकज चतुर्वेदी | Published: January 21, 2023 01:52 PM2023-01-21T13:52:15+5:302023-01-21T13:53:04+5:30

किसान मेहनत कर सकता है, अच्छी फसल दे सकता है, लेकिन सरकार में बैठे लोगों को भी उसके परिश्रम के माकूल दाम, अधिक माल के सुरक्षित भंडारण के बारे में सोचना चाहिए। 

Why do farmers remain in loss even after bumper crop? | पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: बंपर पैदावार के बाद भी क्यों घाटे में रहते हैं किसान?

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

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Highlightsपूरे देश की खेती-किसानी अनियोजित, शोषण की शिकार व किसान विरोधी है। देश के अलग-अलग हिस्सों में कभी टमाटर तो कभी अंगूर, कभी मूंगफली तो कभी गोभी किसानों को ऐसे ही हताश करती है।दिल्ली से सटे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में आए साल आलू की टनों फसल बगैर उखाड़े, मवेशियों को चराने की घटनाएं सुनाई देती हैं।

कुछ साल पहले तक टमाटर की लाली किसानों के गालों पर भी लाली लाती थी, लेकिन इस साल हालत यह है कि फसल तो बंपर हुई लेकिन लागत तो दूर, तोड़कर मंडी तक ले जाने की कीमत भी नहीं निकल रही। देश के कई हिस्सों में इस समय यह हालत है। खेतों में खड़ी फसल सड़ रही है। न तो ये पहली बार हो रहा है और न ही केवल टमाटर के साथ हो रहा है। उम्मीद से अधिक हुई फसल सुनहरे कल की उम्मीदों पर पानी फेर देती है। 

पूरे देश की खेती-किसानी अनियोजित, शोषण की शिकार व किसान विरोधी है। तभी हर साल देश के कई हिस्सों में अफरात फसल को सड़क पर फेंकने और कुछ ही महीनों बाद उसी फसल की कमी होने की घटनाएं होती रहती हैं। किसान मेहनत कर सकता है, अच्छी फसल दे सकता है, लेकिन सरकार में बैठे लोगों को भी उसके परिश्रम के माकूल दाम, अधिक माल के सुरक्षित भंडारण के बारे में सोचना चाहिए। 

हर दूसरे-तीसरे साल कर्नाटक के कई जिलों के किसान अपने तीखे स्वाद के लिए मशहूर हरी मिर्चों को सड़क पर लावारिस फेंक कर अपनी हताशा का प्रदर्शन करते हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में कभी टमाटर तो कभी अंगूर, कभी मूंगफली तो कभी गोभी किसानों को ऐसे ही हताश करती है। दिल्ली से सटे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में आए साल आलू की टनों फसल बगैर उखाड़े, मवेशियों को चराने की घटनाएं सुनाई देती हैं।

दुर्भाग्य है कि कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था वाले देश में कृषि उत्पाद के न्यूनतम मूल्य, उत्पाद खरीदी, बिचौलियों की भूमिका, किसान को भंडारण का हक, फसल-प्रबंधन जैसे मुद्दे गौण दिखते हैं। सब्जी, फल और दूसरी कैश-क्राॅप को बगैर सोचे-समझे प्रोत्साहित करने के दुष्परिणाम दाल, तेल-बीजों (तिलहनों) और अन्य खाद्य पदार्थों के उत्पादन में संकट की सीमा तक कमी के रूप में सामने आ रहे हैं।

किसानों के सपनों की फसल को बचाने के दो तरीके हैं- एक तो जिला स्तर पर अधिक से अधिक कोल्ड स्टोरेज हों और दूसरा स्थानीय उत्पाद के अनुसार खाद्य प्रसंस्करण केंद्र खोले जाएं। हमारे देश में इस समय अंदाजन आठ हजार कोल्ड स्टोरेज हैं लेकिन इनमें से अधिकांश पर आलू और प्याज का कब्जा होता है।

आज जरूरत है कि खेतों में कौन सी फसल और कितनी उगाई जाए, उसकी स्थानीय मांग कितनी है और कितने का परिवहन संभव है- इसकी नीतियां यदि तालुका या जनपद स्तर पर ही बनें तो पैदा फसल के एक-एक कतरे के श्रम का सही मूल्यांकन होगा। एक बात और, कोल्ड स्टोरेज या वेअर हाउस पर किसान का नियंत्रण होना चाहिए, न कि व्यापारी का कब्जा।

Web Title: Why do farmers remain in loss even after bumper crop?

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