पहलगाम हमले के बाद सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि सुरक्षा में चूक कैसे हो गई और जहां इतनी ज्यादा संख्या में पर्यटक थे, वहां पुलिस या अर्धसैनिक बलों के जवान क्यों नहीं थे. बहुत अंदर की खबर यह है कि अर्धसैनिक बलों की खुफिया शाखा ने 1 अप्रैल को ही यह जानकारी दे दी थी कि काफी समय से गायब मुवासिर नाम का आतंकवादी फिर से सक्रिय हो गया है.
संभवत: वह पाकिस्तान चला गया था लेकिन हाल के दिनों में वह भारत में आया और बड़ी वारदात को अंजाम देने की फिराक में था. इसके साथ ही खुफिया इनपुट यह भी था कि आसिफ शेख नाम का आतंकवादी रीनल कैंसर से जूझ रहा है और अपनी मौत से पहले वह कुछ बड़ा करना चाहता है. ये सारी जानकारी जम्मू-कश्मीर के एक आला अधिकारी को दी गई थी लेकिन इसे केवल एक सामान्य सूचना की तरह मान कर सतर्कता नहीं बरती गई.
हालांकि यह जानकारी नहीं थी कि हमला कहां हो सकता है लेकिन सबको पता है कि इस वक्त दक्षिणी कश्मीर आतंकवादियों का गढ़ बना हुआ है. सुरक्षा बलों का आकलन है कि कम से कम 60 से 70 विदेशी तथा 10 से 12 स्थानीय कश्मीरी आतंकवादी सक्रिय हैं.
यदि केवल इतना ध्यान रखा गया होता कि जहां जहां पर्यटक पहुंच रहे हैं, वहां-वहां सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था हो तो ऐसे हमले से बचा जा सकता था लेकिन कहीं न कहीं लापरवाही बरती गई! चलिए, यह मान लेते हैं कि चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा की व्यवस्था नहीं की जा सकती तो पर्यटकों को यह निर्देश तो दिया जा सकता था कि वे उन जगहों पर न जाएं जहां सुरक्षा की व्यवस्था नहीं है! सोशल मीडिया पर और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर कश्मीर की शांति का इतना ज्यादा ढिंढोरा पीटा जा रहा था कि पर्यटक यह भूल ही गए कि कहीं कोई हमला भी हो सकता है.
बैसरन घाटी, जहां घटना हुई है, पहलगाम से पांच किलोमीटर दूर है और वहां पैदल ट्रैकिंग करके या घोड़े से जाया जाता है. क्या जम्मू-कश्मीर पुलिस की ओर से ऐसी कोई व्यवस्था थी कि मिनी स्विट्जरलैंड कही जाने वाली इस वैली में जाने से लोगों को रोका जा सके? क्या घोड़े वालों को कोई आदेश था कि पर्यटकों को वहां लेकर न जाएं क्योंकि वहां सुरक्षा व्यवस्था नहीं है?
वास्तव में ऐसा कोई आदेश नहीं था और पर्यटकों को रोकने की भी कोई व्यवस्था नहीं थी. पर्यटकों को इस बात का दोषी भी नहीं ठहरा जा सकता कि वे क्यों गए? यदि सरकार कह रही है, मीडिया कह रहा है कि कश्मीर में अमन चैन की स्थिति है.
लोग देख रहे हैं कि मतदान हुआ और राज्य सरकार सत्ता में आ गई. मुख्यमंत्री अब्दुल्ला कह रहे हैं कि कश्मीर पर्यटकों का स्वागत कर रहा है तो लोग भरोसा करेंगे ही! यह हत्याकांड वास्तव में लोगों के भरोसे की भी हत्या है. खबर है कि हत्याकांड के बाद यदि बहुत से पर्यटकों ने घाटी छोड़ दी है तो बहुत से पर्यटक अभी भी कश्मीर की वादियों में घूम रहे हैं लेकिन उनके भीतर भी भरोसा तो कम हुआ ही होगा.
भरोसा कायम करने के लिए राज्य सरकार को उन अधिकारियों की नकेल कसनी चाहिए जो सुरक्षा बलों के इनपुट को हल्के में लेते हैं और पहलगाम जैसी घटना हो जाती है. वास्तव में सुरक्षा के लिए सतर्कता बहुत जरूरी है.