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Jitiya Vrat: एक व्रत जिसकी शुरुआत मछली खाकर की जाती है, जानिए क्या है इससे जुड़ी परंपरा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 18, 2019 12:39 IST

Jitiya Vrat: बिहार, यूपी सहित नेपाल में भी किये जाने वाले जितिया व्रत का बहुत महत्व है। इस व्रत की शुरुआत अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नहाय-खाय के साथ हो जाती है और नवमी को पारण के साथ इसका समापन होता है।

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ठळक मुद्देJivitputrika Vrat 2019: संतान की खुशहाली और लंबी उम्र के लिए किया जाता है 'जितिया व्रत'जितिया व्रत के उपवास से पहले और इसके बाद खान-पान को लेकर अलग-अलग परंपरा है

Jivitputrika Vrat 2019: संतान की खुशहाली और उसकी लंबी उम्र की कामना के लिए किया जाने वाला 'जितिया व्रत' बिहार के मिथिलांचल सहित पूर्वांचल और कुछ हद तक नेपाल में काफी लोकप्रिय है। क्षेत्रीय परंपराओं के आधार पर किये जाने वाले इस व्रत में महिलाएं 24 घंटे या कई बार उससे भी ज्यादा समय तक के लिए निर्जला उपवास रखती है। इस व्रत को जीवित्पुत्रिका या जिउतिया भी कहते हैं। जितिया व्रत हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। 

वैसे इस व्रत की शुरुआत सप्तमी से नहाय-खाय के साथ हो जाती है और नवमी को पारण के साथ इसका समापन होता है। इस व्रत को शुरू करने को लेकर अलग-अलग क्षेत्रों में खान-पान की अपनी परंपरा है। यह परंपराएं बेहद दिलचस्प है। आईए, जानते जितिया व्रत के उपवास से पहले और बाद में खाये जाने वाली उन चीजों के बारे में जिन्हें लेकर मान्यता है कि इसे सेवन करना शुभ है।

Jitiya Vrat: जिउतिया व्रत से जुड़ी अनूठी परंपरा

मछली खाकर व्रत शुरू करने की परंपरा- हिंदू मान्यताओं में वैसे तो पूजा-पाठ के दौरान मांसाहार को वर्जित माना गया है लेकिन बिहार के कई क्षेत्रों में जिउतिया व्रत के लिए उपवास की शुरुआत मछली खाने से होती है। इसके पीछे चील और सियार से जुड़ी जितिया व्रत की ही एक पौराणिक कथा भी है। इस कथा के आधार पर मान्यता है कि मछली खाने से व्रत की शुरुआत करनी चाहिए। 

मरुआ की रोटी- इस व्रत से पहले नहाय खाय के दिन गेहूं की बजाय मरुआ के आटे की रोटी बनाने का भी प्रचलन है। इसे शुभ माना गया है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।

झिंगनी- बिहार के मिथिलांचल में कई जगहों पर मरुआ के आटे की रोटी के साथ मछली खाने की परंपरा है। साथ ही झिंगनी की सब्जी भी खाई जाती है। झिंगनी आम तौर पर शाकाहारी महिलाएं खाती हैं।

नोनी का साग- इस व्रत में नोनी का साग बनाने की भी परंपरा है। इसमें कैल्शियम और आयरन प्रचुरता में होता है। ऐसे में इसे लंबे उपवास से पहले खाने से कब्ज आदि की शिकायत नहीं होती और पाचन ठीक रहता है। 

ठेकुआ और पकौड़े- इस मौके पर उपवास के बाद बिहार में कई जगहों पर ठेकुआ और आलू या अन्य सब्जियों के पकोड़े बनाने का भी रिवाज है। चावल-दाल, मौसमी सब्जी और इन पकौड़ों के साथ उपवास तोड़ा जाता है।

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