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विश्व पुस्तक मेला के पहले दिन उमड़ी पाठकों की भीड़, राजकमल के जलसाघर में बहुभाषिकता पर परिचर्चा के साथ शुरू हुआ कार्यक्रम

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 10, 2024 8:02 PM

World Book Fair 2024: जलसाघर में आयोजित कार्यक्रम के पहले सत्र में ‘बहुभाषिकता का सुख’ विषय पर परिचर्चा हुई। इस सत्र में अशोक वाजपेयी, अब्दुल बिस्मिल्लाह, जानकीप्रसाद शर्मा, हरीश त्रिवेदी, पंकज चतुर्वेदी और शिवांगी बतौर वक्ता मौजूद रहे।

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ठळक मुद्देहिन्दी की क्लासिक किताबों के साथ पाठक नई किताबों को भी खूब पसन्द कर रहे हैंविश्व पुस्तक मेला के पहले दिन कथा-साहित्य के साथ सामाजिक विमर्श की कथेतर कृतियों की मांग भी ज्यादा रहीजलसाघर में आयोजित कार्यक्रम के पहले सत्र में ‘बहुभाषिकता का सुख’ विषय पर परिचर्चा हुई

नई दिल्ली: विश्व पुस्तक मेला-2024 के पहले दिन प्रगति मैदान में पुस्तकप्रेमियों की भीड़ उमड़ पड़ी। राजकमल प्रकाशन समूह के स्टॉल जलसाघर में दिनभर पाठकों की जमघट लगी रही। पाठक अपनी पसंदीदा किताबों को खरीदने के साथ ही लेखकों से मिलने को लेकर भी काफी उत्साहित दिखे। हिन्दी की क्लासिक किताबों के साथ पाठक नई किताबों को भी खूब पसन्द कर रहे हैं। विश्व पुस्तक मेला के पहले दिन कथा-साहित्य के साथ सामाजिक विमर्श की कथेतर कृतियों की मांग भी ज्यादा रही।

‘बहुभाषिकता का सुख’ विषय पर हुई परिचर्चा 

जलसाघर में आयोजित कार्यक्रम के पहले सत्र में ‘बहुभाषिकता का सुख’ विषय पर परिचर्चा हुई। इस सत्र में अशोक वाजपेयी, अब्दुल बिस्मिल्लाह, जानकीप्रसाद शर्मा, हरीश त्रिवेदी, पंकज चतुर्वेदी और शिवांगी बतौर वक्ता मौजूद रहे। वहीं सत्र का संचालन मृत्युंजय ने किया। इस सत्र में वक्ताओं ने कहा कि जो हिंदी बोलते हैं हम उन्हें कहते हैं कि शुद्ध हिंदी बोल रहा है जबकि वह अच्छी हिंदी बोलता है। जो अच्छी हिंदी बोलते हैं उन्हें किसी ख़ास पक्ष से जोड़ लिया जाता है। उर्दू बोलते ही सेकुलर और अंग्रेज़ी का शब्द बोलते ही वह मॉडर्न हो जाता है। हिंदी वालों के लिए ऐसे खांचों में बंटने से बेहतर यही है कि वह उर्दू, अंग्रेज़ी और हिंदी मिश्रित भाषा का प्रयोग करें। बहुभाषी भारत की खूबसूरती को समझना है तो हमें कम से कम दस-दस शब्द देश की सभी भाषाओं के सीखने चाहिए। 

जातियों का लोकतंत्र शृंखला की तीन किताबों का लोकार्पण

दूसरे सत्र में अरविंद मोहन की जातियों का लोकतंत्र शृंखला की तीन किताबों जाति और चुनाव, जाति और आरक्षण, जाति और राजनीति का लोकार्पण हुआ। यह तीनों किताबें देश के चुनावी लोकतंत्र को समझने में बहुत उपयोगी है। इनमें भारत में जाति और लोकतंत्र में उसकी भूमिका पर अनेक लेख सांकलित किए गए हैं। इस शृंखला की तीन किताबों में से एक जाति और चुनाव अरविंद मोहन ने खुद लिखी है। वहीं शेष दोनों उन्होंने सम्पादित की है।

तीन कवियों की सम्पूर्ण कविताएँ संग्रहों का हुआ लोकार्पण

कार्यक्रम के तीसरे सत्र में मंगलेश डबराल, ओमप्रकाश वाल्मीकि और कुमार विकल की सम्पूर्ण कविताएँ संग्रहों का लोकार्पण हुआ। इस सत्र में अल्मा डबराल, गंगा सहाय मीणा, मदन कश्यप, विष्णु नागर, डॉ. बजरंग बिहारी तिवारी और प्रो. रविकान्त मौजूद रहे। अल्मा डबराल के लिए इस पुस्तक के लोकार्पण का क्षण भावुक था। उन्होंने कहा, “पापा के देहावसान के बाद हमने उनके कंप्यूटर को देखा तो कई अप्रकाशित कविताऍं पड़ी हुई थी। इन कविताओं के प्रकाशन के लिए मैं राजकमल का धन्यवाद करती हूँ।” 

