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#KuchhPositiveKarteHain: Justice Hans Raj Khanna - एक आम आदमी जिसने अकेले ही लड़ी सच की लड़ाई देश की प्रधानमंत्री की तानाशाही के विरुद्ध

By मोहित सिंह | Updated: May 11, 2018 15:58 IST

जस्टिस हंस राज खन्ना: आपको विश्वास नहीं होगा कि कोई ऐसा भी इंसान हो सकता है जिसमें हो इतना साहस और दृढ़ता की अकेले ही भिड़ जाए सरकार के गलत इरादे से. क्या होगा कोई इतना साहसी आम आदमी? जो सब कुछ दाँव पर लगा कर अकेले ही खड़ा हो जाये देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री के विरुद्ध।

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किसी शेरनी का ही दूध लहू बनकर बह रहा होगा इस देश नायक की रगों में कि इसने अकेले ही ले लिया लोहा देश की प्रधानमंत्री की निरंकुशता से, जिसकी इसको सज़ा भी भुगतनी पड़ी लेकिन फिर भी नहीं डिगे इसके कदम.

हम बात कर रहे हैं जस्टिस हंस राज खन्ना (Justice Hans Raj Khanna) की जिन्होंने सरकार के खिलाफ लिया था मोर्चा जब उनके सभी जज अपनी कुर्सी बचाने हेतु डर कर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लगाये गए law and Order को दे रहे थे अनुमति।

1912 में अमृतसर, पंजाब में जन्मे जस्टिस हंस राज खन्ना (Justice Hans Raj Khanna), पंजाब के प्रसिद्ध वकील और स्वतंत्रता सेनानी सरब दयाल खन्ना के बेटे थे. बहुत ही छोटी उम्र में इनकी माँ की मृत्यु हो जाने की वज़ह से इनका लालन – पोषण इनकी दादी ने किया था. अपने पिता के पद चिन्हों पर चलते हुए इन्होने भी लॉ में स्नातक किया और अमृतसर में ही रह कर वकालत करने लगे.

जस्टिस खन्ना ने अपने कार्यकाल में बहुत ही बड़े – बड़े फैसले दिए थे लेकिन इनको भारत के इतिहास के पन्नों में सदा के लिए अमर करने वाला केस था Habeas Corpus case (ADM Jabalpur vs Shivkant Shukla).

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जस्टिस खन्ना को पूरा देश एक निडर और साहसी जज के तौर पर हमेशा याद रखेगा , इन्होने देश के इतिहास के सबसे काले और कलंकित दौर में देश की सरकार और प्रधानमंत्री के गलत फैसले के खिलाफ अकेले खड़ा होने की हिम्मत दिखाई और उनको इसका परिणाम भी भुगतना पड़ा.

Habeas Corpus case (ADM Jabalpur vs Shivkant Shukla): यह केस है भारतीय इतिहास का सबसे काला समय कहा जाने वाला दौर जब इंदिरा गांधी के देश भर में इमर्जेन्सी लागू कर दी थी.

12 जून 1975, इंदिरा गांधी को अपना election case के बाद बस इतना अधिकार भर रह गया था कि वो एक प्रभावहीन प्रधानमंत्री के तौर पर देश की सत्ता संभाल सकती थीं, उन्हें ना तो वोट करने का अधिकार रह गया था ना ही वो लोक सभा में कुछ बोल सकती थीं. गुस्से में बौखलायी इंदिरा गांधी ने अपने पद का गलत फ़ायदा उठाया और खुद को Rule by Decree का अधिकार दे दिया जिसके अंतर्गत उनको अधिकार मिल गया था तुरंत और किसी के भी द्वारा चुनौती ना दिया जाने वाला क़ानून बनाने का यानी अब पूरे देश में वो ही सर्वेसर्वा थीं, वो कभी भी, कोई भी क़ानून बना सकती थीं और किसी को भी हक़ नहीं था कि उनके बनाये कानून के विरुद्ध जा सके. पूरे देश में तानाशाही का माहौल बन गया था.

तानाशाही के इसी माहौल में अचानक से एक क़ानून पूरे देश में लागू कर दिया गया जिसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति विशेष – जिसके साथ बहुत ही बुरा बर्ताव हुआ हो या जिसके परिवार के सदस्यों को बिल कानूनी अधिकार के ही हिरासत में ले लिया गया हो, वो किसी न्याय के लिए कोर्ट में अपील करने का अधिकारी नहीं था और इस स्थिति का कोई भी बचाव संभव नहीं होगा।

इस कानून की जांच के लिए 5 जजों का एक पैनल बना जिसमें हंस राज खन्ना भी एक सदस्य थे. वो इन पाँचो जजों में अकेले थे जिन्होंने इस कानून के खिलाफ अपना फ़ैसला दिया जबकि बाक़ी 4 सदस्यों ने इस क़ानून को पारित करने में सरकार की मदद की और अपनी स्वीकृति का मोहर लगा दिया।

अपने फ़लसफ़े में जस्टिस हंस राज खन्ना (Justice Hans Raj Khanna) ने लिखा था  - “What is at stake is the rule of law… the question is whether the law speaking through the authority of the Court shall be absolutely silenced and rendered mute…”

टॅग्स :कुछ पॉजिटिव करते हैंइंदिरा गाँधी
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