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हरीश गुप्ता का ब्लॉग: चौराहे पर खड़े हैं उद्धव ठाकरे के सांसद, संसद में भी साइलेंट मोड! आखिर क्या हैं इसके मायने

By हरीश गुप्ता | Published: August 11, 2022 9:11 AM

सूत्रों का कहना है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट शिवसेना के दोनों गुटों के बीच लड़ाई का फैसला नहीं कर देता तब तक सांसदों के बीच अनिश्चितता बनी रहेगी. उद्धव ठाकरे की एक और दुविधा कांग्रेस और एनसीपी के साथ रहते हुए हिंदुत्व के लिए लड़ने की है.

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प्रवर्तन निदेशालय की बदौलत तेज-तर्रार नेता संजय राऊत के न्यायिक हिरासत में जाने के साथ, उद्धव सेना के सांसद संसद में वस्तुत: साइलेंट मोड में चले गए हैं. चाहे वह लोकसभा हो जहां उसके सात सांसद हैं या राज्यसभा, जहां दो सांसद हैं, में कोई आवाज नहीं उठा रहा है. राज्यसभा में महंगाई की बहस पर भी उद्धव गुट के किसी सांसद ने कुछ नहीं कहा. एक अन्य फायर-ब्रांड सांसद प्रियंका चतुर्वेदी भी कुछ नहीं बोल रही हैं. ‘क्या कहें, जब हमारे नेता जेल में हैं!’ उन्हें एक साथी सांसद से कहते सुना गया. 

लोकसभा में सांसदों को नहीं पता था कि क्या करना है. अरविंद सावंत और विनायक राऊत अस्वस्थ थे और उपराष्ट्रपति चुनाव में मार्गरेट अल्वा के लिए मतदान भी नहीं कर सके. अन्य लोगों ने पिछली बेंच पर बैठकर कार्यवाही को यह सोचकर देखा कि शायद शिवसेना के दो गुटों के बीच कुछ पक रहा है. वे दिन गए जब ये सांसद संसद में और बाहर हर दिन गर्जना करते थे. 

यहां तक कि प्रश्नकाल के दौरान शिवसेना सांसदों की भागीदारी में भी आक्रामकता का अभाव था. अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट शिवसेना के दोनों गुटों के बीच लड़ाई का फैसला नहीं कर देता तब तक अनिश्चितता बनी रहेगी. याचिकाओं पर निर्णय लेने में यथास्थिति एकनाथ शिंदे गुट की तुलना में उद्धव गुट को अधिक नुकसान पहुंचाएगी. उद्धव की एक और दुविधा कांग्रेस और राकांपा के साथ रहते हुए हिंदुत्व के लिए लड़ने की है.

शीर्ष पर अभिषेक बनर्जी

ममता बनर्जी के सबसे ताकतवर मंत्री पार्थ चटर्जी पर प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी से अगर कोई खुश है तो वो हैं अभिषेक बनर्जी. टीएमसी के लोकसभा सांसद और ममता के भतीजे 2016 से मुख्यमंत्री से पार्थ को किनारे करने की गुहार लगा रहे थे क्योंकि वे पार्टी के टिकट बेचकर पैसे कमा रहे थे. ममता ने नहीं सुनी और टीएमसी में अभिषेक बनर्जी के बढ़ते दबदबे को संतुलित करने के लिए पार्थ चटर्जी को और अधिक शक्ति प्रदान की. 

जब पार्थ चटर्जी को 2016 में और 2021 में फिर से मंत्रालय में शामिल किया गया था तब विरोधस्वरूप अभिषेक बनर्जी शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं हुए. अब ईडी ने छापे में बड़े पैमाने पर नगदी और बेनामी संपत्तियों को जब्त किया तो ममता अकेली पड़ गईं. हालांकि अभिषेक और उनकी पत्नी भी ईडी के निशाने पर हैं लेकिन उन्हें कोर्ट से सुरक्षा मिली हुई है. जहां तक पार्थ चटर्जी का सवाल है, उनका सूरज डूब चुका है. 

