भूख से ऐसी मौत कोई पहली बार नहीं हुई है लेकिन इस पर संसद में भी हंगामा इसलिए हो गया कि यह दिल्ली में हुई है और इसकी खबर टीवी चैनलों और अखबारों को लग गई।
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गुरु और उनके आश्रमों या पाठशालाओं ने आज के बोर्डिग स्कूलों की तरह भूमिका निभाई है और छात्रों का पूरा बचपन तथा किशोरावस्था भी गुरुकुल में ही बीतती थी, जहां वे ब्रह्मचर्य का पालन करते थे। लेकिन तब भी ऐसा कोई नियम नहीं था कि वे किसी माह या दिन विशेष को
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पाकिस्तान इस समय आर्थिक संकट के साथ-साथ आतंकवाद के संकट से भी गुजर रहा है। इसलिए उन्हें दोनों के बीच संतुलन बनाना होगा। संतुलन बनाने के लिए यह भी संभव है कि वे चरमपंथियों का सहयोग लें जो सेना की भी पसंद होगी।
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मौत चाहे किसी भी कारण से हो, उसे उचित नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन बारिश के दौरान सड़क के गड्ढों से होने वाली इन मौतों के प्रति सरकार और नागरिकों - दोनों की तरफ से एक निराशाजनक चुप्पी दिखाई देती है।
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ऐसी मान्यता भी मिलती है कि गुरु से दीक्षा लिए बिना पिता को कन्यादान नहीं करना चाहिए। इस लोक विश्वास के मूल में गुरु के मार्गदर्शक होने की प्रबल भावना ही प्रमुख है। दूसरी ओर अनेक गुरुओं, महात्माओं और संतों की लंबी शिष्य परंपराएं चल रही हैं।
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स्वामी अग्निवेश की पिटाई करने वाले, इटावा के गांव में दबंगों के आदमियों द्वारा एक व्यक्ति को लाठी से पीटने वाले (और पुलिस द्वारा मरणासन्न इस व्यक्ति के परिजनों के खिलाफ ही मुकदमा लिखे जाने ) या पहलू खान, जुनैद या अखलाक को मारने वाले सभी यह जानते हैं
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जहां तक इमरान खान का सवाल है, उनसे तीन-चार बार मेरी लंबी मुलाकातें हो चुकी हैं। मैंने उनके दिल में भारत के प्रति जहर भरा हुआ कभी नहीं देखा लेकिन चुनाव के आखिरी दो दिनों में उन्होंने जो जुमलेबाजी की है, वह वैसी ही है, जैसी कि पाकिस्तानी फौज के अफसर कर
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अविश्वास प्रस्ताव लाना विपक्ष का जन्मसिद्ध अधिकार है। लेकिन उसे भी अस्वीकार कर दिया गया। इसलिए गले लगाने में कुछ भी गलत नहीं है। इस प्रकार राहुल की सोच शुक्रवार को कार्यरूप में परिणत हो गई।
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