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ब्लॉग: भारत से गुस्सा दिखाने के लिए पाकिस्तान ने खोजा एक और बहाना...

By राजेश बादल | Updated: February 14, 2023 14:57 IST

जब अफगानिस्तान से नाटो सेना की वापसी हुई और अमेरिका ने तालिबान के साथ समझौता किया तो पाकिस्तान प्रसन्न मुद्रा में था. हालांकि अब समीकरण बदले नजर आ रहे हैं.

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एक बार फिर पाकिस्तान ने हिंदुस्तान से नाराज होने का नया कारण खोज लिया है. उसे तकलीफ है कि भारत उसके खूबसूरत पड़ोसी पहाड़ी देश अफगानिस्तान में दखल दे रहा है? भारत से उसे ऐतिहासिक कुढ़न है, जिसे वह अपने सर्वनाश की कीमत पर भी नहीं छोड़ना चाहता. भारत से गुस्सा दिखाने के लिए उसे हमेशा एक न एक बहाने की जरूरत होती है. अब उसने अफगानिस्तान के मसले पर मॉस्को शिखर बैठक का बहिष्कार किया है. 

पिछले सप्ताह रूस में जब भारत के सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल अफगानिस्तान में सुरक्षा के मसले पर पांचवीं शिखर बैठक में पहुंचे तो उसमें राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के अलावा चीन, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के प्रतिनिधि मौजूद थे. अफगानिस्तान को इस बैठक के लिए आमंत्रण नहीं भेजा गया था. 

कारण यह था कि अभी तक तालिबान सरकार को किसी देश ने मान्यता नहीं दी है. लेकिन शिखर वार्ता के एजेंडे पर अफगानिस्तान को पहले ही भरोसे में लिया गया था. शिखर सम्मेलन में पाकिस्तान की कुर्सी खाली पड़ी रही. यह देश पांच में से तीन वार्ताओं में शामिल नहीं हुआ है. तीसरी बैठक भारत में हुई थी. उसमें भी पाकिस्तान और चीन ने हाजिरी नहीं लगाई थी. 

पाकिस्तान ने मॉस्को वार्ता से अपनी अनुपस्थिति का मासूम सा कारण बताया. उसके विदेश विभाग की प्रवक्ता ने कहा कि पाकिस्तान उन्हीं बैठकों में शामिल होना पसंद करता है, जिनमें अफगानिस्तान की सुरक्षा और शांति पर सकारात्मक बातचीत होती है. यानी पाकिस्तान का निष्कर्ष है कि जिस चर्चा में रूस, चीन, ईरान और भारत जैसे बड़े मुल्क शामिल हों, वह नकारात्मक ही होगी.

दरअसल भारत के इस स्थायी आलोचक को नाराजगी है कि ईरान ने अफगानिस्तान के मसले पर इस धारावाहिक श्रृंखला की शुरुआत क्यों की? ईरान शिया बहुल मुस्लिम मुल्क है और शियाओं से पाकिस्तान की चिढ़ जगजाहिर है. बीते दिनों ईरान ने अपना बकाया भुगतान पाकिस्तान से मांगा था. 

पाकिस्तान के लिए इस समय कोई भी कर्ज चुकाना संभव नहीं है. इसके अलावा अफगानिस्तान से मजबूत कारोबारी संबंध बनाए रखने के लिए ईरान ने भारत की सहायता से चाबहार बंदरगाह बनाया था. इसका मकसद ईरान, रूस और भारत के बीच व्यापार को सुगम बनाना था. चीन और पाकिस्तान इस बंदरगाह के कारण असहज थे. उन्हें लगता है कि ग्वादर बंदरगाह के जवाब में चाबहार बनाया गया है, जो उनकी निगरानी कर सकता है. 

इस वजह से ईरान ने अफगानिस्तान में सामान्य हालात बहाल करने के लिए इन शिखर बैठकों की पहल की. बैठकों में भारत की सक्रिय उपस्थिति ने पाकिस्तान को बहिष्कार का फैसला लेने पर बाध्य कर दिया. तीसरा कारण अफगानिस्तान की तालिबानी हुकूमत से इन दिनों उसके संबंधों में आया तनाव है.

