पीयूष पांडे का ब्लॉग: जाते साल को चरण स्पर्श बनाम नए साल का जश्न

By पीयूष पाण्डेय | Published: December 26, 2020 12:37 PM2020-12-26T12:37:32+5:302020-12-26T12:42:13+5:30

नए साल की पहली तारीख में जागने का आनंद अलग होता है. वरना, आजकल एक तारीख को लोग खुश कम दुखी ज्यादा होते हैं. पहली तारीख को खाते में वेतन आने का एसएमएस देखकर बंदा नाचे-गाए, उससे पहले घर कर्ज की ईएमआई खाते से निकल जाने का एसएमएस टों-टों कर जाता है.

Piyush Pandey blog: welcoming New Year Celebration vs bye-bye Year 2020 | पीयूष पांडे का ब्लॉग: जाते साल को चरण स्पर्श बनाम नए साल का जश्न

नए साल की पहली तारीख उम्मीदों की तारीख है.

पिछले साल तक लोग नए साल आने का जश्न मनाते थे. इस साल जाने वाले साल को साष्टांग चरण स्पर्श कर विदा करने को बेताब हैं. जिस तरह डकैती पड़ने के बाद डकैतों के चंगुल से सही-सलामत बचे लोग लुटे माल का दर्द भूलकर इस बात की खुशी मनाते हैं कि जान बची तो लाखों पाए, उसी तरह 2020 में जान बचाकर नए साल में पहुंच रहे लोग भी 31 दिसंबर को पुराने साल की विदाई का जश्न मनाने को बेताब हैं.

नए साल की पहली तारीख में जागने का आनंद अलग होता है. वरना, आजकल एक तारीख को लोग खुश कम दुखी ज्यादा होते हैं. पहली तारीख को खाते में वेतन आने का एसएमएस देखकर बंदा नाचे-गाए, उससे पहले घर कर्ज की ईएमआई खाते से निकल जाने का एसएमएस टों-टों कर जाता है. बंदा सांस छोड़े, उससे पहले कार की ईएमआई कट जाती है. जालिम जमाने में बंदे ने एक-दो पर्सनल लोन न ले रखे हों, ऐसा हो नहीं सकता क्योंकि बिना कर्ज लिए बंदे को बाजार अपना दुश्मन मानता है.

इसके बाद व्यक्ति बच्चों की स्कूल फीस, ट्यूशन फीस, बीमे का प्रीमियम और आलू-प्याज-पेट्रोल वगैरह के दाम याद कर पहली तारीख की शाम होते-होते वेतन का पोस्टमार्टम कर ब्लड प्रेशर बढ़ा लेता है. आदमी जैसे-तैसे महीना काटकर 30-31 तारीख तक आता है कि फिर पहली तारीख आ जाती है. यह उसी तरह है कि खिलाड़ी हांफते-गिरते जैसे-तैसे मैराथन पूरा करे लेकिन फिनिशिंग लाइन पर पहुंचकर ऐलान हो जाए कि फिर मैराथन में हिस्सा लेना है. नए साल की पहली तारीख उम्मीदों की तारीख है.

लोग तरह-तरह के प्रण लेते हैं. लेकिन, ध्यान रखिए, कोरोना वायरस अभी गया नहीं है. जिस तरह नेता रूप बदल-बदल कर मतदाताओं को उल्लू बनाते हैं, उसी तरह कोरोना रूप बदल-बदल कर शिकार के लिए आ रहा है. फिर, वक्त किसी के चाहने से कहां ठीक या खराब होता है?

वक्त ईश्वर की उस नौकरी में है, जिसमें उसे दुनिया का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति भी न निलंबित कर सकता है, न नौकरी से निकाल सकता है. जिस तरह आत्मा को न जलाया जा सकता है, न तलवार से काटा जा सकता है, वैसे ही वक्त का हाल है. वक्त सिर्फ गुजरता है. गुजरते-गुजरते कोरोना काल का वक्त भी नए साल की दहलीज पर आ गया है. आप पार्टी जरूर मनाइए, लेकिन जान पर खेलकर नहीं. क्योंकि जान है तो कई नए साल हैं. कई पार्टियां हैं.

Web Title: Piyush Pandey blog: welcoming New Year Celebration vs bye-bye Year 2020

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