अवधेश कुमार का ब्लॉगः चौंकाने वाले नहीं हैं दिल्ली के परिणाम
By अवधेश कुमार | Published: February 12, 2020 07:22 PM2020-02-12T19:22:20+5:302020-02-12T19:22:20+5:30
भाजपा का प्रदेश नेतृत्व इस मुगालते में था कि केजरीवाल ने 2015 के अपने चुनावी वायदों को पूरा नहीं किया है तथा अब उनकी छवि पुरानी आंदोलनकारी भी नहीं है, इसलिए उनको जनता के बीच कठघरे में खड़ा कर पराजित करना कठिन नहीं होगा. वे भूल गए कि केजरीवाल परंपरागत राजनेता नहीं हैं.
दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम ने शायद ही किसी को चौंकाया होगा. हां, इसके विश्लेषण को लेकर अवश्य कई राय हो सकते हैं. आरंभ से ही पूरा चुनाव आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल की ओर एकपक्षीय लग रहा था. भाजपा नेतृत्व केजरीवाल के पक्ष में सहानुभूति और समर्थन की लहर की काट करने में सफल नहीं हो पा रहा था. भाजपा के चाणक्य शाह को स्वयं कूदना पड़ा.
सच तो यह है कि केजरीवाल पिछले एक वर्ष से चुनाव के मोड में आ गए थे. आप उनके वक्तव्यों, तेवर तथा कार्यप्रणाली में आए परिवर्तनों को साफ-साफ देख सकते थे. सच कहें तो महिलाओं को मुफ्त बस यात्र, चुनाव के पूर्व महीने में ज्यादातर लोगों के बिजली बिल को माफ कर देना तथा पानी के बिल में भारी माफी ने इस चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
भाजपा का प्रदेश नेतृत्व इस मुगालते में था कि केजरीवाल ने 2015 के अपने चुनावी वायदों को पूरा नहीं किया है तथा अब उनकी छवि पुरानी आंदोलनकारी भी नहीं है, इसलिए उनको जनता के बीच कठघरे में खड़ा कर पराजित करना कठिन नहीं होगा. वे भूल गए कि केजरीवाल परंपरागत राजनेता नहीं हैं. वैसे भी केजरीवाल की रणनीति है कि दिल्ली में जो अच्छा हुआ, विकास हुआ उसका श्रेय लो तथा जो नहीं हुआ उसके लिए यह बताओ कि केंद्र करने नहीं दे रहा, एक महत्वपूर्ण भूमिका कांग्रेस के प्रदर्शन ने निभाई.
2015 में कांग्रेस के मतों में 15 प्रतिशत की गिरावट आई एवं वे सारे मत आप के खाते चले गए. इस कारण भाजपा 32 प्रतिशत मत पाते हुए भी तीन सीटों तक सिमट गई थी. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 22 प्रतिशत से ज्यादा मत काट लिया तो आप तीसरे स्थान पर सिमट गई. शीला दीक्षित के देहांत के बाद लोकसभा चुनाव में लड़ाई में आने का संकेत दे चुकी कांग्रेस फिर हाशिए पर चली गई. वैसे कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की रणनीति भी थी कि किसी तरह दिल्ली में भाजपा को रोकना है.