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'राम फिर लौटे'- अयोध्या के पांच सौ बरस के संघर्ष का रोजनामचा, जानिए राम मंदिर का सुखांत कैसे हुआ

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: January 21, 2024 6:29 AM

अयोध्या में घटित हुई हर घटना के गवाह रहे जानेमाने पत्रकार हेमंत शर्मा द्वारा लिखी इस पुस्तक में राम का, अयोध्या का आख्यान कुछ इस तरह से किया गया हो मानों वो नीर-क्षीर विवेके के हंस हो गये हों।

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ठळक मुद्दे'राम फिर लौटे' में तिथियों के अनुसार अयोध्या के इतिहास और भूगोल का व्यापक चित्रण किया गया हैलेखक हेमंत शर्मा किताब में लिखते हैं, 'अयोध्या राम की थी, राम की है और राम की ही रहेगी''राम फिर लौटे' 271 पन्नों में सिमटी है, लेखनी की बुनावट और आख्यान अलंकारिक नीर के समान है

अयोध्या मर्यादा के तप को स्वयं में समेटे हुए यश, कीर्ति और त्याग की वह भूमि है, जहां भगवान विष्णु ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम के दिव्य तेज के रूप में इस धरा पर जन्म लिया था। राम नाम की महत्ता का बखान करना या राम नामक शब्द को वाक्यों में निरूपित करना या राम नाम के दर्शन पर बात करना लघुता के उस विराट स्वरूप की बात करना है। जिसमें सारा का सारा ब्रह्मांड समाहित है।

साल 2024 भारत के काल खंड में बेहद महत्वपूर्ण वर्ष के रूप में दर्ज किया जाएगा। लगभग 500 वर्षों के अनवरत संघर्ष के बाद वह समय आ गया है, जब समय का चक्र एक बार फिर घूमकर जम्बू द्वीप पर स्थित इस महान आर्यावर्त में सनातन धर्म की चतुर्दिक पताका को एक बार फिर से फहराने जा रहा है।

पुस्तक 'राम फिर लौटे' राम की समग्रता पर केंद्रीत उस अयोध्या को समर्पित मालूम पड़ रही है। जिसमें सार्वभौमिक, अटल और निष्कलंक सत्य तो यही है कि कालखंडों की गणनाओं से परे अयोध्या हिंदू समाज के उस आस्था का सचल केंद्र है, जो हर नर-नारी के ह्रदय में निवास करता है। अयोध्या वह पावन भूमि है जो 'राम की थी, राम की है और राम की ही रहेगी'

पुस्तक में बहुत व्यापकता के साथ सूरदास के राम, तुलसी के राम, कबीर के राम, खुसरो के राम और रसखान के राम की व्याख्या की गई, जो निर्गुण और सगुण होते हुए एकसम, एक नुक्कड़ पर एकाकार हो जाते हैं कि राम मनुष्य के जीवन से मृत्यु तक के हर समय के तारणहार हैं। राम आदर्श दर्शन हैं, राम कर्तव्यों की पराकाष्ठा के उच्चतम बिंदू हैं। राम वह नाम हैं, जिसमें मोक्ष समाहित है।

अयोध्या में घटित हुई हर घटना के गवाह रहे जानेमाने पत्रकार हेमंत शर्मा द्वारा लिखी इस पुस्तक में राम का, अयोध्या का आख्यान कुछ इस तरह से किया गया हो मानों वो नीर-क्षीर विवेके के हंस हो गये हों। 'राम फिर लौटे' में तिथियों  के अनुसार तो अयोध्या के इतिहास औऱ भूगोल का चित्रण किया गया है, उसके साथ उन संदर्भों को भी विस्तार से व्याख्यातित किया गया है। जिसमें धर्मांधता का अभिमान उत्थान और पतन के साथ धूल धूसरित होता है और आखिर में सत्य की विजय होती है।

हेमंत शर्मा पुस्तक की पृष्ठ संख्या 47 पर शुरू किये अध्याय 'सबके राम' में लिखते हैं, "'रामो विग्रहवान् धर्मः' यह 'रामत्व' का बीज शब्द है। राम धर्म के 'विग्रह' हैं, मूर्ति नहीं। विग्रह में प्राण होता है। मूर्ति निष्प्राण होती है। रामनाम से धर्म स्पंदित होता है। हमारी मानवीय, जातीय, लोकागम, ऐतिहासिक, वैदिक, पौराणिक चेतना में जो भी सर्वश्रेष्ठ है, सर्वानुकूल है, सर्वयुगीन है, सर्वधर्म है, वह सब 'रामतत्त्व' में समाता है। विश्व संस्कृति में फैले रामतत्त्व तक मनुष्य के लिए जो भी सर्वोत्तम है, वह 'राम' है।"

'राम' व्याख्या से परे हैं लेकिन बावजूद उसके राम नाम की इससे सुंदर महत्ता शायद ही व्यक्त की जा सकती है। वाकई में ये बहुत ही अद्भुत है कि पौराणिक काल से वर्तमान युग की आधुनिकता में दौड़ रहे समाज में राम आदर्श नायक बने हुए हैं। राम के सम्मोहन का वर्णन करना ठीक उसी तरह कठिन और असाध्य है, जैसे राम के वर्णित और स्थापित मर्यादा की पगडंडियों पर चलना।

