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रूस कोविड-19 के खिलाफ चला रहा टीकाकरण अभियान, लोगों की मिली जुली प्रतिक्रिया

By भाषा | Updated: December 17, 2020 15:35 IST

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मॉस्को, 17 दिसंबर (एपी) रूस में विकसित कोविड-19 के टीका ‘स्पूतनिक वी’ पर लोगों की मिली जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली है। पहले चरण में स्वास्थ्यकर्मियों और शिक्षकों का टीकाकरण किया जा रहा है लेकिन मॉस्को में कई क्लीनिकों पर टीका लगाने के लिए लोग नहीं आ रहे।

रूस की सरकार और मीडिया ने ‘स्पूतनिक वी’ टीका को 11 अगस्त को मंजूरी दिए जाने के बाद इसे बहुत बड़ी उपलब्धि बताया था। लेकिन, आम लोगों के बीच टीका को लेकर बहुत उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं दिख रही और कई लोग इसके कारगर और सुरक्षित होने को लेकर संदेह जता रहे हैं।

प्रायोगिक परीक्षण के सभी चरण को पूरा नहीं करने के लिए रूस को आलोचना का भी सामना करना पड़ा है। देश और विदेश के विशेषज्ञों ने टीका के मूल्यांकन का काम पूरा होने तक इसके व्यापक इस्तेमाल करने के खिलाफ आगाह भी किया। हालांकि प्रशासन ने सुझावों की उपेक्षा करते हुए अग्रिम मोर्च पर काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों समेत जोखिम वाले समूहों को टीका देने की शुरुआत कर दी।

टीका विकसित करने वाले गमालेया इंस्टीट्यूट के प्रमुख अलेक्जेंडर गिंट्सबर्ग ने पिछले सप्ताह कहा था कि रूस के डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों को टीके की खुराक दी जा चुकी है।

मॉस्को से करीब 500 किलोमीटर दूर वोरोनेझ में आईसीयू विशेषज्ञ अलेक्जेंडर जस्टसेपीन ने भी टीके की खुराक ली। उन्होंने कहा कि टीका लेने के बावजूद वह एहतियात बरत रहे हैं क्योंकि इसके असर के बारे में अध्ययन अब तक पूरा नहीं हुआ है।

ब्रिटेन ने दो दिसंबर को फाइजर के टीके को मंजूरी दे दी थी। इसके बाद टीका निर्माण को लेकर होड़ में पीछे छूटने की आशंका के चलते रूस ने भी बड़े स्तर पर टीकाकरण की शुरुआत कर दी। रूस ने अपने देश में विकसित टीके को महज कुछ दर्जन लोगों पर क्लीनिकल परीक्षण के बाद ही उसे इस्तेमाल करने की मंजूरी दे दी। टीका निर्माताओं ने इसे ‘स्पूतनिक वी’ नाम दिया। इस तरह इसका संदर्भ शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ द्वारा 1957 में छोड़े गए पहले उपग्रह के साथ जोड़ा गया।

ब्रिटेन में टीके की खुराक सबसे पहले बुजुर्गों को दी जा रही है जबकि ‘स्पूतनिक वी’ की खुराक 18 साल से 60 के उम्र के लोगों को दी जा रही है।

टीका निर्माताओं ने कहा है अध्ययन से पता चला है कि स्पूतनिक टीका 91 प्रतिशत कारगर रहा। करीब 23,000 प्रतिभागियों पर किए गए अध्ययन से यह नतीजा निकाला गया। जबकि, पश्चिमी देशों ने परीक्षण में ज्यादा लोगों, अलग अलग पृष्ठभूमि, उम्र के लोगों को शामिल किया।

रूस में सर्वेक्षण कराने वाले एक स्वतंत्र संगठन लेवादा सेंटर ने अक्टूबर में रायशुमारी करायी थी, जिसमें 59 फीसदी लोगों ने कहा था कि वे टीका की पेशकश करने के बावजूद इसे नहीं लेना चाहेंगे।

कुछ स्वास्थ्यकर्मियों और शिक्षकों से बातचीत करने पर चलता चला कि सही तरह से परीक्षण नहीं किए जाने के कारण वे टीका नहीं लेना चाहते हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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