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अगर लोगों का विश्वास कम हुआ तो उच्चतम न्यायालय की प्रतिष्ठा पर होगा असर : न्यायमूर्ति भूषण

By भाषा | Updated: July 2, 2021 22:00 IST

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नयी दिल्ली, दो जुलाई न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने शुक्रवार को कहा कि अगर लोगों का विश्वास संस्था के प्रति कम हुआ तो निश्चित तौर पर ही उच्चतम न्यायालय की प्रतिष्ठा प्रभावित होगी। उन्होंने यह बात शीर्ष अदालत के न्यायाधीश पद से अवकाश प्राप्त करने से पहले आयोजित विदाई समारोह को संबोधित करते हुए कही।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण अयोध्या भूमि विवाद, आधार की संवैधानिक वैधता कायम रखने सहित कई महत्वपूर्ण निर्णय सुनाने वाली पीठ में शामिल थे। वह उस पीठ में भी शामिल थे जिसने व्यवस्था दी कि भारत के प्रधान न्यायाधीश ‘‘मास्टर ऑफ द रोस्टर’’ हैं। न्यायमूर्ति भूषण ने कहा कि उन्होंने अपने पांच साल के कार्यकाल में हमेशा शीर्ष अदालत की स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा की रक्षा करने और बढ़ाने के लिए काम किया।

न्यायमूर्ति भूषण शीर्ष अदालत से चार जुलाई को अवकाश प्राप्त करेंगे जिसके बाद उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या 26 रह जाएगी। उच्चतम न्यायालय में कुल 34 न्यायाधीशों के स्वीकृत पद हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘अदालतों की प्रतिष्ठा इस देश के लोगों के विश्वास पर टिकी है। अगर यह विश्वास कम हुआ तो निश्चित रूप से इस अदालत की प्रतिष्ठा भी प्रभावित होगी.... मुझे गर्व है कि मैं इस अदालत का हिस्सा रहा जिसने अपने फैसलों से लोकतंत्र और कानून के राज को मजबूत किया। मुझे देश के बेहतरीन न्यायाधीशों के साथ न्याय के लिए कार्य करने का जीवनपर्यंत अवसर और सौभाग्य मिला जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता।’’

अपने विदाई समारोह को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति भूषण ने याद दिलाया कि न्यायिक संस्था को न केवल न्यायाधीशों के अच्छे कार्यों के जरिये अपनी उपयोगिता और महत्व साबित करना होता है बल्कि वकीलों, अधिकारियों और कर्मियों के कार्यों से भी।

उन्होंने कहा कि वह न्यायपालिका को ‘‘न्याय के मंदिर’ के रूप में देखते हैं और न्यायधीशों को लोगों को न्याय देने के पवित्र कार्य के लिए चुना जाता है।

न्यायमूर्ति ने अपने कार्यकाल को याद करते हुए कहा, ‘‘मैं विश्वास और गर्व से कह सकता है कि मैं अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के दौरान ली गई शपथ पर अडिग रहा और बिना भय या हित, प्रेम या द्वेष के और संविधान और कानून को कायम रखने के लिए कार्य किया... न्याय केवल अदालतों से प्रेरित दया के आधार पर नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि न्याय लोगों के संवैधानिक अधिकारों की मान्यता और पालना है।’’

उन्होंने कहा कि वकील और न्यायधीश न्याय के मरक्त, रंग और तत्व हैं। बार से अपने रिश्तों पर बोलते हुए न्यायमूर्ति भूषण ने कहा कि यह केवल एक न्यायाधीश और वकील का मामला नहीं था बल्कि सुगम संवाद की प्रकृति थी और दोनों तरफ से कर्तव्यों का निर्वहन सुखद रहा।

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एसबीए)द्वारा आयोजित विदाई समारोह में डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति भूषण ने कहा कि जरूरी रियायत देकर न्याय देना परमार्थ या दया का कार्य नहीं है।

विदाई ले रहे न्यायमूर्ति भूषण ने कहा, ‘‘मैं जानता हूं कि अलग होना पीड़ादायक होता है और मैं इसे अभी अनुभव कर रहा हूं लेकिन मैं आपकों बताना चाहता हूं कि इस पीड़ा में भी आनंद का पुट है जैसे काले बादलों के बीच प्रकाश की पतली सी लकीर। किंतु मैं तब प्रसन्न हो जाता हूं जब मैं आप सभी के बारे में सोचता हूं। यही प्रकाश की पतली सी रेखा है।’’

प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण ने अपने संबोधन में कहा कि न्यायमूर्ति भूषण ‘‘ मानवतावादी’’ न्यायाधीश और भद्र पुरुष हैं जिन्होंने बार और पीठ को बराबर सम्मान दिया।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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