Coronavirus: जानिए कितना खतरानाक है कोरोना वायरस, शरीर में घुसने के बाद कैसे हो जाती है मरीज की मौत? By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: March 16, 2020 06:49 AM 2020-03-16T06:49:43+5:30 2020-03-16T06:49:43+5:30
Next Next चीन से निकली महामारी कोरोना वायरस से दुनियाभर में अब तक 4,717 लोगों की मौत हो गई है और 127,810 अभी भी संक्रमित हैं। इनमें सबसे ज्यादा 3,169 मौत चीन में, उसके बाद इटली 827, ईरान 354, साउथ कोरिया 66 मौत हुई हैं। भारत में यह वायरस तेजी से फैल रहा है। देश में अब तक 62 मामले सामने आ चुके हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह वायरस संक्रमित व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। इसके अलावा खुली हवा में खांसने और छींकने, हाथ मिलाने या गले मिलने, किसी संक्रमित वस्तु को छूने और उसके बाद हाथ को मुंह या आंखों पर लगाने से भी फैलता है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना वायरस खांसी या छींकने से हवा में संचारित बूंदों के माध्यम से फैलता है। यह प्रभावित व्यक्ति से आस-पास के लोगों में नाक, मुंह या आंखों के माध्यम से शरीर के भीतर प्रवेश कर सकता है। इन बूंदों में वायरल के कण आपके नाक मार्ग के पीछे से आपके गले के पीछे की श्लेष्म झिल्ली में पहुंचकर कोशिकाओं में एक विशेष रिसेप्टर से जुड़ते हैं। कोरोना के यह कण कोशिकाओं को कमजोर करते हैं और उनके कामकाज को प्रभावित करते हैं। इस जगह पर वायरस के यह कण और अधिक मात्रा में बढ़ते रहते हैं।
जैसे ही वायरस के यह कण बढ़ने लगते हैं, तो वे बाहर निकलते हैं और वो गले के आसपास की कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं। ऐसा होने से अक्सर गले में खराश और गले में सूखी खांसी शुरू होने लगती है। यह कण गले में ब्रोन्कियल ट्यूब यानी सांस के नालियों को धीमा करने लगते हैं।
जब वायरस फेफड़ों में पहुंचता है, तो उनके श्लेष्म झिल्ली में सूजन हो जाती है। इससे एल्वियोली या फेफड़ों की थैली डैमेज हो सकती है। इतना ही नहीं इससे फेफड़ों को पूरे शरीर में घूमने वाले रक्त में ऑक्सीजन की आपूर्ति करने और रक्त से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने में बाधा पैदा होती है। अगर यहां सूजन आती है, तो यह ऑक्सीजन को श्लेष्म झिल्ली में तैरने के लिए और अधिक कठिन बना देता है।
फेफड़ों की सूजन और ऑक्सीजन का प्रवाह बिगड़ने से फेफड़ों में द्रव, मवाद और मृत कोशिकाएं भर सकते हैं। इससे फेफड़ों की बीमारी निमोनिया हो जाती है।
कुछ लोगों को सांस लेने में इतनी परेशानी होती है कि उन्हें वेंटिलेटर पर रखने की जरूरत होती है। सबसे खराब मामलों में, एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम के रूप में जाना जाता है। इसमें फेफड़ों में इतने अधिक तरल पदार्थ से भर जाते हैं कि सांस ही नहीं आता है और रोगी की मृत्यु हो जाती है।