पीयूष पांडे का ब्लॉग: तरह-तरह के ‘जीवियों’ की दास्तान

By पीयूष पाण्डेय | Published: February 13, 2021 12:17 PM2021-02-13T12:17:20+5:302021-02-13T12:23:51+5:30

राजनीति में हजारों ऐसे नेता हैं, जो कुर्सीजीवी हैं. ‘जिस पार्टी की सत्ता, उस पार्टी के हम’ का नारा बुलंद करते हुए वे सदैव कुर्सी से चिपके रहते हैं. ऐसे राजनेता चुनाव से पहले मौसम वैज्ञानिक की तरह सत्ताधारी पार्टी की तरफ सरक लेते हैं.

Piyush Pandey's blog: Tales of various 'living' | पीयूष पांडे का ब्लॉग: तरह-तरह के ‘जीवियों’ की दास्तान

सांकेतिक तस्वीर (फाइल फोटो)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने बताया कि एक होते हैं आंदोलनजीवी, जो कहीं आंदोलन हो, वहां दिखाई देते हैं. आंदोलन उनकी ऑक्सीजन है. वे आंदोलन के बिना छटपटाने लगते हैं. लेकिन, सच यह है कि देश में सिर्फ आंदोलनजीवी नहीं हैं, तरह-तरह के ‘जीवी’ हैं, जिनकी किसी न किसी विशेष चीज पर निर्भरता है.

राजनीति में हजारों ऐसे नेता हैं, जो कुर्सीजीवी हैं. ‘जिस पार्टी की सत्ता, उस पार्टी के हम’ का नारा बुलंद करते हुए वे सदैव कुर्सी से चिपके रहते हैं. ऐसे राजनेता चुनाव से पहले मौसम वैज्ञानिक की तरह सत्ताधारी पार्टी की तरफ सरक लेते हैं.

कभी-कभी ऐसे राजनेता इतनी तेजी से पार्टियां बदलते हैं कि उनकी विचारधारा हांफने लगती है. राजनीति में लाखों कार्यकर्ता ‘ठेकाजीवी’ हैं. उनके लिए राजनीति का मतलब ही ठेकाप्राप्ति है. वे बिना ठेके के नहीं रह सकते.

दरअसल, समाज में सक्रिय हर वर्ग परजीवी है. टेलीविजन न्यूज चैनल के पत्नकार टीआरपीजीवी हैं. समाचार चैनलों के कई संपादक बिना रोटी के रह सकते हैं, बिना टीआरपी के नहीं. टीआरपी के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं. भूत को नचा सकते हैं, बिना ड्राइवर की कार चलवा सकते हैं, फर्जी स्टिंग कर सकते हैं.

पत्रकारों से इतर डॉक्टरों की बात करें तो देश के लाखों डॉक्टर अब ‘ऑपरेशनजीवी’ हैं. उनके यहां सामान्य बुखार का मरीज भी आए तो वो उसका 100 तरह का टेस्ट कर ऑपरेशन कर डालते हैं. ऑपरेशन उनका धंधा है. कई निजी अस्पतालों में कंपनियों के सेल्समैन की तरह डॉक्टरों को कमाई का लक्ष्य दिया जाता है. बड़े लक्ष्य बड़े ऑपरेशन से पूरे होते हैं. ऐसे ऑपरेशनजीवी डॉक्टर आपको हर अस्पताल में मिल जाएंगे.

आप जिधर नजर दौड़ाइए, उधर कोई न कोई परजीवी खड़ा दिखाई दे जाएगा. मुहल्ला स्तर पर आपको कई गप्पजीवी दिख जाएंगे. वे बिना गप्प के जीवित नहीं रह सकते. कई आंटियां ‘परघर झांकू जीवी’ होती हैं. उन्हें अपने घर से अधिक पड़ोसी के घर की चिंता होती है. ऐसी आंटियों का खुफिया तंत्र बहुत मजबूत होता है और इनके पतियों ने अगर इन्हें घर-गृहस्थी के काम में न फंसाया हो तो ये रॉ-आईबी-सीबीआई-सीआईडी जैसी एजेंसियों में अच्छी भूमिका निभा सकती हैं.

आधुनिक समय में कई युवा सेल्फीजीवी हो गए हैं. वे बिना सेल्फी के नहीं रह सकते.कितनी अजीब बात है कि देश का गरीब बरसों बरस से ‘रोटीजीवी’ ही है. उसे जहां दो अदद रोटी की संभावना दिखे, वो वहां चला जाता है. लेकिन, इस रोटीजीवी की कहीं कोई चर्चा नहीं होती.

Web Title: Piyush Pandey's blog: Tales of various 'living'

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