ब्लॉग: हिजाब के खिलाफ जबर्दस्त जन-आंदोलन, आखिर घुटने टेकने पर क्यों मजबूर हुआ ईरान
By वेद प्रताप वैदिक | Published: December 6, 2022 12:16 PM2022-12-06T12:16:56+5:302022-12-06T12:17:20+5:30
ईरान में हिजाब के विरुद्ध इतना जबर्दस्त जन-आंदोलन चल पड़ा है कि सरकार को घुटने टेकने पड़ गए हैं. उसने घोषणा की है कि वह ‘गश्त-ए-इरशाद’ नामक अपनी मजहबी पुलिस को भंग कर रही है. इस पुलिस की स्थापना 2006 में राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने इसलिए की थी कि ईरानी लोगों से वह धार्मिक कानूनों और परंपराओं का पालन करवाए.
देखिए, ईरान की कथा भी कितनी विचित्र है. सऊदी अरब और यूएई जैसे अरब राष्ट्रों से ईरान की हमेशा ठनी रहती है लेकिन फिर भी वह अरबी रीति-रिवाजों को उनसे भी ज्यादा सख्ती से लागू करने पर आमादा रहता है.
अभी लगभग दो माह पहले एक कुर्द जाति की युवती महसा अमीनी को इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया था कि उसने हिजाब नहीं पहन रखा था. जेल में उसकी हत्या हो गई. सारे ईरान में इतना आंदोलन भड़क गया जितना कि 1979 में शहंशाहे-ईरान के खिलाफ भड़क गया था.
एक अनुमान के अनुसार अब तक लगभग 500 लोग मारे गए हैं और सैकड़ों लोग गिरफ्तार हो गए हैं. लोग सिर्फ हिजाब के विरुद्ध ही नहीं बल्कि खोमैनी के खिलाफ भी खुलकर बोल रहे हैं. अगले तीन दिन तक सारे व्यापार और बाजारों को बंद रखने की घोषणा इन आंदोलनकारियों ने कर दी है.
वर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की कुर्सी हिलने लगी है. उन्हें पता है कि शहंशाह को भगाने के लिए ईरानी जनता ने कितने साहस और बलिदान का प्रमाण दिया था इसीलिए अब इस ‘गश्ते इरशाद’ यानी नैतिक पुलिस को भंग करने की घोषणा उनकी सरकार को करनी पड़ी है. सरकार का कहना है कि यह आंदोलन अमेरिका और इजराइल के इशारों पर हो रहा है. उसकी इस बात पर न तो ईरानी लोग भरोसा करते हैं और न ही अन्य मुस्लिम राष्ट्रों के नागरिक!
इस आंदोलन में हिजाब तो एक बहाना है. असलियत यह है कि ईरान की जनता, जो शहंशाह के काल में कई मामलों में अत्यंत आधुनिक हो गई थी, अब खोमैनी के राज में उसका दम घुट रहा है.