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27 फरवरी दोपहर तीन बजे, दिल्ली के शिव विहार की एक खौफनाक कहानी

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: March 02, 2020 6:07 PM

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पिछले हफ्ते उत्तर पूर्वी दिल्ली जल रही थी. उसकी तपिश आज भी महसूस की जा सकती है. उत्तरपूर्वी दिल्ली की सड़कों अब तनावपूर्ण शांति है. फिलहाल आग बुझ चुकी है, अब पुलिस को अफवाहों से जूझना पड़ रहा है. दंगे रुक गए. अब जख्म के निशान हैं और दहशत की कहानियां एक-एक कर के बाहर आ रही हैं. कुछ किस्से पीड़ितों ने सुनाए, कुछ पुलिस वालों की जबानी हैं.  इन दंगो को कंट्रोल करने के लिए दिल्ली पुलिस के साथ रैपिड एक्शन फोर्स के जवान और अधिकारी भी मैदान में थे. वो 27 फरवरी का दिन था. जब आरएएफ के अधिकारी अशोक कुमार ने शिव विहार इलाके में दंगाई भीड़ में फंसे 4 लोगों को मौत के मुंह से जाने बचाया था. आरएएफ की 104 बटालियन  शिवविहार में ही तैनात थी. इसी बटालियन के सेकेंड इन कमांड अशोक कुमार के साथ उनके 19 साथी भी तैनात थे. दोपहर का वक्त था, तभी एक ऑटो रिक्शा चलाने वाले उनके पास पहुंचा और बोला कि वो जिन तीन सवारियों को लेकर आ रहा था उनको भीड़ ने पकड़ लिया है और वो उनको मार डालेंगे.जैसा ऑटो रिक्शा चलाने वाले ने बताया था वो हालात गंभीर थे. बिना देर किए अशोक कुमार मौके की ओर लपके. घटना स्ठल पर पहुंचना उस दिन कुछ ज्यादा ही मुश्किल था. हालात की तरह ही इलाके की तंग गलियां और नक्शा उनकी समझ से बाहर हो रहा था. वो 27 फरवरी की दोपहर तीन बजे का वक्त था. जब 22 साल का ऑटो रिक्शा चलाने वाला गाज़ियाबाद के लोनी से तीन सवारियों को लेकर दयालपुर ले कर जा रहा था. वो जैसे ही शिवविहार इलाके में घुसे पागल भीड़ ने उन पर हमला कर दिया.इस हमले में ऑटो रिक्शा ड्राइवर जैसे-तैसे वहां से निकलने में कामयाब हो गया और भागते हुए आरएएफ की टीम तक पहुंचा . अशोक कुमार याद करते हैं कि बिना समय गवाएं उन संकरी गलियों में मदद के वो घटनास्थल की और दौड़ पड़े. हमने देखा कि उग्र भीड़ में कई सौ लोग तो रहे ही होंगे. भीड़ ऑटो में बैठी सवारियों को बेरहमी से पीट रही थी . सबसे पहले हमने उस जगह जाने वाले रास्ते को ब्लॉक किया फिर बड़ी मुश्किल से भीड़ को वहां से भगाया. उस खौफनाक मंज़र को याद करते हुए आटो वाला कहता है कि उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि रास्ते में ऐसा कुछ होने वाला है. बस कुछ ही मिनटों में सैकड़ों लोगों की भीड़ ने हम पर हमला कर दिया. मैं ये सब देख कर सदमें में था. मुझे यकीन करने में कुछ समय लग गया कि मैं फंस चुका हूं.  आरएएफ वालों ने हमे बचा लिया बाद में हमें अस्पताल में भेजा. उस काली दोपहर को याद करते हुए आरएएफ अधिकारी अशोक कुमार कहते हैं कि हमें उस दिन भीड़ को काबू करने में आधा घंटा लग गया. पागल भीड़ के सामने हमारी खुद की जान भी मुश्किल में थी. लेकिन हम अपनी ट्रेनिंग की वजह से बच गये.  
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