अवधेश कुमार का ब्लॉग: कठिन परिस्थितियों के बीच जोखिम उठाया है वित्त मंत्री सीतारमण ने

By अवधेश कुमार | Published: February 3, 2020 11:00 AM2020-02-03T11:00:22+5:302020-02-03T11:00:22+5:30

अगर अर्थव्यवस्था को गति देना है तो बाजार में मांग बढ़ाना जरूरी है. मांग बढ़ने से ही उत्पादों की बिक्री होती है, फिर उत्पादन होता है जिसमें रोजगार भी मिलता है, निर्यात होता है तथा बैंकों का कर्ज और वापसी का चक्र  चलता है. निर्मला सीतारमण की समस्या यह थी कि यदि उन्होंने उपभोक्ता मांग बढ़ाने के लिए बोल्ड कदम उठाए तो राजकोषीय घाटा और बढ़ जाएगा. 

Avadhesh Kumar blog: Finance Minister Sitharaman has taken a risk amidst difficult circumstances | अवधेश कुमार का ब्लॉग: कठिन परिस्थितियों के बीच जोखिम उठाया है वित्त मंत्री सीतारमण ने

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण। (फाइल फोटो)

निर्मला सीतारमण पिछले अनेक सालों में सबसे ज्यादा आर्थिक-वित्तीय चुनौतियों का सामना करने वाली वित्त मंत्नी हैं. यह बजट उन्होंने ऐसे समय प्रस्तुत किया है जब भारतीय अर्थव्यवस्था चतुर्दिक सुस्ती और दबावों से घिरी है. तो बजट का मूल्यांकन इस आधार पर होगा कि इसमें जो घोषणाएं हुई हैं, कदम उठाए गए हैं, वह चुनौतियों का मुकाबला करने में सफल होगा या नहीं? साफ है कि इस प्रश्न का उत्तर तभी मिलेगा जब हम यह समझ लेंगे कि वाकई अर्थव्यवस्था के सामने चुनौतियां क्या हैं? आर्थिक सुस्ती के कारण आर्थिक गतिविधियों में कमी आई है, विकास दर लगातार छह तिमाही में गिरती रही है, कर संग्रह उम्मीद से कम है, विनिवेश भी लक्ष्य से काफी दूर रुका हुआ है और खुदरा महंगाई दर पांच सालों में सबसे ऊपर चली गई है.

इस वित्त वर्ष के लिए कर संग्रह बजट में तय लक्ष्य से करीब 2 लाख करोड़ रुपये कम रह सकता है. 2019-20 के बजट में 24.59 लाख करोड़ रुपये के कर संग्रह का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन नवंबर तक केवल 20.8 लाख करोड़ हो पाया है. दिसंबर महीने में खुदरा महंगाई दर साढ़े पांच साल के उच्चतम स्तर 7.35 फीसदी पर पहुंच गई है. अगर अर्थव्यवस्था को गति देना है तो बाजार में मांग बढ़ाना जरूरी है. मांग बढ़ने से ही उत्पादों की बिक्री होती है, फिर उत्पादन होता है जिसमें रोजगार भी मिलता है, निर्यात होता है तथा बैंकों का कर्ज और वापसी का चक्र  चलता है. निर्मला सीतारमण की समस्या यह थी कि यदि उन्होंने उपभोक्ता मांग बढ़ाने के लिए बोल्ड कदम उठाए तो राजकोषीय घाटा और बढ़ जाएगा. 

कर संग्रह इतना है नहीं कि सार्वजनिक खर्च में भारी बढ़ोत्तरी हो. इसके लिए करों में वृद्धि करनी होगी और महंगाई बढ़ जाएगी. सीतारमण के समक्ष इनके बीच संतुलन बनाने की चुनौती थी. ऐसे में सबके सामने प्रश्न यही था कि वित्त मंत्नी सीतारमण के सामने सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज करने के साथ आम आदमी से लेकर उद्योग जगत को राहत देने की ऐसी चुनौती है जिनके बीच हकीकत और उम्मीदों के बीच तालमेल बनाना मुश्किल होगा.

इन परिप्रेक्ष्यों में यदि आप बजट को देखें तो कई प्रश्न पैदा होंगे, पर कम से कम निराश होने का कारण नहीं दिखेगा. न तो इसे एकदम शानदार बजट कहा जा सकता है और न ही अपेक्षा और उम्मीदों को नकारने वाला. हां, यह जरूर कहा जा सकता है कि वित्त मंत्नी ने कठिन परिस्थितियों में चुनौतियों का सामना करने का साहस दिखाया है, कई स्तरों पर जोखिम मोल लिया है. इन परिस्थितियों में राजकोषीय घाटा पर जोखिम लेना जरूरी था और वह लिया गया है. 

आर्थिक सर्वेक्षण पेश करने के बाद पत्नकारों से बातचीत करते हुए वित्त मंत्नालय के आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमणियन ने कहा कि विकास को जितना नीचे गिरना था गिर गया, अब इसके ऊपर उठने का समय है. किंतु समूची स्थिति का विश्लेषण यह भी बता रहा था कि एकाएक बहुत ऊंची छलांग की संभावना नहीं है. इसलिए वर्ष 2020-21 में विकास दर को 6-6.5 प्रतिशत तक रखने का लक्ष्य व्यावहारिक कहा जा सकता है.

सर्वेक्षण में देश को पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य बनाने के प्रति प्रतिबद्धता थी तो बजट में इस दिशा में कदमों की घोषणा है. हालांकि इस समय हमारी अर्थव्यवस्था 2.9 खरब डॉलर की है. इसमें 2.1 खरब डॉलर जोड़ने के लिए व्यापक आर्थिक सुधारों की आवश्यकता थी. आप कह सकते हैं कि बजट में वित्त मंत्नी ने इस दिशा में थोड़ा साहस दिखाया है. 

आर्थिक सर्वेक्षण में इस बात का संकेत मिल गया था कि निर्मला सीतारमण का मुख्य फोकस सुस्ती को धक्का देकर विकास गति को तेज करना होगा. जिसके लिए वे बचत, निवेश और निर्यात बढ़ाने वाला बजट पेश करेंगी. हम कामना कर सकते हैं कि जो कुछ घोषणाएं हुई हैं, वे अमल में आएं एवं वित्त मंत्नी की उम्मीदें और उनके बजट भाषण से जगी देश और दुनिया की अपेक्षाएं पूरी हों.

Web Title: Avadhesh Kumar blog: Finance Minister Sitharaman has taken a risk amidst difficult circumstances

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