वहीं विष्णु नागर ने मंगलेश डबराल को याद करते हुए कहा कि वे अपने समय के बारे इतने तीखेपन और सफ़ाई से लिखने वाले हमारे समय में बहुत कम कवियों में से एक हैं। कुमार विकल के बारे में उन्होंने कहा कि जीवन के बहुत कम समय में उन्होंने विस्तृत साहित्य रचा है। इस सत्र में बोलते हुए बजरंग बिहारी तिवारी ने कहा कि ओम प्रकाश वाल्मीकि की कविताओं को पढ़कर दलित कविताओं को पढ़ने की राह खुलती है। वे पहले मुकम्मल दलित कवि हैं। 

सलाम और ठाकुर का कुआं कविता को याद करते हुए उन्होंने कहा कि वे संसाधनो के रीडिस्ट्रीब्यूशन की बात उठाते हैं इसलिए उनकी बातें इतनी चुभती हैं। वहीं गंगा सहाय मीणा जी ओम प्रकाश वाल्मीकि के संग्रह के विषय में कहते हैं, “मैं सोचता हूॅं कि आज इन कविताओं को सार्वजनिक मंच पर पढ़ा जाए तो न जाने क्या हो जाय। आजकल प्रतिरोध के स्वर कम हुए हैं। उन्होंने कहा कि वाल्मीकि की कविताओं में स्त्री विमर्श भी है जो दिखाता है कि एक उत्पीड़ित अस्मिता का व्यक्ति दूसरी उत्पीड़ित अस्मिता के प्रति कितना सजग है। 

जंसिता केरकेट्टा का नया कविता संग्रह ‘प्रेम में पेड़ होना’

इसके बाद लोकप्रिय युवा कवि जंसिता केरकेट्टा की प्रेम कविताओं के संग्रह ‘प्रेम में पेड़ होना’ का लोकार्पण हुआ। इस मौके पर जसिंता ने नए संग्रह से कुछ कविताओं का पाठ किया। इसके बाद किताब पर आदित्य शुक्ला के साथ बातचीत में जसिंता केरकेट्टा ने कहा कि प्रेम को देखने का नज़रिया उसी समाज से आता है जहां हम रहते हैं। मैं आदिवासी समाज से आती हूं हमारे समाज में प्रेम की परिभाषा अलग क्योंकि हम इस पूंजीवादी समाज से दूर हैं। प्रेम से मतलब है कि आप प्रेम में कितना लिबरेट हो जाते हैं, कितने उदार होते हैं। इसलिए मैंने इस किताब का नाम 'प्रेम में पेड़ होना' रखा है।

कार्यक्रम के अगले सत्र में 'मृत्यु और हँसी' उपन्यास पर देवेश ने लेखक प्रदीप अवस्थी से उपन्यास के कथानक पर बातचीत की। इस उपन्यास में आधुनिक जीवनशैली में रिश्तों की चुनौतियों पर गंभीर विमर्श किया गया है। बातचीत के दौरान लेखक प्रदीप अवस्थी ने कहा कि जब अहमियत मिलती है तो लोग उस तरफ आकर्षित होते हैं। इसकी वजह से कई बार नए रिश्ते बनते हैं तो कुछ रिश्ते टूटते भी है। 

कार्यक्रम के अंतिम सत्र में कबीर संजय के कहानी संग्रह ‘फेंगशुई’ पर बातचीत हुई। इस संग्रह की कहानियाँ मुख्य रूप से महानगरीय जीवन पर आधारित हैं। बातचीत में लेखक ने कहा कि मैं दिल्ली में रहता हूं। मैंने महानगरीय जीवन, दिल्ली मेट्रो का क्राउड और शहरी संघर्ष को करीब से देखा है और उसी को इस संग्रह में दिखाने की कोशिश की है।

कल होंगे ये कार्यक्रम

जलसाघर में कल दिनांक 11 फरवरी (रविवार) को दोपहर एक बजे से कार्यक्रम शुरू होगा। पहले सत्र में 'भविष्य के पाठक' विषय पर परिचर्चा होगी। जिसमें अणुशक्ति सिंह, जय प्रकाश कर्दम, राकेश रेणु, विनोद तिवारी, तशनीफ हैदर, रमाशंकर सिंह बतौर वक्ता उपस्थित रहेंगे। दूसरे सत्र में प्रो. प्रज्ञा के उपन्यास 'कांधों पर घर' का लोकार्पण होगा। इसमें रोहिणी अग्रवाल, शंकर, भालचंद्र जोशी तथा राकेश कुमार की विशिष्ट उपस्थिति रहेगी। अगले सत्र में संजय काक 'संघर्ष नर्मदा का' किताब पर लेखक नंदिनी ओझा से बातचीत करेंगे। 

अगले सत्र में उत्कर्ष शुक्ला से उनके उपन्यास 'रहमानखेड़ा का बाघ' पर रमेश कुमार पाण्डेय बातचीत करेंगे। इसके बाद वर्ष 2023 के बहुचर्चित उपन्यास 'अगम बहै दरियाव' पर लेखक शिवमूर्ति से देवेश की बातचीत होगी। अगले सत्र में अंकिता आनंद की किताब 'अब मेरी बारी' पर सविता पाठक उनसे बातचीत करेंगी। अंतिम सत्र में 'लेखक से मिलिए' कार्यक्रम में कथाकार चन्द्रकांता से विशाल पांडेय बातचीत करेंगे।

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