गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉगः शिक्षा और परीक्षा का सामाजिक यथार्थ

By गिरीश्वर मिश्र | Published: May 14, 2019 07:24 AM2019-05-14T07:24:22+5:302019-05-14T07:24:22+5:30

पता चला है कि ये बच्चे बड़े ही परिश्रमी थे और परीक्षा पद्धति के अनुरूप उन्होंने घोर तैयारी की थी. पर साथ में यह देख सुन कर शिक्षा से सरोकार रखने वालों के मन में कुछ दुविधा और संशय भी पैदा हो रहा है. इस बार अधिक अंक पाने वाले छात्नों की संख्या काफी है.

board exam results: Social realization of education and examination | गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉगः शिक्षा और परीक्षा का सामाजिक यथार्थ

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इस बार विभिन्न बोर्ड-परीक्षाओं के परिणाम इस अर्थ में बड़े ही संतोषजनक रहे कि काफी संख्या में छात्न-छात्नाओं को परीक्षा में अप्रत्याशित ढंग से अत्यंत ऊंचे अंक मिले हैं. कुछ तो पूर्णाक को बस छूते-छूते रह गए. इन प्रतिभाओं का हार्दिक अभिनंदन. हमारी शुभकामना है कि ये जीवन में यशस्वी बनें. 

पता चला है कि ये बच्चे बड़े ही परिश्रमी थे और परीक्षा पद्धति के अनुरूप उन्होंने घोर तैयारी की थी. पर साथ में यह देख सुन कर शिक्षा से सरोकार रखने वालों के मन में कुछ दुविधा और संशय भी पैदा हो रहा है. इस बार अधिक अंक पाने वाले छात्नों की संख्या काफी है. इस विचित्न स्थिति के कई सकारात्मक अर्थ लगाए जा सकते हैं : विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता आशातीत रूप से बढ़ गई है,  बच्चे पहले से ज्यादा परिश्रम करने लगे हैं और उनकी बुद्धि का स्तर बढ़ गया है. 

दूसरी ओर ये नकारात्मक संभावनाएं भी कम बलवती नहीं प्रतीत होती हैं कि  यह परिणाम अनोखी वस्तुनिष्ठ परीक्षा पद्धति का चमत्कार है, परीक्षकों के द्वारा उत्तर पुस्तिकाओं के जांचने में अति उदारता (या गैरजिम्मेदाराना मूल्यांकन) का प्रसाद है, शिक्षा और परीक्षा के बीच जबर्दस्त यंत्नबद्ध तारतम्य है जो छात्नों को परीक्षा के लिए पूरी तरह तैयार कर देता है.

इन सभी बातों में कुछ न कुछ दम दिखता है और शायद सत्य इन सभी परिस्थितियों के इर्द-गिर्द बिखरा हुआ है न कि किसी एक खास बात से जुड़ा है.  यह सहज ही समझा जा सकता है कि परीक्षा परिणामों की उपर्युक्त स्थिति अनेक कारणों की साझी परिणति है, अत: किसी एक पर दोषारोपण करना अवांछित और व्यर्थ है. यह पूरी शिक्षा व्यवस्था पर एक ऐसी टिप्पणी है जिस पर सभी को गौर करना चाहिए.

फिर भी आजकल की परीक्षा में छात्न की किस प्रतिभा और योग्यता की जांच की जा रही है यह एक अत्यंत विचारणीय प्रश्न है. परीक्षा के प्रश्न के समाधान के लिए छात्न को अपनी स्मृति का उपयोग करना होता है. पुन:स्मरण, पहचान, अनुप्रयोग, समस्या-समाधान, समझ आदि अनेक तरह से स्मृति की प्रक्रियाओं का उपयोग किया जा सकता है.

 यह पूछे गए प्रश्न की प्रकृति पर निर्भर करता है कि किस पक्ष पर बल दिया जा रहा है. पहले निबंधात्मक प्रश्न अधिक होते थे जिनको जांचने में ज्यादा समय लगता था. दरअसल अब प्रश्न करने से अक्सर हम किनारा काटते हैं. ‘क्यों’ और ‘कैसे’ की  जगह ‘क्या’  तक ही हमारी जिज्ञासा चुकने लगती है. 

वस्तुनिष्ठ प्रश्न सोच-विचार के लिए ज्यादा आमंत्रित नहीं करते. उनके निर्माण में भी पाठ्यक्रम को ‘कवर’ करने की चिंता ही प्रमुख होती है. ऐसे में विद्यार्थी अधिकाधिक बिंदुओं को याद करने और परीक्षा काल में पुनरुत्पादन और पहचान करने का उद्यम करते हैं.  हम ‘पढ़ाकुओं’ का निर्माण करते हैं न कि सृजनशील मौलिक सोचने की क्षमता का. सत्य यह है कि खोज-बीन और गवेषणा की ओर उन्मुखता एक सहज स्वाभाविक जन्मजात प्रवृत्ति है. उसका आदर न कर हम बच्चे को रोबोट बनाने के उद्यम में लग जाते हैं.

Web Title: board exam results: Social realization of education and examination

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