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World Wetlands Day 2021:जम्मू कश्मीर में वेटलैंड्स की दशा खराब, कोई नहीं सुन रहा पुकार

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: February 2, 2021 14:24 IST

आर्द्रभूमि (wetland) ऐसा भूभाग होता है, जहां का बड़ा हिस्सा स्थाई रूप से या प्रतिवर्ष किसी मौसम में जल से डूबा रहता है।

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आज वेटलेंड दिवस है लेकिन लेकिन जम्मू कश्मीर के वेटलेंडों की पुकार कोई नहीं सुन रहा है जो इतने सालों से अपनी दशा पर कराह रहे हैं। हालत यह है कि जम्मू कश्मीर के करीब दर्जनभर वेटलेंडों की दशा आज इतनी बुरी हो चुकी है कि उन्हें वेटलेंड कहने में भी शर्म आती है। राज्य के कई वेटलेंडों को नेशनल लेवल का स्टेटस मिला हुआ है पर उनकी भी हालत अच्छी नहीं है।

हर साल वेटलेंड दिवस पर सरकार की ओर से वेटलेंडों को बचाने के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन हकीकत में यह दावे कागजी साबित होते हैं। इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि जम्मू कश्मीर के करीब दर्जन भर वेटलेंड, जिनके अस्तित्व को ही खतरा पैदा हो गया है।

कश्मीर के सबसे बड़े वेटलेंड होकरसार की भी यही दशा है। अतिक्रमण के कारण यह अब सिकुड़ने लगा है। डल झील पहले ही सिकुड़ चुकी है जहां प्रवासी पक्षियों का आवागमन प्रभावित हुआ है। वुल्लर झील के संरक्षण की भी योजनाएं सिर्फ कागजों तक ही सीमित हैं। अगर कोई आशा की किरण नजर आती है तो वह लद्दाख के वेटलेंडों से ही नजर आती है जहां अभी मानव के कदम उतनी संख्या में नहीं पहुंचे हैं।

मानसर जम्मू का एक बड़ा और प्रसिद्ध वेटलेंड है जो अपनी दिलकश झील के लिए भी जाना जाता है। 40 एकड़ क्षेत्र में फैले इस वेटलेंड की हालत पिछले कुछ सालों से दयनीय हो गई है। सरकार की लापरवाही के कारण ही झील के पानी का स्तर 6-7 फीट तक गिर गया है। सालों से बड़ी-बड़ी पाइपों के जरिए झील से पानी आसपास के गांवों को सप्लाई हो रहा है। इस मसले पर इस क्षेत्र को संरक्षित करने वाला वन्यजीव विभाग मात्र पत्र लिखकर ही खानापूर्ति करने में लगा हुआ है। यही हाल सुरईंसर झील का है जिसका क्षेत्र घटकर अब 35 एकड़ रह गया है।

मानसर से कुछ किमी की दूरी पर स्थित सुरईंसर झील के विकास के दावे तो सरकार ने किए हैं, पर इसके अस्तित्व को बचाने की दिशा में कोई प्रयास नहीं हुए। क्षेत्र के किसान संदीप का कहना है कि अगर यही हाल रहा तो अगले दस-बीस साल बाद झील का अस्तित्व ही मिट जाएगा।

भारत पाक सीेमा पर तारबंदी से बंटे हुए करीब पांच सौ एकड़ भूमि में फैला हुआ घराना वेटलेंड भी आज अपनी बर्बादी पर रो रहा है। यह सिकुड़ कर अब तालाब की शक्ल इसलिए अख्तियार करने लगा है क्योंकि गांववासी नहीं चाहते कि आने वाले हजारों प्रवासी पक्षी उनकी फसलों को चट कर जाएं। गांववाले अब पटाखे छोड़कर पक्षियों को भगा रहे हैं। वे वन्य विभाग से अपनी फसलों का मुआवजा मांग रहे हैं पर वन्य कानून में ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं है।यह कड़वा सच है कि पाकिस्तान से सटे आरएस पुरा में इंटरनेशनल बार्डर पर स्थित घराना वेटलेंड लगातार सिकुड़ रहा है जिसे बचाने के लिए तत्कालीन प्रदेश सरकार विधानसभा में घोषणा करने के 26 सालों बाद भी जमीन का अधिग्रहण नहीं कर पाई थी।

वहीं चिनाब नदी के किनारे पड़ने वाला परगवाल वेटलेंड भी अपनी कहानी कुछ इसी तरह से बयां कर रहा है। लगभग 48 एकड़ में फैले इस वेटलेंड की सरकार ने कभी सुध ही नहीं ली। कुकरेआल वेटलेंड का भी यही हाल है।

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