पीयूष पांडे का ब्लॉग: सोशल मीडिया युग का हाहाकारी यक्ष प्रश्न
By पीयूष पाण्डेय | Published: February 6, 2021 12:19 PM2021-02-06T12:19:05+5:302021-02-06T12:19:53+5:30
‘तब तुम कहां थे’ पूछते वक्त विरोधी इतने मासूम हो लेते हैं कि वो सामने वाले की उम्र वगैरह नहीं देखते. मतलब, आज अगर 18 साल का युवा उदारीकरण का विरोध करे तो विरोधी पूछ सकते हैं कि तुम कहां थे, जब नरसिंह राव 1991 में अर्थव्यवस्था का उदारीकरण कर रहे थे?
क्या आपको याद है कि पिछले शनिवार को दोपहर के खाने में आपने क्या खाया था? क्या आपको याद है कि बीते साल 26 जनवरी की शाम को आप क्या कर रहे थे? नहीं न. लेकिन, यदि आप सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं और देश के जटिल मुद्दों पर अपनी राय रखना पसंद करते हैं तो जरूरी है कि आप डायरी में रोजाना की तमाम गतिविधि विस्तार से लिखकर रखें. ऐसा इसलिए क्योंकि इन दिनों सोशल मीडिया पर आपकी किसी भी टिप्पणी पर एक सवाल जरूर उछलकर आएगा- तब तुम कहां थे?
जिस तरह समाचार चैनलों की बहस में किसी भी समझदार व्यक्ति का अपनी बात रखना लगभग असंभव है, उसी तरह सोशल मीडिया पर किसी भी समझदार व्यक्ति के लिए किसी भी विवादास्पद बात पर टिप्पणी करना नामुमकिन है. क्योंकि टिप्पणी करते ही विरोधी विचारधारा के लोग टिड्डी दल की तरह टूट पड़ते हैं.
उनका एक ही यक्ष प्रश्न होता है- तब तुम कहां थे? आप रिहाना के ट्वीट का विरोध करोगे तो लोग कहेंगे, जब इमरान खान भारत के विरोध में ट्वीट कर रहे थे, तब तुम कहां थे? कोरोना वैक्सीन में घोटाले की बात करो तो कहेंगे जब पोलियो वैक्सीन में घोटाला हो रहा था तब तुम कहां थे.
गिरती जीडीपी की बात करो तो कहेंगे कि जब देश का सोना गिरवी रखा गया था, तब तुम कहां थे? समझदार बंदा जिस बात का विरोध करेगा, विरोधी उसकी काट के लिए ‘तब तुम कहां थे’ का सवाल उठा देंगे. इस चक्कर में समझदार की समझदारी धरी की धरी रह जाती है, क्योंकि वो ‘तब’ कहीं नहीं था या उसे याद नहीं होता कि वो कहां था.
‘तब तुम कहां थे’ पूछते वक्त विरोधी इतने मासूम हो लेते हैं कि वो सामने वाले की उम्र वगैरह नहीं देखते. मतलब, आज अगर 18 साल का युवा उदारीकरण का विरोध करे तो विरोधी पूछ सकते हैं कि तुम कहां थे, जब नरसिंह राव 1991 में अर्थव्यवस्था का उदारीकरण कर रहे थे? बेचारा 18 साल का युवा यह भी बता नहीं सकता कि तब तो उसके मां-बाप भी नहीं मिले थे, वो क्या खाक बताएगा कि कहां था.
‘तब तुम कहां थे’ का जवाब आसान नहीं है. यक्ष महाराज ने युधिष्ठिर से ये सवाल कर लिया होता तो वो भी फंस जाते. बहरहाल, सोशल मीडिया युग में डंके की चोट पर विरोध करना है या उच्च कोटि का उंगलबाज बनना है तो इस प्रश्न का जवाब जानना आवश्यक है. इसलिए आप कुछ कीजिए या न कीजिए-डायरी जरूर रोजाना अपडेट कीजिए.