आपको बता दें कि नई दिल्ली में कल पांचों मध्य एशियाई राष्ट्र जिसमें तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान, उजबेकिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गिजस्तान भी शामिल है, उनके सुरक्षा सलाहकारों का पहला सम्मेलन आयोजित किया गया था।
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भारत की शानदार छवि के बावजूद वीटो पावर वाले राष्ट्र बहुमत में होते हुए भी केवल एक मुल्क के विरोध के चलते भारत को स्थायी सदस्यता नहीं दिला पा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के ढांचे में आमूलचूल बदलाव की भारतीय मांग का आधार भी यही है। आपको याद होगा कि पिछले
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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी इस मायने में भी चिंताजनक है कि आजादी हासिल करने के 75 वर्ष बाद अन्न उत्पादन में आत्मनिर्भर होने एवं खाद्यान्न का बंपर स्टाक होने के बावजूद एक वर्ग भुखमरी की चपेट में है।
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भारतीय समाज में जिस तरह से महिलाओं के खिलाफ हिंसा बढ़ रही है, वह महिलाओं के प्रति समाज की प्रतिबद्धता पर गंभीर सवालिया निशान खड़ा करती है। महिलाओं के खिलाफ हर तरह के अपराध बढ़ रहे हैं। न केवल उनकी सुरक्षा और सम्मान बल्कि उनके मूल अधिकारों की भी अक्सर
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भारत जोड़ो यात्रा का मकसद अगर चुनावी फायदा नहीं है तो फिर वह दूरगामी उद्देश्य क्या है जो यह यात्रा हासिल करना चाहती है? राहुल गांधी को इस यात्रा के जरिए कैसे नेता के तौर पर स्थापित करने की कोशिश है, पढ़ें...
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नेपाल में हुए हाल में चुनाव में नेपाली कांग्रेस को 57 सीटें मिली हैं. वहीं, इसी की सहयोगी प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी को सिर्फ 18 सीटें मिली हैं लेकिन वोट की संख्या के मामले में यह नेपाली कांग्रेस से आगे है.
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ईरान में हिजाब के विरुद्ध इतना जबर्दस्त जन-आंदोलन चल पड़ा है कि सरकार को घुटने टेकने पड़ गए हैं. उसने घोषणा की है कि वह ‘गश्त-ए-इरशाद’ नामक अपनी मजहबी पुलिस को भंग कर रही है. इस पुलिस की स्थापना 2006 में राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने इसलिए की थी कि
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जनहित अभियान (नवंबर 2022) मामले में सुप्रीम कोर्ट का बहुमत का फैसला देश के अंतर-पीढ़ीगत न्याय को आगे बढ़ाने के सामूहिक प्रयास में एक ऐतिहासिक क्षण है. यह पहचान और प्रतिनिधित्व से आगे, सरकारी रोजगार और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण को सकारात्मक कार्रव
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बाबासाहब ने अपनी राहों के कांटे बुहारकर उच्च शिक्षा ग्रहण करने से लेकर समाज सुधार और संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने तक की जिम्मेदारी निभाई।
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भारतीय कंपनियां भी देश की सेना के लिए उत्पादन करने में जुट गई हैं। इसी ताकत के साथ सेना आत्मनिर्भरता की बात नि:संकोच करने लगी है। मगर यह भी आवश्यक है कि सैन्य तरक्की के कार्य में आर्थिक मोर्चे पर कोई कमी नहीं आनी चाहिए, जो केवल मजबूत करदाताओं से संभव
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