पीयूष पांडे का ब्लॉग: वैक्सीन का टाइम से आना गजब हो गया

By पीयूष पाण्डेय | Published: January 9, 2021 02:30 PM2021-01-09T14:30:52+5:302021-01-09T14:33:07+5:30

देश में समय की पाबंदी की तो हालत ये है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षक कभी वक्त से नहीं पहुंचते. हद ये कि वहां बच्चे भी वक्त से पहुंचना अपना अपमान मानते हैं.

Piyush Pandey's Blog: Vaccine's arrival on time is amazing | पीयूष पांडे का ब्लॉग: वैक्सीन का टाइम से आना गजब हो गया

सांकेतिक तस्वीर (फाइल फोटो)

वक्त का पाबंद होना अच्छी बात है, लेकिन हम हिंदुस्तानी अमूमन ऐसा नहीं मानते. हिंदुस्तान में निचले स्तर से उच्च स्तर तक लेटलतीफी का अपना जलवा और विशिष्ट दर्शन है. हाल यह है कि वक्त की पाबंदी कई बार उलझन और मुश्किल पैदा कर देती है.

मसलन, भारत में लाखों लोग यह मानकर विलंब से स्टेशन पहुंचते हैं कि ट्रेन कभी समय से नहीं आएगी. ऐसा ही होता है. किंतु, यदा-कदा ट्रेन तय समय से या निर्धारित वक्त से चार-छह मिनट पहले प्लेटफार्म पहुंच जाती है तो कई यात्रियों की ट्रेन छूट जाती है.

कुछ यात्नी यह सोचकर ट्रेन में नहीं चढ़ते कि यह संभवत: कोई दूसरी ट्रेन है. इसी तरह, शादी से लेकर जन्मदिन के समारोहों में आयोजक कार्ड पर मेहमानों को बुलावे का जो वक्त बताते हैं, उस निर्धारित वक्त पर मेहमान कभी नहीं पहुंचते.

जिस तरह भारतीय राजनीति में सत्ताधारी दल और विपक्ष के बीच एक अलिखित समझौता होता है कि एक-दूसरे पर आरोप भले कुछ भी लगाएं लेकिन दोनों दल एक दूसरे के किसी बड़े नेता को जेल नहीं भेजेंगे, उसी तरह आयोजक और मेहमानों के बीच वक्त को लेकर एक अलिखित समझौता होता है.

दिक्कत तब होती है कि जब मेहमान कार्ड में छपे वक्त पर आयोजन स्थल पर पहुंच जाते हैं. कई बार हाल यह होता है कि वहां दरी भी नहीं बिछी होती. कुछ मौकों पर तो मेहमान ही पंखा उठाते देखे गए हैं. आप किसी कार्यक्र म में नेता को बुला लीजिए, वो वक्त से नहीं पहुंच सकता.

सरकारी स्कूलों में शिक्षक कभी वक्त से नहीं पहुंचते. हद ये कि वहां बच्चे भी वक्त से पहुंचना अपना अपमान मानते हैं. एक सरकारी शिक्षक अपने खास मित्र हैं. एक बार मैंने पूछ लिया- आप वक्त से स्कूल क्यों नहीं जाते. उन्होंने मुझे उसी तरह घूरा, जिस तरह असहज करने वाला सवाल पूछने पर नेता पत्रकार को घूरता है.

उन्होंने कहा, ‘एक बार मैं समय से स्कूल पहुंचा तो दो घंटे सिर्फ उस चपरासी को खोजने में व्यर्थ हो गए, जिसे समय से स्कूल का दरवाजा खोलना था.’ सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर वक्त से नहीं पहुंच पाते. उनकी लेटलतीफी के चक्कर में भले कई मरीज समय से कई साल पहले भगवान के पास पहुंच जाएं, लेकिन डॉक्टरों को फर्क नहीं पड़ता.

उनका मानना होता है कि डॉक्टर का काम मरीजों का जीवन बचाना है, और वो यह काम बड़ी शिद्दत से अपने निजी क्लीनिक में करते ही हैं. इस देश में कोई सरकारी फाइल समय से आगे नहीं बढ़ती. पुलिस वक्त पर एफआईआर दर्ज नहीं करती. लाखों कंपनियों में वक्त पर वेतन नहीं मिलता.

देरी हर जगह है. लेकिन कोरोना से निपटने वाली वैक्सीन बहुत वक्त से आ गई है. ये अपने आप में किसी चमत्कार से कम नहीं.

Web Title: Piyush Pandey's Blog: Vaccine's arrival on time is amazing

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