एक तरफ जहां गाजा त्रासदी को लेकर अमेरिका, सऊदी अरब सहित पश्चिमी देशों व पश्चिमी एशियाई देशों के बीच राजनयिक वार्ताओं का दौर तेज हो गया है, वहीं इजराइल-हमास के बीच हो रहे इस युद्ध को लेकर अमेरिकियों का बाइडेन सरकार की नीतियों के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन विश्वविद्यालयों तक पहुंच गया है।
ऐसे में एक तरफ जहां सवाल उठाए जा रहे हैं कि गाजा का मुद्दा बेहद गंभीर है लेकिन विश्वविद्यालयों के अंदर इस तरह के आक्रामक विरोध प्रदर्शनों के रूप में इसे उठाना सही नहीं है, वहीं दूसरी तरफ तर्क यह भी है कि विरोध के तरीके को पूरी तरह से भले ही सही न माना जाए लेकिन विरोध का मुद्दा तो सही है।
अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में कुछ दिन पहले छात्रों के एक ग्रुप ने गाजा में इजराइली सैन्य कार्रवाई के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया। धीरे-धीरे यह विरोध प्रदर्शन अमेरिका के अन्य विश्वविद्यालयों में भी फैल रहा है। गाजा को लेकर अमेरिका के अंदर ही बाइडेन सरकार की नीति को लेकर कड़ा विरोध व्यक्त किया जा रहा है, ऐसे में विश्वविद्यालयों के अंदर इन शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों के औचित्य को लेकर सवाल उठ खड़े हुए हैं। छात्रों ने यूनिवर्सिटी से अपील की है वह उन कंपनियों के साथ काम करना बंद करे जो गाजा में युद्ध का समर्थन कर रही हैं।
कुछ लोगों का कहना है कि ये विरोध प्रदर्शन 1960 के दशक की याद दिलाते हैं जब अमेरिका के लोग वियतनाम युद्ध के विरोध में अपने ही देश के खिलाफ सड़कों पर आ गए थे। युद्ध को लेकर लोग सरकार की नीतियों से खफा हैं। हाल के एक सर्वेक्षण के अनुसार 71 प्रतिशत अमेरिकियों ने गाजा मुद्दे से सही तरह से निपट नहीं पाने के लिए बाइडेन प्रशासन की आलोचना की है।
अमेरिकी विश्वविद्यालय के विरोध प्रदर्शन को रोकने के सरकार के तौर-तरीकों पर भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि लोकतांत्रिक देशों को खास तौर पर दूसरे देशों की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को समझने के लिए अच्छी समझ-बूझ दिखानी चाहिए क्योंकि अंततः जो हम अपने देश में करते हैं हमारा मूल्यांकन उसी से होता है, न कि इससे कि विदेशों में हम क्या कहते हैं।