पुस्तक 'सबके राम' में पृष्ठ संख्या 19 से शुरू हो रहे अध्याय 'लोकमंगल के राम' में भारत के सनातन विश्वास, भारत की मर्यादा के आदर्श और वीतराग राम के परमानंद का बखान किया गया है। पुस्तक के पहले अध्याय में लेखक हेमंत शर्मा लिखते हैं, "अयोध्या का मंदिर राम का है। राम कण-कण में हैं। हमारे भाव की हर हिलोर में राम हैं। कर्म के हर छोर में राम हैं। राम यत्र-तत्र हैं। राम सर्वत्र हैं। जिसमें रम गए, वही राम है। भारतीय समाज में मर्यादा, आदर्श, विनय, विवेक, लोकतांत्रिक मूल्यवत्ता और संयम का नाम है राम। आप ईश्वरवादी न हों, तो भी घर-घर में राम की गहरी व्याप्ति से उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम तो मानना ही पड़ेगा। स्थितप्रज्ञ, असंपृक्त, अनासक्त। एक ऐसा लोकनायक, जिसमें सत्ता के प्रति निरासक्ति का भाव है। जो जिस सत्ता का पालक है, उसी को छोड़ने के लिए सदा तैयार है। अयोध्या में ऐसे राम के मंदिर पर अब नए भारत की इमारत खड़ी होगी।"

'सबके राम' की पृष्ठ संख्या 73 पर लिखित 'सीय राममय सब जग' अध्याय में यह बताया गया है कि आदिकाल से राम की महिमा भारत ही नहीं पूरे विश्व में अपनी आभा को बिखेर रही है।  राम केवल भारत के नहीं हैं, श्रीलंका, मलेशिया, इंडोनेशिया, कंबोडिया, थाईलैंड, कोरिया, जापान, ईरान-इराक, मिस्र सहित विश्व के कई देशों की सभ्यता में शामिल हैं। राम धर्म, पंथ, मजहब और संप्रदाय के इतर भाषाई स्तर पर संस्कृत, हिंदी, ऊर्दू, अरबी और अन्य भाषाओं में भलीभांत वर्णित हुए हैं।

इसी अध्याय में एक जगह हेमंत शर्मा बताते हैं, "1934-35 में बेल्जियम से भारत आए फादर कामिल बुल्के ने रामकथा की उत्पत्ति और विकास पर बड़ा काम किया है। उन्होंने अपने शोधग्रंथ के उद्धरणों से पहली बार साबित किया कि रामकथा केवल भारत में नहीं, अंतरराष्ट्रीय कथा है, जो वियतनाम से इंडोनेशिया तक फैली हुई है। इस संदर्भ में फादर बुल्के अपने इंडोनेशियाई मित्र हॉलैंड के डॉक्टर होयकास के हवाले से लिखते हैं कि एक दिन डॉ. होयकास इंडोनेशिया में शाम के वक्त टहल रहे थे, तभी उन्होंने एक मौलाना को रामायण पढ़ते देखा। होयकास ने उनसे पूछा- मौलाना, आप तो मुस्लिम हैं, आप रामायण क्यों पढ़ते हैं? उत्तर मिला-और भी अच्छा मनुष्य बनने के लिए! "

पुस्तक की पृष्ठ संख्या 95 से शुरू हो रहे 'शताब्दियों के तप' के अध्याय में लेखक बताते हैं कि अयोध्या भारत के इतिहास, वर्तमान और भविष्य का सच है। इस अध्याय में आंक्राता के कुटिल कर्मों, पावन मंदिर के ध्वंस, अत्याचार को साबित करने के लिए और राम जिनका नाम ही प्रमाण है, उनके जन्मस्थान को प्रमाणित करने के लिए तुलसीदास के 'दोहा शतक' के उद्धरण को समाज के सामने रखा जाता है।

हालांकि हेमंत शर्मा इस बात को भी पुस्तक में दर्ज करते हैं, हिंदी के कुछ वामपंथी आलोचक तुलसीदास के 'दोहा शतक' की प्रमाणिकता पर संदेह करते हैं। लेकिन यह बात भी उतनी ही सही है कि शशि के श्यामल भाल को देखकर कुछ लोग चंद्रमा की धवलता पर संदेह करते हैं, लेकिन उससे चंद्रमा के यश और कीर्ति में कोई संदेह नहीं होता है।

इसी तरह से पुस्तक 'सबके राम' में 'भूगर्भ की गवाही: अदालत का फैसला', 'भारतीयता का तीर्थ', 'मंदिर के साधक' और 'समय साक्षी है' के नाम से भी अलग-अलग अध्याय हैं, जिसमें राम और अयोध्या के व्यापक इतिहास को क्रमवार लेखनी से रेखांकित किया गया है।

हेमंत शर्मा की यह पुस्तक 'राम फिर लौटे' कुल 271 पन्नों में सिमटी है। लेखनी की बुनावट, आख्यान और उपाख्यान के साथ अलंकारिक नीर के समान है। कई जगहों पर तमाम तरह के उद्धरण को संदर्भित करते हुए काल-खंडों की मर्मस्पर्शी व्याख्या की गई है। अयोध्या के इतिहास को बोलती यह पुस्तक उन सभी लोगों के लिए बेहद रोचक और तथ्यपरक जानकारी के साथ सुलभ है, जिनका जिज्ञासा शाश्वत सत्य राम में है।

इस पुस्तक में क्रमवार अयोध्या के विषय में वह जानकारी दर्ज है, जिसे शायद कम ही लोग जानते हों। इस लिहाज से इस पुस्तक को पढ़ना, गुनना लाभप्रद रहेगा। पुस्तक 'सबके राम' का प्रथम प्रकाशन साल 2024 में हुआ है और इसे प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है। इस पुस्तक के पेपरबैक का मूल्य 350 रुपये है और हार्ड बाउंड की कीमत 569 रुपये है। 

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