कबीर अपने समय की धारा में ठहर कर विभिन्न प्रवृत्तियों से टकराते हुए टोक सकते थे, चेतावनी दे सकते थे और ललकार सकते थे कि आंख खोल कर देखने-समझने की जरूरत है. ...
हमारी निहायत व्यक्ति केंद्रित होती जा रही संस्कृति सिर्फ अहं भाव को संतुष्ट और प्रदीप्त कर रही है. वह हमारे आध्यात्मिक स्वभाव यानी आत्मा को दबाती जा रही है. ...
भारत में कानून बहुत हैं लेकिन चीन में व्यवस्था है. आपको कानून और व्यवस्था दोनों की जरूरत है. आर्थिक सुधारों की तुलना में प्रशासनिक सुधार करना बहुत कठिन होगा. ...
मालिक और संपादक के रिश्ते भी बदले हैं. सरकारी तंत्न की दखलंदाजी तथा प्रलोभन की वृत्ति ने भी मीडिया को प्रभावित किया है. तकनीकी प्रगति ने मीडिया को यथार्थ के बड़े ही करीब खड़ा कर दिया है और दर्शक के लिए उसे झुठलाना संभव ही नहीं होता. ...
सरकार की नई पारी विश्रम का अवसर नहीं बल्कि गहनता से पुन: सन्नद्ध होने के लिए जनता की पुकार है ताकि आमजनों का सही अर्थो में जीवन-स्तर सुधर सके. इसके लिए एक समावेशी दृष्टिकोण अपेक्षित होगा जिसमें बिना भेद-भाव के समाज के सभी वर्ग शामिल हों. ...
पता चला है कि ये बच्चे बड़े ही परिश्रमी थे और परीक्षा पद्धति के अनुरूप उन्होंने घोर तैयारी की थी. पर साथ में यह देख सुन कर शिक्षा से सरोकार रखने वालों के मन में कुछ दुविधा और संशय भी पैदा हो रहा है. इस बार अधिक अंक पाने वाले छात्नों की संख्या काफी है ...
इस बार के चुनाव में झूठ फरेब के साथ मतदाता को रिझाने से लेकर खुले आम अनियंत्रित असंसदीय, अशिष्ट भाषा का प्रयोग (जो चरित्न हनन की कोटि में आ सकता है), असंभव वादों की भरमार, जनता को लुभाने के लिए विभिन्न तरकीबों का उपयोग, जातीय समीकरण को आधार बना कर अस ...