ब्लॉग: नेपाल में शेर बहादुर देउबा फिर बनेंगे प्रधानमंत्री पर कितनी मजबूत रहेगी नई सरकार?
By वेद प्रताप वैदिक | Published: December 7, 2022 07:47 AM2022-12-07T07:47:24+5:302022-12-07T07:47:24+5:30
नेपाल में हुए हाल में चुनाव में नेपाली कांग्रेस को 57 सीटें मिली हैं. वहीं, इसी की सहयोगी प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी को सिर्फ 18 सीटें मिली हैं लेकिन वोट की संख्या के मामले में यह नेपाली कांग्रेस से आगे है.
नेपाल में हुए आम चुनावों में जिन सत्तारूढ़ पार्टियों ने पहले से गठबंधन सरकार बनाई हुई थी, वे फिर से जीत गई हैं. उन्हें 165 में से 90 सीटें मिल गई हैं. अब नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा फिर प्रधानमंत्री बन जाएंगे. हालांकि उनकी पार्टी को 57 सीटें मिली हैं और प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी को सिर्फ 18 सीटें मिली हैं लेकिन जहां तक वोटों का सवाल है, प्रचंड की पार्टी को 27,91,734 वोट मिले हैं जबकि नेपाली कांग्रेस को सिर्फ 26,66,262 वोट ही मिल पाए.
इसका अर्थ क्या हुआ? अब कम्युनिस्ट पार्टी का असर ज्यादा मजबूत रहेगा. अब देउबा की सरकार में कम्युनिस्ट पार्टी का सिक्का जरा तेज दौड़ेगा. देउबा प्रधानमंत्री तो दुबारा बन जाएंगे लेकिन उन्हें अब उन कम्युनिस्टों की बात पर ज्यादा ध्यान देना होगा, जो कभी नेपाली कांग्रेस के कट्टर विरोधी रह चुके हैं. उन्होंने अपनी बगावत के दौरान नेपाली कांग्रेस के कई कार्यकर्ताओं की निर्मम हत्या भी की थी और उनके पार्टी घोषणा-पत्रों में भारत के विरुद्ध विष-वमन में भी कोई कमी नहीं रखी जाती थी.
कोई आश्चर्य नहीं कि पूर्व प्रधानमंत्री के.पी. ओली की कम्युनिस्ट पार्टी अपने गठबंधन के भागीदारों के साथ मिलकर देउबा सरकार की नाक में दम बनाए रखने पर आमादा रहे. लेकिन यह भी संभव है कि ओली के गठबंधन से टूटकर कुछ पार्टियां और सांसद देउबा का समर्थन करने लगें. उन्हें पता है कि भारत के बिना नेपाल का गुजारा नहीं है और ओली ने भारत-विरोध का झंडा निरंतर उठाए रखा था.
नेपाली लोकतंत्र की यह पहचान बन गई है कि वहां सरकारें पलक झपकते ही उलट-पलट जाती हैं. लेकिन यह नेपाली लोकतंत्र की विशेषता भी है कि वहां न तो राजशाही का बोलबाला दुबारा हो पाता है और न ही वहां कभी फौजशाही का झंडा बुलंद होता है.