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ब्लॉग: ‘दिशाहीन’ म्यांमार में सैन्य शासकों का दमनचक्र, लोकतंत्र की भड़क रही है ज्वाला

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: July 30, 2022 13:45 IST

सैन्य शासकों ने लोकतंत्र समर्थक लोकप्रिय नेता सू की निर्वाचित सरकार का गत वर्ष फरवरी में तख्तापलट कर सत्ता हासिल कर ली हो लेकिन लगातार दिशाहीन होता जा रह म्यांमार का लोकतंत्र समर्थक शांतिपूर्ण आंदोलन अब धीरे-धीरे हिंसक होता जा रहा है, म्यांमार में स्थिति बदतर है।

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पिछले एक साल से सैन्य दमनचक्र झेल रहे भारत के पड़ोसी म्यांमार में इस सप्ताह दुनिया भर की अपीलों के बावजूद लोकतंत्र समर्थक चार कार्यकर्ताओं को इस सोमवार फांसी दे दी गई। निश्चित तौर पर जिस तरह से वहां का सैन्य निजाम दमनचक्र जारी किए हुए है, उससे वहां लोकतंत्र की ज्वाला और भड़क रही है। 

भले ही सैन्य शासकों ने लोकतंत्र समर्थक लोकप्रिय नेता सू की निर्वाचित सरकार का गत वर्ष फरवरी में तख्तापलट कर सत्ता हासिल कर ली हो लेकिन लगातार दिशाहीन होता जा रह म्यांमार का लोकतंत्र समर्थक शांतिपूर्ण आंदोलन अब धीरे-धीरे हिंसक होता जा रहा है, म्यांमार में स्थिति बदतर है।

देश की अर्थव्यवस्था लगातार ध्वस्त होती जा रही है। इस वर्ष सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2019 के मुकाबले 13 प्रतिशत कम रहने का अनुमान है जबकि इससे पहले इसमें 19 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। को जिम्मी,फ्यू जी-या-दौ, ह्ला-म्यो-औं, आऊंग-थ्वारा-जौ,ये सभी म्यांमार में लोकतंत्र के लिए लड़ा करते थे। सोमवार को इन चारों को फांसी दे दी गई। 

दरअसल इस दमनचक्र के जरिए सैन्य शासन संदेश तो यही दे रहा है कि न तो उन्हें देश की जनता की परवाह है और न ही अंतरराष्ट्रीय जनमत के भारी दबाव उनके लिए मायने रखता है, और न ही उनकी मंशा इस समस्या के किसी प्रकार का राजनीतिक हल खोजने की है, तो ऐसे में यह दमनचक्र आखिर कब तक चलेगा ?

भारत के लिए म्यांमार का ये घटनाक्रम विशेष चिंता का विषय है, हालांकि वह अपने राष्ट्रीय हितों और क्षेत्रीय स्थिति और समीकरणों के चलते ‘संतुलन वाली डिप्लोमेसी’ अपनाता रहा है और फांसी की इन घटनाओं पर भी उसने दुनिया के अनेक देशों और संयुक्त राष्ट्र की तरह कोई सीधी प्रतिक्रिया नहीं दी है। म्यांमार भारत का एक अहम पड़ोसी है, वहां की स्थिति उसके लिए विशेष चिंता का विषय है।

दक्षिण-पूर्व एशिया की कनेक्टिविटी को लेकर और हिंद महासागर, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उसकी रणनीति के साथ ही पूर्वोत्तर में सक्रिय उग्रवादी गुटों से निपटने में म्यांमार के साथ की ही तरह भारत के लिए म्यांमार सेना का सहयोग बहुत जरूरी है। ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई में उसे म्यांमार की मदद की जरूरत पड़ती है। 

वैसे भी म्यांमार में चीन की बढ़ती मौजूदगी खास तौर पर निवेश के नाम पर वहां पैंठ बनाने और सैन्य शासन के दुनिया भर में अलग थलग पड़ जाने के बाद वहां की सैन्य सरकार चीन का खुला साथ दे रही है। इस सबको ध्यान में रख कर ही भारत ने वहां की सैन्य सरकार के साथ संपर्क के द्वार खोल रखे हैं, साथ ही वहां लोकतंत्र बहाली पर भी जोर दे रही है। 

भारत भी म्यांमार को आर्थिक और सैन्य मदद दे रहा है. वहां सैन्य सरकार की तानाशाही के खिलाफ अमेरिका सहित पश्चिमी देशों ने अपने हाथ खींचे हैं। उस जगह को चीन हथियाने की पूरी कोशिश कर रहा है, इस समय उसे धन के साथ हथियार भी दे रहा है, वहां बड़े पैमाने पर आधार भूत परियोजनाएं चला रहा है।

चीन, म्यांमार की सैन्य सरकार को दिखाना चाहता है कि भले दुनिया उसके खिलाफ रहे, लेकिन चीन उसके सैन्य शासन को मान्यता दे सकता है। चीन की यह रणनीति भारत के लिए काफी दिक्कत पैदा करने वाली है. ऐसे में भारत को तमाम स्थितियों का आकलन कर म्यांमार के साथ अपने रिश्तों के बारे में गंभीरता से सोचना होगा।

बहरहाल म्यांमार सैन्य शासक अपने दमनचक्र के चलते जिस तरह से दुनिया में अलग-थलग पड़ गए हैं उस स्थिति विशेष का लाभ उठाते हुए चीन को वहां सैन्य शासकों को मदद देने के बहाने अपनी घुसपैठ और बढ़ाने का मौका मिल गया है। दूसरी तरह भारत को अपने राष्ट्रीय हितों को लेकर म्यांमार की सैन्य सरकार से संपर्क के द्वार खोले हुए है, साथ ही वहां तमाम स्थितियों का आकलन कर लोकतंत्र बहाली की बात करके संतुलन कारी नीति अपनाने का प्रयास कर रहा है। 

उधर म्यांमार के सैन्य शासकों पर दमन चक्र रोकने और लोकतंत्र बहाली को ले कर अंतरराष्ट्रीय दबाव भी निरंतर बढ़ता जा रहा है। ऐसे में सवाल यही है कि सैन्य शासकों के इस दमनचक्र के चलते यानी दिशाहीनता की ओर बढ़ते म्यांमार में यह दमनचक्र आखिर कब तक चलेगा? इस सवाल का जबाव फिलहाल तो सस्पेंस बना हुआ है?

टॅग्स :म्यांमारभारत
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