गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: पीएम मोदी की नई पारी पर होगी सबकी नजरें
By गिरीश्वर मिश्र | Published: May 28, 2019 01:50 PM2019-05-28T13:50:36+5:302019-05-28T13:50:36+5:30
सरकार की नई पारी विश्रम का अवसर नहीं बल्कि गहनता से पुन: सन्नद्ध होने के लिए जनता की पुकार है ताकि आमजनों का सही अर्थो में जीवन-स्तर सुधर सके. इसके लिए एक समावेशी दृष्टिकोण अपेक्षित होगा जिसमें बिना भेद-भाव के समाज के सभी वर्ग शामिल हों.
लोकसभा के लिए संपन्न हुए ताजा आम चुनाव के परिणाम सबको चौंकाने वाले सिद्ध हुए हैं. इसमें एक तरफ जहां विरोधी दलों का कलरव अर्थहीन साबित हुआ वहीं दूसरी तरफ जाति, धर्म तथा क्षेत्न के दायरों से आगे बढ़ कर भारत की जनता ने स्पष्ट रूप से भाजपा में एक बार फिर विश्वास जताया है. इस बार जिस दृढ़ता के साथ मोदीजी को व्यापक समर्थन मिला है, वह ऐतिहासिक है.
मोदीजी को जो जनादेश मिला है वह यही कहता है कि पिछले पांच वर्षो में मोदी सरकार द्वारा जो कदम उठाए गए हैं उनको पुष्ट करने की आवश्यकता है. उनकी खामियों को सुधारते हुए उपेक्षित क्षेत्नों में ज्यादा काम करना होगा और तेजी से करना होगा. सरकार की नई पारी विश्रम का अवसर नहीं बल्कि गहनता से पुन: सन्नद्ध होने के लिए जनता की पुकार है ताकि आमजनों का सही अर्थो में जीवन-स्तर सुधर सके. इसके लिए एक समावेशी दृष्टिकोण अपेक्षित होगा जिसमें बिना भेद-भाव के समाज के सभी वर्ग शामिल हों.
शासकीय कार्य-विधि में अपारदर्शिता और लालफीताशाही आज की सबसे बड़ी चुनौतियां हैं जिनको समाप्त करना सुशासन की दिशा में पहली जरूरत है. ये आज अकर्मण्यता के लिए ढाल बन चुकी हैं. गौर से देखा जाए तो इनके मूल में मुख्य रूप से स्वार्थ, छल-कपट और अनैतिक आचरण होता है. हमारी पूरी कार्य-संस्कृति इनके चंगुल में अर्थात् ‘भ्रष्टाचार’ में फंस गई है.
कार्य विधि से ही जुड़ा हुआ एक और प्रश्न संस्थाओं की स्वायत्तता का है. शिक्षा, न्याय और प्रशासन आदि के आधारभूत क्षेत्नों में काम कर रही संस्थाओं को उनकी स्वायत्तता देकर ही उनसे अच्छा कार्य कराया जा सकता है न कि उन पर बाहरी नियंत्नण द्वारा. तभी उनसे कार्य के दायित्व (एकाउंटेबिलिटी) की भी अपेक्षा की जा सकेगी. शिक्षा का क्षेत्न ऐसा है जो युवतर होते भारत के लिए बड़ा ही चुनौती भरा है. भविष्य की आवश्यकता का आकलन करते हुए कई जरूरी कदम उठाने होंगे. यह बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि शिक्षा के मूलभूत संसाधन भी अभी तक सुनिश्चित नहीं हो पाए हैं और उनकी जरूरत बढ़ती ही जा रही है.