विचार करने वाली बात है कि आखिर फारूक इतना संतुलित और संयमित रुख क्यों अपना रहे हैं? क्या इतने दिनों तक दुनिया से दूर रहने के बीच उन्होंने जम्मू-कश्मीर के बदले हुए हालात से समझौता कर लिया है? या भविष्य में क्या किया जाए या किया जाना चाहिए इस प्रश्न को ...
अभी जाति के जो आंकड़े उपलब्ध हैं वो 1931 की जनगणना पर आधारित हैं. उसके आधार पर मंडल आयोग ने अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की और उसे स्वीकार कर लिया गया. ...
देश अमेरिका, हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन के साथ ही दुनिया के अनेक प्रमुख देशों के लोग और राजनेता उन्हें सुन रहे हैं. इसलिए उनके भाषण का मुख्य फोकस अवश्य भारत और अमेरिका था, लेकिन उसका आयाम विस्तृत था. ...
भाजपा का प्रदेश नेतृत्व इस मुगालते में था कि केजरीवाल ने 2015 के अपने चुनावी वायदों को पूरा नहीं किया है तथा अब उनकी छवि पुरानी आंदोलनकारी भी नहीं है, इसलिए उनको जनता के बीच कठघरे में खड़ा कर पराजित करना कठिन नहीं होगा. वे भूल गए कि केजरीवाल परंपरागत ...
यह बात सही है कि भारत के चुनावों में बाहुबल एवं धनबल का प्रभाव रहा है. 1980-90 के दशक के चुनाव बाहुबलियों एवं धनबलियों के प्रभाव से इतने डरावने हो गए थे कि सज्जन लोग चुनाव लड़ने तक से डरने लगे थे. हालांकि आज का सच वह नहीं है. 1993 के बाद से चुनाव आयो ...
अगर अर्थव्यवस्था को गति देना है तो बाजार में मांग बढ़ाना जरूरी है. मांग बढ़ने से ही उत्पादों की बिक्री होती है, फिर उत्पादन होता है जिसमें रोजगार भी मिलता है, निर्यात होता है तथा बैंकों का कर्ज और वापसी का चक्र चलता है. निर्मला सीतारमण की समस्या यह ...
भाजपा एक विचारधारा वाले संगठन परिवार का घटक है. इस कारण इसके अध्यक्ष की जिम्मेवारी इस मायने में ज्यादा है कि मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से लेकर अन्य संगठनों के साथ तालमेल बिठाकर काम करना होता है. ...
भाजपा को पूरे संगठन परिवार का साथ मिलता है तथा समर्थकों में भी ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है जो उसके कार्यों से उत्साहित होकर स्वयं विरोधियों का सामना करने उतर रहे हैं. किंतु यह तब तक अपर्याप्त है और सफलता की पंक्तियों में बड़े प्रश्नचिह्न हैं जब तक पार् ...