जब अफगानिस्तान से नाटो सेना की वापसी हुई और अमेरिका ने तालिबान के साथ समझौता किया तो पाकिस्तान प्रसन्न मुद्रा में था. तालिबान के साथ उसके मधुर रिश्ते रहे हैं. उसका ख्याल था कि अब अफगानिस्तान से भारत दूर हो जाएगा. पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने तब औपचारिक बयान दिया था कि उनका देश नहीं चाहता कि अफगानिस्तान में भारत किसी भी रूप में उपस्थित रहे. लेकिन बाद में कहानी उलट गई और तालिबान सरकार ने पाकिस्तान से ही दूरी बना ली. 

इन दिनों दोनों देशों की सीमा पर गंभीर तनाव है. गोलीबारी में कई पाकिस्तानी जवान मारे जा चुके हैं. तालिबान ने हाल ही में पाकिस्तान को 1971 की याद दिलाई थी. उसने कहा था कि पाकिस्तान अफगानिस्तान पर हमला करने की जुर्रत न करे. क्या ही दिलचस्प है कि जो देश एक समय अफगानिस्तान की धरती से भारत के खिलाफ आतंकवादी हमले संचालित करता था, अब वही पाकिस्तान कह रहा है कि अफगानिस्तान की धरती से उसके विरुद्ध आतंकवादी आक्रमणों को शह मिल रही है.

अफगानिस्तान बैठक के बाद भारत ने साफ-साफ ऐलान किया कि वह अफगानिस्तान के साथ हमेशा खड़ा रहेगा. इसके मद्देनजर इस साल भारतीय बजट में अफगानिस्तान के लिए 200 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है. तालिबान सरकार ने इसका स्वागत किया है. 

भारत का उद्देश्य है कि अफगानिस्तान की जमीन का उसके खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जाए, जैसा कि अभी तक पाकिस्तान करता रहा है. पाकिस्तानी फौज के आला अफसर तालिबान के साथ मिलकर अफीम के अवैध कारोबार में लगे हुए हैं. अफीम से हेरोइन बनाने वाली उनकी अपनी छोटी-छोटी रिफाइनरी हैं. 

हेरोइन की तस्करी से मिले पैसे से तालिबान नाटो सेना से मुकाबले के लिए हथियार खरीदता रहा है और पाकिस्तानी सेना भारत के खिलाफ आतंकवादियों को प्रशिक्षण देती रही है. अब तालिबान सत्ता में है और अंतरराष्ट्रीय मुख्यधारा में शामिल होने के लिए छटपटा रहा है.

वास्तव में अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता के लिए कई वैश्विक मंचों पर कवायद हो रही है. मॉस्को फॉर्मेट भी इसी का हिस्सा है. रूस ने 2017 में इसका आगाज किया था. उसमें सोवियत संघ से टूटे कुछ देशों के अलावा अफगानिस्तान, चीन, भारत, पाकिस्तान, रूस और ईरान भी शामिल रहे हैं. लेकिन उन दिनों अफगानिस्तान में निर्वाचित सरकार थी और तालिबान विद्रोही मुद्रा में था. 

इसकी दूसरी बैठक में भी अफगानिस्तान से रूस के बाजारों में तस्करी की हेरोइन को रोकना प्रमुख मुद्दा था. बैठक में पाकिस्तान और भारत - दोनों ने हिस्सा लिया था. इसके अलावा कतर में भी दोहा शिखर बैठक इसी मसले पर हुई थी. चीन भी इसी मसले पर अलग कॉन्फ्रेंस कर चुका है. अमेरिका तो कई वार्ताएं कर चुका है. पाकिस्तान इन सभी में शिरकत करता रहा है. उसे सिर्फ भारत के शामिल होने से परहेज है. अफगानिस्तान भारत को छोड़ नहीं सकता. भारत से ही उसे परदेसी मंचों पर मदद की उम्मीद है.

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