राजनीति में हजारों ऐसे नेता हैं, जो कुर्सीजीवी हैं. ‘जिस पार्टी की सत्ता, उस पार्टी के हम’ का नारा बुलंद करते हुए वे सदैव कुर्सी से चिपके रहते हैं. ऐसे राजनेता चुनाव से पहले मौसम वैज्ञानिक की तरह सत्ताधारी पार्टी की तरफ सरक लेते हैं. ...
‘तब तुम कहां थे’ पूछते वक्त विरोधी इतने मासूम हो लेते हैं कि वो सामने वाले की उम्र वगैरह नहीं देखते. मतलब, आज अगर 18 साल का युवा उदारीकरण का विरोध करे तो विरोधी पूछ सकते हैं कि तुम कहां थे, जब नरसिंह राव 1991 में अर्थव्यवस्था का उदारीकरण कर रहे थे? ...
देश में समय की पाबंदी की तो हालत ये है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षक कभी वक्त से नहीं पहुंचते. हद ये कि वहां बच्चे भी वक्त से पहुंचना अपना अपमान मानते हैं. ...
भारत में बूढ़े को जवान और नाटे को लंबा बनाने के विज्ञापन आम हैं. मजे की बात यह है कि ऐसे विज्ञापन कर अपनी दुकान चलाने वाले लाखों लोगों की दुकान बरसों बरस से चल भी रही हैं. अमीर-गरीब अपनी-अपनी हैसियत के मुताबिक खुद को ठगने वाला ठग खोज लेते हैं. ...
नए साल की पहली तारीख में जागने का आनंद अलग होता है. वरना, आजकल एक तारीख को लोग खुश कम दुखी ज्यादा होते हैं. पहली तारीख को खाते में वेतन आने का एसएमएस देखकर बंदा नाचे-गाए, उससे पहले घर कर्ज की ईएमआई खाते से निकल जाने का एसएमएस टों-टों कर जाता है. ...
पंचतंत्न की महान कहानी में जब दो बिल्लियां आपस में लड़ रही थीं, तब अचानक बंदर घुस आया था. द्विपक्षीय अब कुछ नहीं है. ना मुहब्बत, ना लड़ाई. फिर, द्विपक्षीय वार्ता का एक एंगल उसके बोरिंग होने से भी जुड़ा है. दो पक्ष मिलकर बात किए जा रहे हैं बस. ...