अब ममता के पास अभिषेक बनर्जी का साथ लेने के अलावा और कोई उपाय नहीं है. वे स्वाभाविक लाभार्थी हो सकते हैं. लेकिन पश्चिम बंगाल में एक नई राजनीतिक पटकथा देखने को मिलेगी क्योंकि ममता बैकफुट पर हैं. जब वे अपनी लंबी यात्रा के दौरान अभिषेक के आवास पर दिल्ली में थीं तो चिंतित दिख रही थीं. क्या होगा अगर पार्थ चटर्जी इस बात का खुलासा कर दें कि वास्तव में करोड़ों की नगदी किसकी थी? पार्थ की सहयोगी अर्पिता मुखर्जी पहले से ही पूछताछकर्ताओं के सामने खुलासे कर रही हैं.

नीतीश कुमार की नजर दिल्ली पर

आखिरकार, नीतीश कुमार अपने दुश्मन लालू प्रसाद यादव के पास वापस चले गए, जो उनका समर्थन करने के लिए तैयार हैं. सौदे की रूपरेखा दिलचस्प है; नीतीश कुमार उत्तर भारतीय राज्यों का दौरा करेंगे और भाजपा के खिलाफ अभियान शुरू करेंगे. नीतीश कुमार एक चतुर राजनेता हैं और सही समय चुनते हैं. विपक्षी दल 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा का मुकाबला करने के लिए एक चेहरे की तलाश में थे. चूंकि राहुल गांधी यह देने में विफल रहे हैं, शरद पवार उम्रदराज हो रहे हैं और ममता बनर्जी भारी नगदी बरामदगी के बाद शांत हो गई हैं, इसलिए नीतीश कुमार मैदान में आ गए हैं. 

नीतीश कुमार भले ही कुर्मियों के नेता हों और उन्हें अन्य पिछड़े वर्गों का समर्थन नहीं हो, लेकिन वे अब एक केंद्रबिंदु के रूप में उभर सकते हैं जैसा कि 90 के दशक की शुरुआत में देखा गया था. नीतीश एक ईमानदार नेता की छवि रखते हैं और किसी भी पार्टी द्वारा उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगाए गए हैं. वे मुखर हैं, हिंदी में धाराप्रवाह बोलते हैं और अन्य समान विचारधारा वाली पार्टियों के समर्थन के साथ, उनके पास 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान लड़ाई लड़ने का मौका है. अगर योजना के अनुसार चीजें होती हैं तो भाजपा के लिए राह आसान नहीं हो सकती है.

राकेश अस्थाना की पहेली

राकेश अस्थाना की पहेली नमो प्रशासन में नौकरशाही को भ्रमित करती रहती है. गुजरात कैडर के 1984 कैडर के आईपीएस अधिकारी को सरकार का चहेता माना जाता है और आलोक वर्मा की सेवानिवृत्ति के बाद पदभार ग्रहण करने के लिए पूरी तरह तैयार थे. लेकिन वह फिर से बस चूक गए और चयन समिति द्वारा महाराष्ट्र के सुबोध कुमार जायसवाल को चुना गया. 

अस्थाना डीजी के रूप में बीएसएफ में चले गए और अपनी सेवानिवृत्ति से चार दिन पहले, 28 जुलाई, 2021 को एक वर्ष की अवधि के लिए दिल्ली के पुलिस आयुक्त बनाए गए. पता चला है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय में उनके और विस्तार के लिए प्रस्ताव तैयार था. चौंकाने वाली बात है कि जब हर चहेते अधिकारी को सेवा विस्तार मिल रहा है तो अस्थाना को रिटायर कैसे कर दिया गया. कई लोगों का मानना है कि उन्हें जल्द राजनीतिक पोस्टिंग मिल सकती है.

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