भारत जोड़ो यात्रा: राहुल गांधी की कैसी छवि को तैयार करने की है कोशिश और क्या होगा इसका फायदा?
By अभय कुमार दुबे | Published: December 7, 2022 12:40 PM2022-12-07T12:40:05+5:302022-12-07T12:42:02+5:30
भारत जोड़ो यात्रा का मकसद अगर चुनावी फायदा नहीं है तो फिर वह दूरगामी उद्देश्य क्या है जो यह यात्रा हासिल करना चाहती है? राहुल गांधी को इस यात्रा के जरिए कैसे नेता के तौर पर स्थापित करने की कोशिश है, पढ़ें...
कांग्रेस इस समय चुनावी राजनीति के प्रति अरुचि क्यों दिखा रही है? मेरी समझ में इस प्रश्न का उत्तर शायद राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पर एक विश्लेषणात्मक नजर डालने से एक हद तक मिल सकता है.
राजनीति के आयोजन या तो चुनावी फायदे के लिए होते हैं, या फिर उनके पीछे कोई बड़ा दूरगामी लक्ष्य होता है. अगर चुनावी फायदा इस यात्रा का मकसद नहीं है, तो फिर वह दूरगामी उद्देश्य क्या है जो यह यात्रा हासिल करना चाहती है? दरअसल, यह यात्रा राहुल गांधी को एक ऐसे नेता के रूप में स्थापित करना चाहती है जो चुनाव से हासिल होने वाली सत्ता के प्रलोभन से परे जाकर राष्ट्र की चिंता में डूबा हुआ है.
भारतीय परंपरा में ऐसा व्यक्ति बनने के लिए शख्सियत में एक तरह का साधुभाव या संतत्व पैदा होना आवश्यक है. राहुल गांधी की प्रत्येक गतिविधि, उनकी सभी तस्वीरें, उनकी बिना कटी-छंटी बेतरतीब दाढ़ी और सामान्य आबाल-वृद्ध-नारी के साथ उनका अंतरंग हेलमेल इसी भाव को पैदा करने का प्रयोजन लग रहा है. वे वोट मांगते हुए नहीं दिखना चाहते, बल्कि वोट मांगने से इंकार करते हुए राष्ट्र के स्तर पर राजनीतिक-सामाजिक एकजुटता की पुनर्स्थापना का प्रयास करते हुए दिखना चाहते हैं.
चुनावी इलाकों से दूर रहने के आग्रह के कारण राहुल गांधी को जो नुकसान हो रहा है, उसका अंदाजा लगाया जा सकता है. पर इससे एक लाभ यह हुआ है कि उनकी यात्रा के साथ ऐसे तमाम लोग जुड़ सके हैं जो स्वभावत: कांग्रेस के आलोचक रहे हैं, या जिन्होंने गैरकांग्रेसवादी राजनीति में लंबा अरसा गुजारा है.
इनमें कई पूर्व या वर्तमान समाजवादी हैं. कुछ पर्यावरणवादी हैं. कुछ बुद्धिजीवी हैं, कुछ एक्टिविस्ट हैं. दूसरी पार्टियों से निराश हुए कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें किसी नये ध्रुव की तलाश है. इनमें से कई लोग स्वयं को मार्क्सवादी या वामपंथी की श्रेणियों में रखते हैं. कुछ की आत्मछवि सामाजिक कार्यकर्ताओं की है.
गैरपार्टी राजनीति करने या एनजीओ सेक्टर में सक्रिय लोग भी इस यात्रा के अंग बन रहे हैं. ऐसे तत्व कांग्रेस के इतिहास में पहली बार उसके साथ जुड़ रहे हैं. दरअसल, किसी जमाने में इन तत्वों का जन्म ही कांग्रेस शासन के विरोध में हुआ था. राहुल की यात्रा जिस तरह से आयोजित की गई है, उसकी यह एक असाधारण सफलता है.
जो भी हो, भले ही आज राहुल गांधी वोट न मांग रहे हों—अंतत: उन्हें और उनके नये कांग्रेसियों को चुनावी परीक्षा से गुजरना ही होगा. उन्होंने इस यात्रा पर गुजरात का चुनाव कुर्बान कर दिया है, पर वे छवि-निर्माण की इस रणनीति पर राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और हरियाणा के चुनाव कुर्बान नहीं कर सकते. लोकतांत्रिक राजनीति के इस नये संत को अंतत: वोट मांगने ही होंगे.