गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: आज के दौर में कबीर की प्रासंगिकता

By गिरीश्वर मिश्र | Published: June 17, 2019 03:15 PM2019-06-17T15:15:21+5:302019-06-17T15:15:21+5:30

कबीर अपने समय की धारा में ठहर कर विभिन्न प्रवृत्तियों से टकराते हुए टोक सकते थे, चेतावनी दे सकते थे और ललकार सकते थे कि आंख खोल कर देखने-समझने की जरूरत है.

Girishwar Mishra's Blog: Kabir's Relevance in Today's Round | गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: आज के दौर में कबीर की प्रासंगिकता

गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: आज के दौर में कबीर की प्रासंगिकता

आज जबकि घटती सामाजिक समरसता के दौर में जीना दूभर होता जा रहा है. ऐसे में संत, कवि और जन-नायक कबीर बहुत याद आते हैं. लोक में रह कर लोक के अनुभव का सीधा साक्षात्कार करते हुए जिस बौद्धिक साहस का प्रमाण कबीर की वाणी में मिलता है वैसा आज के घोर यथार्थवादी साहित्यकारों में भी कम ही देखने को मिलता है.

कबीर अपने समय की धारा में ठहर कर विभिन्न प्रवृत्तियों से टकराते हुए टोक सकते थे, चेतावनी दे सकते थे और ललकार सकते थे कि आंख खोल कर देखने-समझने की जरूरत है. वे एक प्रतिरोध को आवाज दे रहे थे. उन्होंने ज्ञान, अध्यात्म और लोक-परंपराओं को बड़े करीब से जांच-परख कर गहन अमूर्त चिंतन को लोक के स्तर पर उतर कर व्यक्त करने और लोक से प्रभावी संवाद स्थापित करने की एक अनोखी कोशिश की थी.

ऐसे में उनके काव्य ने एक तरह के विश्व-कोश का रूप ले लिया जो सर्वजन सुलभ था. इसके लिए कबीर साहब की वाणी ने सहजता के व्याकरण को छोड़ कर किसी भी भाषिक या काव्यात्मक नियम को नहीं स्वीकार किया. भाषा का ऐसा पारदर्शी प्रयोग कितना प्रभावी था, यह इसी से प्रमाणित है कि उनकी वाणी अनपढ़ और प्रबुद्ध सबके लिए समान रूप से प्रासंगिक और सुग्राह्य हो गई.  आज वह भारत की सामाजिक स्मृति का एक अविस्मरणीय अध्याय या कहें हिस्सा बन चुकी है.  

 समय बीतने के साथ कबीर ज्यादा ही प्रासंगिक होते जा रहे हैं.  कबीर ने अपने जटिल समय के संश्लिष्ट यथार्थ को पकड़ने की और विकल्प ढूंढने की पुरजोर कोशिश की थी. इनकी रचनाओं के अंत:साक्ष्य से प्रकट होता है कि सांसारिक जीवन में अध्यात्म की प्रतिष्ठा धरती पर सह जीवन का मार्ग है. आज बढ़ती तीव्र भौतिकता के साए में जी रहे मनुष्य के लिए आध्यात्मिक होना ही औषधि है.
 

Web Title: Girishwar Mishra's Blog: Kabir's Relevance in Today's Round

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